पंजाब में नशा तस्करों के खिलाफ अभियान
बड़ी सरकार केजरीवाल, छोटी सरकार भगवंत मान को एक्शन की कमांड देते हैं। उसके बाद छोटी सरकार भगवंत मान पुलिस को एक्शन की कमांड देते हैं। इस कमांड के बाद पुलिस एक्शन में आती है। इस पूरे आप्रेशन को ‘नशों के खिलाफ युद्ध’ का नाम दिया गया है। यानी सरकार को पता रहता ही है कि पंजाब में नशों का कारोबार चल रहा है और उसमें कौन-कौन शामिल हैं। लेकिन एक्शन कब लेना है इसका फैसला सरकार अपने हितों को ध्यान में रख कर करती है। इसकी एक दूसरी व्याख्या भी की की जा सकती है। जनता के हित और सरकार के हित अलग-अलग ही नहीं, बल्कि परस्पर विरोधी भी हो सकते हैं। जनता का हित है कि नशे बंद होने चाहिएं और जो इस कारोबार में लगे हैं उनको सजा मिलनी चाहिए। सरकार का हित अलग है…
पंजाब सरकार ने कुछ दिन पहले नशों का कारोबार करने वालों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया है। नशे का व्यापार करने वाले कुछ लोग पकड़ भी लिए हैं। नशे के कारोबार में लगे हुए कुछ लोगों के मकान भी गिरा दिए गए हैं। कहा जाता है यह सम्पत्ति उन्होंने नशे के अवैध व्यापार से ही इकठ्ठी की थी। बहुत बड़ी मात्रा में नशे के विविध प्रकार पकड़े जाने के बाद उसे सार्वजनिक तौर पर नष्ट भी किया गया है। कुछ पुलिस अधिकारी जिनके बारे में सरकार को पता था कि वे नशे के कारोबार में सक्रियता से लगे हुए हैं, उन्हें नौकरी से भी निकाल दिया गया है। कुछ स्थानों पर जेल के कर्मचारी भी जेल के अंदर नशों का व्यापार करते थे, अंतत: सरकार ने उनमें से भी कुछ को पकड़ लिया है और उसी जेल में बंद कर दिया है। कुछ स्थानों पर नशे के धंधे में लगे तस्करों या उनके प्यादों ने पुलिस से भी पंगा लिया तो उन्हें एनकाउंटर के बारे में व्यावहारिक जानकारी दी गई। ऐसे लोगों का ईलाज अब सरकार अस्पतालों में करवा रही है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान इसे ‘नशों के खिलाफ युद्ध’ की संज्ञा दे रहे हैं। इस नामकरण पर कोई आपत्ति नहीं की जा सकती। वैसे भी कोई भी सरकार जब नशों के खिलाफ मोर्चा सम्भालती है तो उसका समर्थन ही किया जाना चाहिए। वैसे पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार से दिशा लेकर हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार भी नशों के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर सकती है। वैसे भी दोनों पार्टियां राहुल गान्धी के नेतृत्व में बने इंडी गठबन्धन का हिस्सा हैं। लेकिन कांग्रेस को शायद यह डर लग रहा होगा कि यदि उसकी सरकार ने भी हिमाचल में नशों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया तो कहीं आम आदमी पार्टी यही प्रचार न शुरू कर दे कि कांग्रेस के पास अपनी नीतियां नहीं हैं, वह तो आम आदमी पार्टी की नीतियों की नकल कर रही है।
शायद इसी राजनीतिक डर के कारण हिमाचल प्रदेश में सरकार नशों के खिलाफ युद्ध छेडऩे से डरती हो। लेकिन पंजाब में इस युद्ध की क्या स्थिति है, तब तक इसको भी परख लेना चाहिए। पंजाब में यह युद्ध दो स्तर पर लड़ा जा रहा है। पहला मोर्चा जमीन पर लगाया गया है, जहां नित्य प्रति कोई गिरफ्तारी, कोई एनकाउंटर, कोई नशा जब्ती की सूचनाएं बराबर मिल रही हैं। दूसरा मोर्चा मीडिया में लगाया गया है। इस मोर्चे से बराबर दिन-रात ऐलान हो रहा है कि पंजाब ने नशों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया है। इस महत्वपूर्ण मोर्चे की कमान स्वयं मुख्यमंत्री भगवंत मान ने संभाली हुई है। हर चैनल पर हर वक्त भगवंत मान स्वयं प्रकट होते हैं और बताते हैं कि हम नशों के खिलाफ लड़ रहे हैं। शराब घोटाले में फंसने और विधायक का चुनाव भी हार जाने के बाद अरविन्द केजरीवाल ने पंजाब में ही डेरा डाल लिया है। ‘एक के साथ एक मुफ्त’ के ऐतिहासिक प्रयोग में प्रसिद्धि और जेल दोनों की प्राप्ति कर लेने के बाद शायद केजरीवाल भी नशों के खिलाफ इस युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। इस काम के लिए करोड़ों के विज्ञापन दिए जा रहे हैं। यह मोर्चा बहुत खर्चीला है। इतना खर्च पहले मोर्चे पर नहीं आ रहा जितना खर्चा इस दूसरे मोर्चे पर आ रहा है। कई बार जिस उत्पादन की प्रसिद्धि के लिए, मान लीजिए हजार रुपए विज्ञापन पर खर्च कर दिए, लेकिन विज्ञापन के बाद भी उसकी बिक्री केवल तीन सौ रुपए की हुई तो कहा जाता है कि भाई विज्ञापन करने वाले का चेहरा बदलो। ‘नशों के खिलाफ युद्ध’ का विज्ञापन करने के लिए क्या भगवंत मान एक आदर्श चेहरा हैं? इसको लेकर भी चर्चा होने लगी है। लेकिन यह भी निश्चित है कि पंजाब सरकार यह चेहरा नहीं बदलेगी। यह आम आदमी पार्टी की कार्यपद्धति का हिस्सा है। दिल्ली में दस साल तक अरविन्द केजरीवाल दिल्ली सरकार की उपलब्धियों के विज्ञापनों का चेहरा बने रहे। खीज कर दिल्ली वालों ने केजरीवाल को हरा दिया लेकिन विज्ञापन से उसे हटाने में कामयाब नहीं हुए। इसी प्रकार, यह निश्चित है कि भगवन्त मान विज्ञापन में बाहर निकलने के लिए किसी भी कीमत पर तैयार नहीं होंगे। लेकिन एक और घोषणा भी कर रहे हैं। बहुत से पुलिस कर्मियों को उनकी नशों के व्यापार में संदिग्ध संलिप्तता के आधार पर घर भेज देने के बाद भगवन्त मान बार बार कह रहे हैं कि अब नशा तस्करों के लिए पंजाब की पुलिस से बच निकलना कठिन है। जब हमारी पुलिस कुछ ठान लेती है तो फिर उसे पूरा करके ही छोड़ती है। हमारी पुलिस क्या नहीं कर सकती? यह स्टेटमेंट ऊपर से जितनी सीधी दिखाई देती है, भीतर से उतनी ही गुंझलदार है। इसका अर्थ तो यह हुआ कि पुलिस को सब पता रहता है कि नशा तस्कर कौन हैं और व्यापार कौन कर रहा है और पूरा नेटवर्क कहां-कहां तक है। लेकिन वह फिर भी चुप रहती है। यदि प्रदेश में करोड़ों का नशा व्यापार चल रहा हो और उसके तार पाकिस्तान से भी जुड़े हुए हों तो जाहिर है पुलिस के लोग अपने बलबूते तो आंखें बंद नहीं किए रह सकते। जाहिर है ‘एक्शन’ का निर्णय तो सरकार के पास ही रहता होगा।
जब एक्शन का आदेश आता है तो पुलिस एक्शन मोड़ में आ जाती है। आजकल पंजाब प्रान्त में सरकार का अर्थ भगवन्त मान है। एक सरकार उससे भी बड़ी है। वह पिछले कुछ दिनों से पंजाब में ही ‘विपश्यना मोड’ में चल रही है। तो एक स्पष्ट श्रंृखला बनती है। बड़ी सरकार केजरीवाल, छोटी सरकार भगवन्त मान को एक्शन की कमांड देते हैं। उसके बाद छोटी सरकार भगवन्त मान पुलिस को एक्शन की कमांड देते हैं। इस कमांड के बाद पुलिस एक्शन में आती है। इस पूरे आप्रेशन को ‘नशों के खिलाफ युद्ध’ का नाम दिया गया है। यानी सरकार को पता रहता ही है कि पंजाब में नशों का कारोबार चल रहा है और उसमें कौन-कौन शामिल हैं। लेकिन एक्शन कब लेना है इसका फैसला सरकार अपने हितों को ध्यान में रख कर करती है। इसकी एक दूसरी व्याख्या भी की की जा सकती है। जनता के हित और सरकार के हित अलग-अलग ही नहीं बल्कि परस्पर विरोधी भी हो सकते हैं। जनता का हित है कि नशे बंद होने चाहिएं और जो इस कारोबार में लगे हैं उनको सजा मिलनी चाहिए। लेकिन सरकार का हित है कि यह कारोबार चलता रहना चाहिए क्योंकि ‘एक के साथ एक मुफ्त’ से सरकार के पास भी शायद उसके हिस्से का पैसा पहुंच जाता है। पंजाब में आम आदमी पार्टी ने 2022 में यह घोषणा कर दी थी कि वह सत्ता में आते ही नशों के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर देगी। 2022 के विधानसभा चुनाव में उसकी सरकार बन भी गई। फिर आखिर उसे यह युद्ध शुरू करने में तीन साल क्यों लगे? असली रहस्य इसी में छुपा है। नशे के खिलाफ एकजुट होकर काम करना होगा। इस काम में अभिभावकों, अध्यापकों व स्वयंसेवी संगठनों की मदद भी ली जानी चाहिए।
कुलदीप चंद अग्निहोत्री
वरिष्ठ स्तंभकार
ईमेल:kuldeepagnihotri@gmail.com
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