नए बजट की दशा और दिशा
पुरानी टैक्सियों को ई-टैक्सियों में बदलने के लिए ऋण सुविधा, सोलर पॉवर को बढ़ावा देने के लिए उद्यमियों, विशेषकर युवाओं को ऋण पर ब्याज उपदान की घोषणा करना, राज्य में उद्योग को आकृष्ट करने के लिए दो महीने के अंदर उन्हें सारी क्लीयरैंस देना, धार्मिक, साहसी, मेडिकल पर्यटन को विकसित करना, पर्यटन को शहर से गांव की ओर ले जाना सही दिशा में सही कदम हैं, लेकिन जरूरत है इसे अमलीजामा पहनाने की। नए डेस्टिनेशन को विकसित करने की बातें वर्षों से चल रही हैं, परंतु धरातल पर आज तक कुछ उतर नहीं पाया है। दिहाड़ीदारों, आउटसोर्स वर्कर, आंगनवाड़ी व आशा वर्कर और अन्य कई कर्मियों की पगार बढ़ाना अच्छी बात है…
बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपया। कोई घर, संस्था या सरकार पैसे के बिना कुछ नहीं कर सकते। सरकारों का यह दायित्व होता है कि ज्यादा से ज्यादा साधन जुटाएं और चादर देख कर ही अपने पांव पसारें। भारतीय संविधान केंद्र और राज्य सरकारों को अगामी वित्तीय वर्ष के लिए अपनी आय और व्यय का लेखा-जोखा संसद या विधानसभा में प्रस्तुत करने के लिए बाध्य करता है जिसे वार्षिक वित्तीय विवरणिका कहा जाता है। इस विवरणिका को आम तौर पर बजट कह कर संबोधित किया जाता है। हिमाचल प्रदेश का वर्ष 2025-26 का बजट 17 मार्च को माननीय मुख्यमंत्री द्वारा विधानसभा में प्रस्तुत किया गया। इससे पहले 13 मार्च को प्रदेश का इकोनॉमिक सर्वे आया था। इकोनॉमिक सर्वे के अनुसार आर्थिक गति दर में 0.1 फीसदी की मामूली सी बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2023-24 में जो दर 6.6 फीसदी थी, 2024-25 में 6.7 फीसदी आंकी गई है। घरेलु सकल उत्पाद जो 2023-24 में 2.10 लाख करोड़ था, बढ़ कर 2.32 लाख करोड़ हो गया है। वर्ष 2023-24 में प्रति व्यक्ति आय जो 234782 रुपए थी, 9.6 प्रतिशत वृद्धि के साथ वर्ष 2024-25 मेें 257212 रुपए हो गई है जो एक अच्छा संकेत है। प्रदेश की महंगाई दर 5 प्रतिशत से घट कर 4.2 प्रतिशत पर आ गई है।
हिमाचल का लेबर फोर्स पार्टीसिपेशन रेट 60.5 प्रतिशत है जो पड़ोस के सभी राज्यों से तो अधिक है। हिमाचल की बेरोजगारी दर 5.4 फीसदी आंकी गई है, लेकिन रोजगार कार्यालयों के अनुसार 675671 व्यक्ति अभी रोजगार की कतार में खड़े हैं। राज्य का 2025-26 का बजट 58514 करोड़ रुपए का है, जबकि गत वर्ष यह 58444 करोड़ का था। मात्र 70 करोड़ की वृद्धि हुई है। राज्य की कुल अनुमानित राजस्व आय 42343 करोड़, तो अनुमानित व्यय 48733 करोड़ रुपए है। राजस्व घाटा 6390 करोड़ रुपए का और वित्तीय घाटा 10338 करोड़ का है। वित्तीय घाटा कुल सकल घरेलु उत्पाद का 4.4 प्रतिशत है जो एफ आरबीएम की 3 फीसदी की सीमा से बाहर है। राज्य की सीमित आय को देखते हुए जाहिर है कि वित्तीय घाटा ऋण लेकर ही पूरा किया जा सकेगा। वेतन, पेंशन, ऋण व ऋण पर ब्याज की अदायगी और स्वायत्त संस्थाओं के अनुदान पर 76 प्रतिशत व्यय होना दर्शाया गया है। विकासात्मक कार्यों के हिस्से केवल 24 प्रतिशत राशि ही आएगी, जबकि पिछले वर्ष 28 प्रतिशत थी। प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना, कृषि ऋण पर ब्याज उपदान योजना, मंडी तक अपना सामान ले जाने पर भाड़ा उपदान, बंदरों की समस्या से निजात पाने के लिए जंगलों में फल के पौधे लगाना और स्थानीय समुदायों को उससे जोडऩा आदि किसान हितकारी योजनाएं बजट में हैं। लेकिन आवारा बैल-गायों की समस्या के समाधान के लिए कुछ विशेष नजर नहीं आता। शिक्षा संस्थानों में युक्तिकरण सही है, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। स्कूलों में बढ़ती नशा प्रवृत्ति पर भी अंकुश की सख्त जरूरत है। चिकित्सा संस्थानों में एमआरआई और पेट स्कैन आदि नए उपकरण खरीदना समय की मांग है। इसी तरह महिला और बाल विकास की कल्याणकारी योजनाओं का भी जिक्र बजट में है, जिसे आगे ले जाने की आवश्यकता है। पुरानी टैक्सियों को ई-टैक्सियों में बदलने के लिए ऋण सुविधा, सोलर पॉवर को बढ़ावा देने के लिए उद्यमियों, विशेषकर युवाओं को ऋण पर ब्याज उपदान की घोषणा करना, राज्य में उद्योग को आकृष्ट करने के लिए दो महीने के अंदर उन्हें सारी क्लीयरैंस देना, धार्मिक, साहसी, मेडिकल पर्यटन को विकसित करना, पर्यटन को शहर से गांव की ओर ले जाना सही दिशा में सही कदम हैं, लेकिन जरूरत है इसे अमलीजामा पहनाने की।
नए डेस्टिनेशन को विकसित करने की बातें वर्षों से चल रही हैं, परंतु धरातल पर आज तक कुछ उतर नहीं पाया है। दिहाड़ीदारों, आउटसोर्स वर्कर, आंगनवाड़ी व आशा वर्कर और अन्य कई कर्मियों की पगार बढ़ाना अच्छी बात है, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण है आउटसोर्स कर्मियों को नियमित करने के लिए नीति निर्धारण करना। कर्मचारियों को 3 प्रतिशत डीए और 70 वर्ष से ऊपर के पेंशनरों को एरियर के भुगतान की घोषणा स्वागत योग्य है, परंतु देनदारियों को निपटाने में इस तरह तो कई दशक लग जाएंगे जो न कर्मचारियों के और न ही सरकार के हित में होगा। न्यायालयों ने अगर एरियर पर ब्याज देने को बाध्य किया तो मुश्किल और बढ़ जाएगी। चिंताजनक पहलु यह है कि विकास के लिए बजट का कुल हिस्सा घटता जा रहा है। पिछले वर्ष अगर यह 28 फीसदी था, तो इस साल यह 24 फीसदी रह गया है। भविष्य में अगर कर्मचारी-पेंशनरों पर खर्च और कर्ज-ब्याज अदायगी का खर्च बढ़ जाता है, तो विकास के लिए पैसा और घट जाएगा। वैसे, ग्रीन हिमाचल के लिए सरकार की योजनाएं तथा प्राकृतिक खेती की ओर कदम सराहनीय हैं नादौन में स्पाइस पार्क तथा ऊना में पोटेटो प्रोसेसिंग यूनिट की ओर कदम भी सराहनीय हैं। गगल एयरपोर्ट विस्तार के लिए तीन हजार करोड़ दिए जा रहे हैं, जो हिमाचल में एयर कनेक्टिविटी को बढ़ाएंगे। कांगड़ा को पर्यटन राजधानी बनाने का संकल्प भी बजट ले रहा है। इसके बावजूद हमारा सफर अभी लंबा है।
केआर भारती
रिटायर्ड आईएएस
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