डॉंट वरी! हो जाएगा…
मित्रो! मेरे द्वारा जिस जिसने आज तक फर्जी प्रमाणपत्र प्राप्त किए हैं, वे सब पूरी ईमानदारी से ऊंची ऊंची जगह बैठ असली प्रमाणपत्रों का व्यापार कर रहे हैं, बीमार समाज का बेधडक़ उपचार कर रहे हैं।
अब अपने मुंह अपनी तारीफ क्या करनी। मैं नहीं, मेरा काम बोलता है। पिछले हफ्ते मेरे मुहल्ले का पुजारी मेरे पास आ सिर शान से उठाए बोला, ‘बंधुवर! कहते हुए आ तो शर्म रही है, पूजा करते करते बहुत थक गया हूं, अब मुझे भगवान होने का प्रमाणपत्र चाहिए था।’
‘बस इतनी सी बात! डोंट वरी! कल ले लेना! हम यहां बैठे किसलिए हैं?’ और मैंने अगले दिन वायदे के मुताबिक पुजारी को भगवान होने का चकाचक प्रमाणपत्र थमा दिया। अगली सुबह मुहल्ले के मंदिर गया तो देखा, मेरे द्वारा दिलाए प्रमाणपत्र को गले में डाले पुजारी भगवान के सिंहासन पर और असली के भगवान पुजारी के पटड़े पर।
इसी सिलसिले में कल मेरे एक मित्र का फोन आया। फोन उठाते ही बोले, ‘यार! उनको एक प्रमाणपत्र चाहिए था। हो जाएगा न?’
‘एक क्या, सौ लो, हजार लो। हम आए ही किसलिए हैं इस जीव जगत् में? कौनसा प्रमाणपत्र चाहिए जनाब को? किस बोर्ड का चाहिए? किस विश्वविद्यालय का चाहिए? किस ऑफिस का चाहिए? बस, थोड़ा सा वक्त दे देना प्लीज! माना, तुम्हारा दोस्त हूं। पर फर्जी काम के लिए थोड़ा समय तो मुझे भी चाहिए होता है न!’ मैंने अपने हर कस्टमर की तरह उनको भी आश्वस्त किया तो वे बोले, ‘उनको अपनी पत्नी की मृत्यु का प्रमाणपत्र चाहिए था।’ उन्होंने कहा तो मुझे काटो तो खून नहीं। उनमें यह कहते हुए रहा होगा, तो मैं कुछ कह नहीं सकता। उनके मुखारविंद से यह सुन गुस्सा तो बहुत आया, पर दोस्त अपने थे, इसलिए खामोश रहा। फिर पता नहीं क्यों, ऐसे में भी उनको सही गाइड करना अपना फर्ज समझा। सो मैंने उनको गाइड करते कहा, ‘तो इस मृत्यु प्रमाणपत्र लेने में मेरी जरूरत क्या? कमेटी से इजीली मिल जाएगा।’ ‘नहीं मित्र! वे चाहते हैं कि उनकी पत्नी तो जिंदा रहे, पर पत्नी के फर्जी मृत्यु प्रमाणपत्र से पत्नी के मरने के बाद वाले सारे बेनिफिट उनको मिल जाएं। बेचारे आजकल बहुत तंगी में चले हैं!’
‘तो उनसे कहो कि जीवित पत्नी का मृत्यु प्रमाणपत्र लेने के लिए सबसे पहले वे सरकारी कागजों में शमशानघाट के असली कर्मचारी के कर कमलों द्वारा अपनी पत्नी का कागजी अंतिम संस्कार करवाएं। जब उसका शमशानघाट के कर्मचारी के हाथों कागजी अंतिम संस्कार हो जाए तो उसके बाद वे मृत्यु ऑफिस जाकर मुत्यु प्रमाणपत्र जारी करने वाले अधिकारी की सेवा पानी करें। परम सत्य है, जहां सेवा, वहां मेवा। जो वे सेवा पानी करवाने के बाद भी आनाकानी करें तो बीच में हजार-दो हजार दे दलाल को डाल दें। मेरे जैसे दलालों की ऑफिसों में कोई कमी नहीं। एक ढूंढो, दस मिलेंगे। वैसे भी अब एक से महानों ने देश की रखवाली करने के बदले दलाली का बिजनेस शुरू कर रखा है। अपने समाज में नागरिक कम तो दलाल अधिक हैं। पैसे देखकर यहां कौन नहीं बिक जाता?’ ‘फिर?’ लगा जैसे वे मेरी बातों को गहनता से ले रहे थे, ‘जब वहां से उनकी जीवित पत्नी की फर्जी मृत्यु का मृत्यु प्रमाणपत्र मिल जाए तो उसे वे जहां चाहते हों वहां पेश कर दें। अगर बीच में कोई दिक्कत आए तो बता देना। बंदा जरूरतमंदों के नेक कामों के लिए हरदम हाजिर है’, मैंने कहा तो वे इतने प्रसन्न कि मानो उनको ही…।
अशोक गौतम
ashokgautam001@Ugmail.com
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