व्यसनों को छोडऩा भी पुरुषार्थ…
जो पुरुषार्थ करते हैं, उन्हें आगे बढऩे से कोई नहीं रोक सकता। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पुरुषार्थ ही काम आता है। फिर वह पुरुषार्थ चाहे अर्थ का हो या धर्म का। पुरुषार्थ, पुरुषार्थ होता है। वर्तमान युग में व्यसनों के चक्र से बचने वाले को भी पुरुषार्थी समझना चाहिए। पग-पग पर आज व्यसनों का बाजार लगा है। इस बाजार की हवा से आप दूर रहें, यह आपके पुरुषार्थ से ही संभव है।
व्यसनों से बचकर चलने वालों के साथ समृद्धि चलती है। जो व्यसन के जाल में फंस गया, वह दरिद्रता को आमंत्रण देता है। सज्जन व्यक्ति व्यसनग्रस्त लोगों से व्यसन त्यागने हेतु उन्हें प्रेरित करके उनका कल्याण चाहता है। सरकार भी चाहती है कि समाज व्यसनों से मुक्त बने। परंतु इसके लिए समूह समाज को मिलकर काम करना होगा।
-कांतिलाल मांडोत, सूरत
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