सीमित आय से सुख का बजट
यह केंद्र सरकार का भी दायित्व बनता है कि वह बिना किसी राजनीतिक भेदभाव के गैर भाजपा शासित राज्यों को भी उदार वित्तीय मदद मुहैय्या करवाए ताकि उन राज्यों विशेषकर हिमाचल जैसे दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों वाले राज्य के नागरिक विकास की दौड़ में पीछे न छूट जाएं…
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू ने सोमवार को अपनी सरकार के कार्यकाल का तीसरा बजट पेश करते हुए सबसे पहले प्रदेश की अर्थव्यवस्था को लेकर जीएसटी से कम होती आय, केंद्रीय ग्रांटों में कमी और निरंतर कम होती आरडीजी ग्रांट का जिक्र करते हुए इस बात को स्वीकार किया कि 2025-26 का साल प्रदेश की अर्थव्यवस्था के लिए उनकी नजर में पिछले कई दशकों में सबसे चुनौतीपूर्ण वर्ष रहने वाला है। लेकिन वे अपने बजट भाषण में अर्थव्यवस्था को सुधारने का कोई रोडमैप भी प्रस्तुत नहीं कर पाए। अपने बजट भाषण की शुरुआत में ही उन्होंने कांग्रेस सरकार द्वारा सत्ता संभालने के तुरंत बाद नाजुक वित्तीय स्थिति, पनपते खनन माफिया, पूर्व सरकार द्वारा लापरवाही से की गई भरपूर फिजूलखर्ची का उल्लेख करते हुए पिछली सरकार द्वारा कई सरकारी भवनों तथा अन्य पूंजीगत कार्यों का बिना बजटीय प्रावधानों के ही निर्माण करने और बिना जरूरत के संस्थानों को खोलने का आरोप लगाते हुए बेहिसाब कर्ज लेने का उल्लेख भी किया। इसी तरह वे कर्मचारियों के प्रति देय वेतन आयोग की देनदारियों, बकाया महंगाई भत्ते और डीए एरियर्स के भुगतान का कोई रास्ता निकालते भी नजर नहीं आए।
अपने बजट में वे कर्मचारियों को मई 2025 से तीन फीसदी डीए भुगतान की घोषणा तो करते हैं लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि कर्मचारियों/पेंशनरों को जुलाई 2023 से 4 प्रतिशत डीए लागू है, के बारे में उनके अफसर उन्हें बताना क्यों भूल गए, ये समझ से परे है। अपनी अधिकांश वित्तीय मांगें पूरी न होने से सोशल मीडिया में कर्मचारियों और पेंशनरों की टिपणियों में घोर निराशा एवं असंतोष की भावना दिख रही है। मुख्यमंत्री सुक्खू ने विस्तारपूर्वक आरडीजी ग्रांट यानी राजस्व घाटा अनुदान का विस्तृत ब्यौरा सदन के समक्ष रखा और बताया कि वर्ष 2021-22 में आरडीजी ग्रांट 10 हजार 949 करोड़ रुपए थी, इस वित्तीय वर्ष अर्थात 2024-25 में राजस्व घाटा अनुदान राशि घटकर 6 हजार 258 करोड़ रुपए हो गई और अब आने वाले साल 2025-26 में यह मात्र 3 हजार 257 करोड़ रुपए रह जाएगी। घटती आरडीजी ग्रांट और ऋण लेने पर केंद्र द्वारा थोपी गईं बंदिशें ही सरकार के गले की फांस बनी हुई हैं। ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री और उनकी अफसरशाही के पास वित्तीय चुनौतियों से निपटने का कोई तर्कसंगत उपाय नहीं बचा है और सुक्खू सरकार के समक्ष अब अगले केंद्रीय वित्तायोग की सिफारिशों के बाद ही शायद कुछ राहत के आसार बन पाएं। उनके अनुसार 2025-26 के बजट प्रस्तावों के अनुसार प्रति 100 रुपए व्यय में से, वेतन पर 25 रुपए, पेंशन पर 20 रुपए, ब्याज अदायगी पर 12 रुपए, ऋण अदायगी पर 10 रुपए, स्वायत्त संस्थानों के लिए ग्रांट पर 9 रुपए, जबकि शेष 24 रुपए पूंजीगत कार्यों सहित अन्य गतिविधियों पर व्यय किए जाएंगे। इस प्रकार से देखें तो पिछले वर्ष के मुकाबले अब विकास कार्यों के लिए सौ रुपए में से महज 24 रुपए ही बचेंगे। सवाल ये नहीं है कि कर्मचारियों/पेंशनरों और ऋण भुगतान पर राज्य बजट का अधिकांश रुपया खर्च हो रहा है, बल्कि मुद्दे की बात यह है कि सरकार की इन्कम उस अंदाज में नहीं बढ़ रही है कि वह अपनी देनदारियों के साथ-साथ विकासात्मक गतिविधियों को अमलीजामा पहना सके।
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह ने वर्ष 2025-26 के लिए 58 हजार 514 करोड़ रुपए का बजट प्रस्तुत करते हुए कुल राजस्व प्राप्तियां 42 हजार 343 करोड़ रुपए रहने का अनुमान दर्शाया है तो वहीं कुल राजस्व व्यय 48 हजार 733 करोड़ रुपए अनुमानित बताया है। उनके अनुसार कुल राजस्व घाटा 6 हजार 390 करोड़ रुपए अनुमानित रहेगा और राजकोषीय घाटा 10 हजार 338 करोड़ रुपए अनुमानित रहेगा। हिमाचल में प्रति व्यक्ति आय 257212 रुपए पर पहुंच गई है और सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) में 10.2 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 2 लाख 32 हजार 185 करोड़ रुपए अनुमानित दर्शाई गई है। मुख्यमंत्री ने इस वर्ष सभी श्रेणियों की 25 हजार भर्तियां करने की घोषणा भी अपने बजट भाषण में की है जिससे बेरोजगार युवाओं को नौकरियां मिलने की संभावनाएं बढ़ेंगी। मुख्यमंत्री सुक्खू ने अपने बजट प्रस्तावों द्वारा अपने पूर्ववर्ती वित्त मंत्रियों का ही अनुसरण करते हुए ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास हेतु कृषि, बागवानी, पशुपालन व संबद्ध क्षेत्रों का विकास एवं विस्तार, पर्यटन विस्तार, समाज के सभी वर्गों का उत्थान एवं कल्याण, स्वरोजगार के क्षेत्र में नई घोषणाओं, हरित ऊर्जा, हरित हिमाचल व स्वच्छ हिमाचल, स्वास्थ्य सेवाओं का आधुनिकीकरण व शिक्षा का रूपांतरण, नशामुक्त हिमाचल, स्वच्छ पेयजल एवं सीवरेज सुविधाओं के क्षेत्र में विस्तार एवं सुदृढ़ीकरण और परिवहन, उद्योग, पुलों एवं सडक़ों जैसे क्षेत्रों के लिए अनेक घोषणाएं की हैं। लेकिन कम वित्तीय संसाधनों और बढ़ती देनदारियों से उनकी सरकार कैसे निपटेगी, इसका कोई उपाय नहीं बता सकी है। दूसरी तरफ अमरीकी बहुराष्ट्रीय वित्तीय सेवा कंपनी मार्गन स्टेनली के अनुसार भारत 2028 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। ऐसे में यह केंद्र सरकार का भी दायित्व बनता है कि वह बिना किसी राजनीतिक भेदभाव के गैर भाजपा शासित राज्यों को भी उदार वित्तीय मदद मुहैय्या करवाए ताकि उन राज्यों विशेषकर हिमाचल जैसे दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों वाले राज्य के नागरिक विकास की दौड़ में पीछे न छूट जाएं। हिमाचल सरकार को भी लोकलुभावन घोषणाओं से बचते हुए अपने वित्तीय संसाधनों का नियोजन मितव्ययिता से करना होगा और पहाड़ जैसे कर्ज से कैसे मुक्ति मिले, इसके लिए विशेष उपाय करने पड़ेंगे, तभी राज्य की डगमगाती अर्थव्यवस्था पटरी पर आ पाएगी। देखा जाए तो मुख्यमंत्री सुक्खू का यह बजट परंपरा से हटकर हिमाचल की अर्थव्यवस्था में किन्हीं क्रांतिकारी व्यापक बदलावों को रेखांकित करने वाला बजट भी नहीं कहा जा सकता है।
अनुज आचार्य
लेखक बैजनाथ से हैं
Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also, Download our Android App or iOS App