World Women’s Day : सनातन धर्म में नारी लक्ष्मी है, सरस्वती है और दुर्गा भी
आज 8 मार्च को विश्व महिला दिवस मनाया जा रहा है। यह अवधारणा मूल रूप से पश्चिम की देन है। इस दिन को खास बनाने की शुरुआत आज से 115 बरस पहले यानी 1908 में तब हुई, जब करीब पंद्रह हजार महिलाओं ने न्यूयॉर्क शहर में एक परेड निकाली। पश्चिम में महिलाओं के साथ जो भेदभाव होता था, शोषण होता था, उसके विरोध में इस दिन को मनाने की शुरुआत हुई। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को औपचारिक मान्यता 1975 में उस वक्त मिली, जब संयुक्त राष्ट्र ने भी यह जश्न मनाना शुरू कर दिया। महिला की स्थिति और स्थान को लेकर यदि भारतीय संदर्भों को पकडऩे का प्रयास करें, तो यहां महिला की शक्ति के रूप में उपासना वर्षों से होती आई है।
नवरात्र में कन्या पूजन, शिवरात्रि में शिव के साथ शक्ति की उपासना, भगवान के अर्धनारीश्वर स्वरूप की कल्पना इस बात का द्योतक है कि भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से ही नारियों का स्थान सर्वोपरि था। उन्हें उचित मान-सम्मान तथा पुरुषों के समकक्ष स्थान यानी समानता या कई मामलों में तो इन्हें पुरुषों से भी अधिक महत्त्व प्राप्त था। सनातन मान्यता ने महिला शक्ति को सदैव सम्मानीय स्थान प्रदान किया है। भारतीय संस्कृति में स्त्री को सशक्त और पूजनीय माना गया है। स्त्री को जीवन के विभिन्न रूपों जैसे कि मां, बहन, पत्नी और बेटी के रूप में सम्मान प्रदान किया जाता रहा है और उसे जीवन के स्रोत के रूप में सम्मानित किया जाता है।
‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।।’
अर्थात, जहां स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं और जहां स्त्रियों की पूजा नहीं होती, उनका सम्मान नहीं होता, वहां किए गए समस्त अच्छे कर्म भी निष्फल हो जाते हैं। इस प्रकार महिला दिवस के उपलक्ष्य में जिस महिला सम्मान की बात हो रही है, वह मूल्यबोध भारतीय समाज के अवचेतन मन में सदैव से रहा है। भारत में तो मां लक्ष्मी धन-समृद्धि की देवी हैं, मां सरस्वती विद्या और ज्ञान की देवी हैं और मां दुर्गा शक्ति का स्वरूप मानी जाती हैं। अत: ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:’ का उद्धरण न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं का प्रतीक है, बल्कि यह सामाजिक चेतना को भी प्रतिबिम्बित करता है। यदि एक अन्य दृष्टि से देखें तो नारी शक्ति के महत्त्व को शिव और शक्ति के रूप में व्याख्यायित किया गया है। भारतीय दर्शन में शिव और शक्ति का अद्वैत संबंध सृष्टि की गूढ़तम अवधारणा को प्रकट करता है। यदि शिव को सृष्टि का मूल तत्व माना जाए, तो शक्ति उसकी गतिशीलता और स्पंदन का कारण है।
शिव बिना शक्ति के केवल एक निर्जीव, शून्य और अचल तत्व रह जाते हैं, जबकि शक्ति स्वयं अस्तित्व में आने के लिए शिव पर निर्भर है। इसीलिए शिव और शक्ति का मिलन ही सृष्टि की रचना, संचालन और परिवर्तन का कारण बनता है। इस प्रकार से भारतीय संस्कृति में नारी को सदैव सर्वोच्च सम्मान दिया गया है। वैदिक काल से लेकर प्राचीन भारत तक, नारी को शिक्षा, नेतृत्व और सामाजिक निर्णयों में भागीदारी का अधिकार प्राप्त था। हमारी स्व-चेतना में नारी को शक्ति, ज्ञान और सृजन का प्रतीक माना गया है। परंतु कुछ बाह्य प्रभावों, जैसे आक्रांताओं के आक्रमण और बाद में हम पर थोपी गई औपनिवेशिक सोच के कारण समाज में महिलाओं की स्थिति में गिरावट आई। धीरे-धीरे हमारी चेतना पर अज्ञानता का पर्दा पड़ गया। आज महिला दिवस के अवसर पर हमें अपने गौरवशाली अतीत को पुन: स्मरण करना आवश्यक है। हमें यह समझना होगा कि हमारी संस्कृति मूलत: महिला सशक्तिकरण की समर्थक रही है। समाज की सच्ची प्रगति तभी संभव है, जब महिलाएं अपनी पूर्ण क्षमताओं को विकसित कर सकें और राष्ट्र निर्माण में समान भागीदारी कर सकें।
-डा. रविंद्र सिंह भड़वाल
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