रावण से राम
ध्यान वह विधि है जो हमें आंतरिक शक्ति देता है और ध्यान के लिए सांसों पर नियंत्रण, मौन की साधना, आत्म निरीक्षण और सकारात्मक विचार बहुत सहायक होते हैं। यह तो दुनिया की रीत ही है कि जब तक हम समर्थ हैं, हमारे समर्थक भी हैं, लोग हमारे साथ हैं। कोई हमारी प्रशंसा करता है, कोई हमारी चापलूसी करता है, कोई हमारी सेवा करता है, और कोई हमारी सहायता करता है, कोई हमें कोई सही राह सुझाता है, लेकिन जैसे ही हम सेहत से बेजार हो जाते हैं या धन कमाने के काबिल नहीं रह जाते, या हम अपने पद से रिटायर हो जाते हैं तो समर्थकों की भीड़ एकदम से गायब हो जाती है। इससे भी बड़ा सच यही है कि खुद हम भी ऐसे ही हैं। जब तक कोई व्यक्ति हमारे काम का होता है, हम उसके आसपास मंडराते हैं, लेकिन जैसे ही वह व्यक्ति हमारे लिए अनुपयोगी हो जाता है, हम बदल जाते हैं…
कहा जाता है कि हाथ की सभी उंगलियां बराबर नहीं होतीं। एक ही परिवार के लोग हर बात पर आपस में सहमत हों ही, यह कभी देखने में नहीं मिलता। इसलिए यह सोचना कि दुनिया के सभी लोग एक बात पर सहमत हो जाएं, असंभव ही नहीं, अव्यावहारिक भी है। दुनिया में हर तरह के लोग हैं। उनकी परिस्थितियां अलग हैं, परिवेश अलग हैं, संस्कृतियां अलग हैं, जरूरतें अलग हैं, भावनाएं अलग हैं, इसलिए किसी एक घटना या स्थिति पर उनकी प्रतिक्रिया अलग होना स्वाभाविक ही है। अलग जरूरतें, अलग स्वभाव, अलग सोच, अलग नीयत। कोई अच्छा, कोई बुरा। कोई दानी, कोई लुटेरा। कोई समर्थ, कोई कमजोर। कोई चरित्रवान, कोई चरित्रहीन। हर कोई एक-दूसरे से अलग। किसी की किसी दूसरे से तुलना संभव ही नहीं। जब समाज में इतने तरह के लोग हों तो समाज में समन्वय के लिए कुछ नियमों और परंपराओं की आवश्यकता होती है, होती ही है।
समाज में सुख, शांति और समन्वय की इसी आवश्यकता के मद्देनजर ‘सहज संन्यास मिशन’ के संस्थापक, आदि गुरुदेव स्वामी प्रेमबोधि जी ने समाज के मार्गदर्शन की पहल की। भारतवर्ष सदैव से ऋषियों-मुनियों का देश रहा है। इन महान संतों का दिया हुआ ज्ञान भारतवर्ष की आत्मा की पहचान है। इन सबसे प्रेरणा लेकर आदि गुरुदेव स्वामी प्रेमबोधि जी ने हमें रास्ता दिखाया और सात्विक जीवन जीने के कुछ नियमों की जानकारी दी। इन नियमों में शामिल हैं, सबको बिना कारण प्रेम करना, उनकी कमियों, भूलों और गलतियों को माफ करना, अपनी कमियों, भूलों और गलतियों के लिए खुद को माफ करना, चुनौतियों में हिम्मत रखना और सदैव प्रार्थना करना, डर, झूठ, धोखा, ईष्र्या, क्रोध आदि न करना, अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना, समय से सोना और पूरी नींद लेना, जहां तक हो सके सबकी सहायता करना, मानसिक, वाचिक, कार्मिक हिंसा से बचना, हर रोज बिना कारण सबको मन ही मन अथवा स्पष्ट रूप से प्रेम का, स्नेह का संदेश भेजना, सदैव प्रसन्नचित्त रहते हुए इस जीवन और इसकी सभी सुविधाओं के लिए परमात्मा का शुक्रिया करना। ‘सहज संन्यास मिशन’ न तो कोई धर्म है, न संप्रदाय है, यह केवल एक सहज-सरल जीवन-पद्धति है जिसे विश्व भर का कोई भी व्यक्ति किसी भी उम्र में अपना सकता है।
इसके लिए न घर छोडऩे की आवश्यकता है, न किसी विशेष परिधान की आवश्यकता है। अपनी सोच में सकारात्मक बदलाव ही सहज संन्यास मिशन का उद्देश्य है ताकि हम सब स्वस्थ और उपयोगी जीवन जी सकें। जब हमारे मन में सच्ची मानवता का उदय होता है तो हम खुद-ब-खुद यह सोचने लगते हैं कि जो दुख मुझे मिला वह किसी और को न मिले और जो सुख-सुविधाएं मुझे उपलब्ध हैं वो हर किसी को मिलें। जाति, धर्म आदि के बंधनों से परे तब हम यह समझ जाते हैं कि हम अनंत हैं, सीमाहीन हैं, तो खुद पर सीमाएं क्यों लादें। अच्छी सोच और अच्छे कर्म ही हमारा नजरिया हो जाएं। सांसारिक उदाहरणों की बात करें तो हम ब्लड प्रेशर बढ़ जाने के डर से नमक छोड़ देते हैं, शूगर के डर से चीनी खाना छोड़ देते हैं तो दुष्कर्मों के डर से अनीतिपूर्ण कर्मों को क्यों नहीं छोड़ पाते? कर्मों का फल केवल और केवल हमें ही भोगना पड़ेगा, यह ज्ञान नहीं अनुभव है। यदि हम सकारात्मक सोच चाहते हैं और हमें समझ न आ रहा हो कि इसका तरीका क्या है, रास्ता क्या है, कहां से शुरू करें, कैसे शुरू करें, तो उसके लिए हमें कुछ आसान से उपाय करना हितकर होता है। इनमें शामिल हैं अपने सांसों पर नियंत्रण करना सीखना, मौन की साधना करना, आत्म निरीक्षण के लिए बीच-बीच में एकांतवास करना, अच्छी सेहत के लिए सादा भोजन लेना, चबा-चबा कर खाना और व्रत रखना, अंतर्मन की यात्रा के लिए सत्संग करना, ग्रंथों और सत्साहित्य से सीखते-समझते रहना आदि। जीवन के उद्देश्य को समझकर जब हम जीवनयापन करना आरंभ करते हैं तो दिमाग में धुंधलापन नहीं रहता और हमें स्पष्ट रूप से अपनी राह का पता होता है, हम दुविधा में नहीं रहते और निश्चयपूर्वक अपनी राह पर चलते रहते हैं। बाधाएं कुछ कम हो जाती हैं और उनसे पार पाना आसान हो जाता है। यह समझना आवश्यक है कि हम शरीर की कितनी ही रक्षा क्यों न कर लें, कई ऐसे कारण हो सकते हैं कि हम शरीर से असमर्थ हो जाएं। कोई एक दुर्घटना, कोई एक बीमारी हमें शरीर से असमर्थ कर सकती है।
इसी प्रकार बहुत बार ऐसा हो सकता है कि हमारे पास धन के नाम पर कुछ भी न बचे, और यह भी हो सकता है कि जब हमारे पास धन न हो तो हम कर्ज में डूबे हुए हों। ऐसे समय में धीरज, विनम्रता और ध्यान ही हमारे काम आते हैं। ध्यान वह विधि है जो हमें आंतरिक शक्ति देता है और ध्यान के लिए सांसों पर नियंत्रण, मौन की साधना, आत्म निरीक्षण और सकारात्मक विचार बहुत सहायक होते हैं। यह तो दुनिया की रीत ही है कि जब तक हम समर्थ हैं, हमारे समर्थक भी हैं, लोग हमारे साथ हैं। कोई हमारी प्रशंसा करता है, कोई हमारी चापलूसी करता है, कोई हमारी सेवा करता है, और कोई हमारी सहायता करता है, कोई हमें कोई सही राह सुझाता है, लेकिन जैसे ही हम सेहत से बेजार हो जाते हैं या धन कमाने के काबिल नहीं रह जाते, या हम अपने पद से रिटायर हो जाते हैं तो समर्थकों की भीड़ एकदम से गायब हो जाती है। इससे भी बड़ा सच यही है कि खुद हम भी ऐसे ही हैं। जब तक कोई व्यक्ति हमारे काम का होता है, हम उसके आसपास मंडराते हैं, लेकिन जैसे ही वह व्यक्ति हमारे लिए अनुपयोगी हो जाता है, हमारा दृष्टिकोण एकदम से बदल जाता है। हम जिसकी प्रशंसा करते नहीं अघाते थे, हमें उसमें दोष ही दोष नजर आने शुरू हो जाते हैं। लेकिन अगर हम निस्वार्थ होकर सबसे प्रेम करना, उन्हें और खुद को माफ करना, डर, झूठ, धोखा, ईष्र्या, क्रोध आदि न करना, सबकी सहायता करना, कटु वचन न बोलना और सदैव प्रसन्नचित्त रहना सीख लें तो हम रावण से राम बन सकते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि हर व्यक्ति में राम भी है और रावण भी। हम अच्छाई और बुराई का मिश्रण हैं। हमारी आध्यात्मिक यात्रा किसी पूजा स्थल में नहीं है, किसी खास तरह के कपड़ों में नहीं है, बल्कि अंतर्मन की उस यात्रा में है जहां हम सकारात्मक हो जाते हैं, प्रेममय हो जाते हैं और फलस्वरूप आनंदमूर्ति बन जाते हैं। रावण से राम बनने तक की यह यात्रा ही हमारे जीवन का लक्ष्य है। यही होना चाहिए।
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स्पिरिचुअल हीलर
सिद्ध गुरु प्रमोद निर्वाण
गिन्नीज विश्व रिकार्ड विजेता लेखक
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