मन से समझने का प्रयास

ओशो
संवाद का मतलब होता है कि दूसरे को खुले मन से समझने का प्रयास करना। संवाद बहुत ही दुर्लभ और सुंदर घटना है, क्योंकि उससे दोनों ही समृद्ध होते हैं। सच तो यह है कि जब तुम बोल रहे हो या तो यह बहस हो सकती है, शाब्दिक झगड़ा, मैं ठीक और तुम गलत यह सिद्ध करने का प्रयास या संवाद। सत्य तक पहुंचने के लिए, एक-दूसरे का हाथ थाम लेना, राह ढूंढऩे में एक-दूसरे की मदद करना संवाद है।
यह साथ होना है, यह सहयोग है, सत्य को पाने के लिए यह लयबद्ध प्रयास है। यह किसी तरह से झगड़ा नहीं है, किसी हालत में नहीं। यह मित्रता है, सत्य पाने के लिए साथ-साथ चलना, सत्य पाने में एक-दूसरे की मदद करना। अभी किसी के पास सत्य नहीं है, लेकिन जब दो लोग ढूंढऩे का प्रयास करते हैं, सत्य के बारे में एक साथ खोजने लगते हैं, यह संवाद है और दोनों ही समृद्ध होते हैं।
और जब सत्य मिलता है, तब वह न तो मेरा होता है, न ही तुम्हारा। जब सत्य पाया जाता है, यह हम दोनों से बड़ा है, जिन्होंने खोजने में सहभागिता की, यह दोनों से बड़ा है, यह दोनों को घेर लेता है और दोनों समृद्ध होते हैं। अतीत में शिष्यों ने संगठन खड़े किए हैं।
यह उनका रिश्ता था कि हम ईसाई हैं, कि हम हिंदू हैं, हम एक धर्म के हैं, एक विश्वास के हैं और क्योंकि हम एक विश्वास रखते हैं, हम भाई और बहने हैं। हम विश्वास के लिए जिएंगे और विश्वास के लिए मरेंगे। सारे संगठन शिष्यों के बीच बने रिश्तों से पैदा हुए।
सच तो यह है कि दो शिष्य एक-दूसरे से जरा भी जुड़े नहीं हैैं। प्रत्येक शिष्य अपनी निजी क्षमता के अनुसार गुरु से जुड़ा है। गुरु लाखों शिष्यों से जुड़ सकता है, लेकिन संबंध व्यक्तिगत है, न कि संगठन। शिष्यों में कोई रिश्ता नहीं होता।
हां, उनमें एक तरह की मैत्री होती है, एक तरह का प्रेमपूर्ण नाता। मैं रिश्ते शब्द को टाल रहा हूं क्योंकि यह बंधन है। मैं इसे मित्रता भी नहीं कह रहा हूं, बल्कि मैत्री,क्योंकि वे सह यात्री हैं एक ही मार्ग पर चल रहे हैं, गुरु के साथ प्रेम करते, पर वे गुरु के द्वारा एक-दूसरे से जुड़े हैं। वे सीधे एक-दूसरे से नहीं जुड़े हैं।
अतीत में यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण बात हुई है कि शिष्य संगठन बन गए आपस में जुडक़र और वे सभी अज्ञानी थे। और अज्ञानी लोग दुनिया में नासमझी पैदा कर देते हैं। सभी धर्मों ने ठीक यही किया है। मेरे लोग मेरे से व्यक्तिगत रूप से जुड़े हैं। और क्योंकि वे सभी एक ही मार्ग पर हैं, निश्चित ही वे एक-दूसरे से परिचित हो जाते हैं।
एक मैत्री पैदा होती है, एक प्रेमपूर्ण माहौल बनता है, लेकिन इसे मैं किसी तरह का संबंध नहीं कहना चाहता। शिष्यों के सीधे आपस में जुडऩे के कारण हम बहुत अधिक दुख देख चुके हैं, धर्म, वर्ग, मत पैदा करके और आपस में झगड़े।
वे और कुछ नहीं कर सकते। कम से कम मेरे साथ, इसे याद रखो तुम एक-दूसरे के साथ किसी भी तरह से नहीं जुड़े हो। बस एक तरह की मैत्री, पक्की मित्रता नहीं, पर्याप्त है और अधिक सुंदर है, और भविष्य में मानवता को किसी तरह के नुकसान की संभावना के।
एक-दूसरे से जुडऩे के बजाय एक-दूसरे को समझने का प्रयास करना चाहिए। यह तभी संभव होगा जब आपके बीच संवाद का सिलसिला होगा। आप एक-दूसरे के विचारों को खुले मन से अपनाएंगे। सत्य कड़वा जरूर लगता है, लेकिन जो इस राह पर चलते हैं, उनकी विजय होती है।
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