किसने लिखी मौत की कहानी

By: Mar 20th, 2025 12:02 am

ये मौत के सन्नाटे तेरी कब्र के पास टूटे, तू किस हवा का कफन जो घर से दूर मिला। पावर कारपोरेशन के चीफ इंजीनियर विमल नेगी का अचानक गायब होना अंतत: कफन में प्रश्न बनकर लौट आया। दस मार्च से गायब एक उच्च अधिकारी गोबिंद सागर में तैरती लाश बन गया, तो कई शंकाओं और चिंताओं के चिन्ह भी वहीं उभर आएंगे। इस मौत के बीच कई रहस्यों के द्वंद्व और मानव जीवन की त्रासदियों के प्रसंग दिखाई दे रहे हैं, लेकिन हिमाचल की नाजुक हिस्ट्री के ये लम्हे पीड़ाजनक हैं। स्व. विमल नेगी अगर सफल नहीं होते, तो पावर कारपोरेशन की अहमियत में एक बुलंद शख्सियत के अधिकारी न होते। उनके जीवन में विभागीय सफलताओं की सीढिय़ां न होतीं और न ही उनके लापता होने की खबर इतनी मनहूस और दुखदायी न होती। इस मौत का अंजाम इतना सरल भी नहीं है कि किसी फुसफुसाहट या अफवाह में समझा जाए। वह बतौर अधिकारी मरे या एक पारिवारिक व्यक्ति के रूप में इतने कठिन दौर तक पहुंचे। जाहिर तौर पर यह घटना असाधारण मानवीय प्रवृत्तियों, चुनौतियों, संकटों और दबावों की अंतहीन कहानी है और हर सूरत इसके हर पहलू की जांच होनी चाहिए। पावर कारपोरेशन की व्याख्या इस मौत के संदर्भ में होनी चाहिए। यह एक मुश्किल वित्तीय प्रबंधन, राजनीतिक कुपोषण और सत्ता के अभिभाषण की प्रयोगशाला में पलता निगम है, जो लाभ-हानि की ईमानदारी से पालन नहीं कर पाता। एक घाटे के निगम के मुखिया को सफल होना है, तो उसे सियासी दबाव को साधना भी आना होगा। अमूमन ऐसे पदों पर इंजीनियरिंग और सार्वजनिक व्यापार के सिद्धांत काम नहीं आते। यहां हर वक्त दो जमा दो, चार नहीं होते।

जाहिर है ऐसी कसौटियों के बीच कई अधिकारी अपने पद और व्यक्तित्व के बीच संतुलन नहीं बना पाते। असंतुलन की एक दूसरी वजह पारिवारिक परिस्थितियां भी हो सकती हैं। जिंदगी के कई अनुपात हमारे कत्र्तव्यों की दक्षता के कारण भी बिगड़ सकते हैं। बहरहाल, विमल नेगी का शव असाधारण जांच की विनती कर रहा है। इस मौत के अगर अनेक कारण हो सकते हैं, तो कई संदेश राज्य को भी मिलते हैं। जीवन की कशमकश में इर इनसान को जीने की कला सीखनी होगी। विमल नेगी इस इबारत को मौत के मुहाने तक खुद ले गए, तो इन कमजोर कडिय़ों के बीच हर नागरिक को परिवेश के पहलुओं को सशक्त बनाने के लिए अपनी भूमिका निभानी होगी। शायद इस दुखद घटना के समस्त कारणों में कहीं समाज के फंदे भी रहे हों। बहरहाल यह जांच का विषय है और इसे गहरे तक छानने की जरूरत है। इस मौत के बाद भी जिंदगी चलती रहेगी। कल जिस कुर्सी पर विमल नेगी थे, कल कोई और नेम प्लेट स्वागत करेगी, लेकिन अधिकारियों-कर्मचारियों के विभिन्न दबावों को समझने की जरूरत बढ़ रही है। तनाव तो पद, उत्तरदायित्व, स्थानांतरण, सियासी दखल से सियासी घोषणाओं तक के रहते हैं। हर राजनीतिक फैसले का खोट अंतत: प्रशासनिक असफलता, कानूनी कार्रवाइयों और सामाजिक उलाहना से ही निकलता है। आज तक किसी नेता पर कार्रवाई नहीं हुई, लेकिन जहां सजा निश्चित थी, वहां सरकारी अधिकारी या कर्मचारी को ही अपनी गर्दन गंवानी पड़ी। ऐसे में सरकारी नौकरी के भीतर कुछ गलतियां निजी तौर पर लोभ-लालच से घिरी हो सकती हैं, फिर भी व्यवस्था के बीच सरल सिद्धांतों और निष्पक्ष तौर-तरीकों से जी पाना कई बार असहनीय हो जाता है। विधानसभा में मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने कर्मचारियों-अधिकारियों की नियुक्तियों को लेकर आशाजनक संकेत दिए हैं। हिमाचल के जनसंख्या घनत्व व भौगोलिक स्थिति के अनुसार नियुक्तियों के पैरामीटर बदलें, तो उसके मायने कई विभागीय कसौटियों को कुशल बनाएंगे। सबसे अहम तो चिकित्सकीय सेवाओं को लेकर ऐसी नीतियों से उद्धार की उम्मीद हो जाती है। पहले ही सरकार राज्य स्तरीय कैडर के निर्माण में लगी है और अगर इसके साथ स्थानांतरण नीति का चित्रण हो जाए, तो प्रदेश में कार्यसंस्कृति की आबोहवा बदल जाएगी। हिमाचल में सरकारी कार्य संस्कृति की दृष्टि अति संकीर्ण होकर सियासी चाटुकारिता से सियासी कैडर में बदल रही है। नेताओं या पार्टियों की जीत-हार से सबसे पहले कार्य संस्कृति का नक्शा और नस्ल बदल जाती है। ऐसे में सुयोग्य व सक्षम अधिकारी भी सियासी दबाव का खिलौना बन जाते हैं। अगर आज भी विभिन्न निगमों व बोर्डों का प्रबंधन निष्पक्ष तरीके से अधिकारियों के सुपुर्द कर दिया जाए, तो अलाभकारी इकाइयां भी वित्तीय कौशल में अव्वल हो जाएंगी। सरकारी क्षेत्र में काम करने वालों की मौलिकता, निपुणता और क्षमता पर दबाव की सियासत को रोकने का एक उपाय निश्चित रूप से निष्पक्ष, स्वतंत्र व पारदर्शी ट्रांसफर पालिसी का अमल में लाना हो सकता है। देखते हैं सुक्खू सरकार इस दिशा में कितना आगे बढ़ती है।


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