आटा बूक और मौज कर…

By: Apr 18th, 2025 12:05 am

नेताजी सही फरमा रहे हैं कि आदमी चाहे तो अपना घर छह सौ रुपए महीने में आराम से चला सकता है और फिर बदखर्ची करो तो घर साठ हजार में भी नहीं चले। चूंकि देश को आगे बढ़ाना है, इसलिए मितव्ययिता से काम चलाना है। बचत करेंगे तो आगे काम आएगी। छह सौ में घर चलाने का फार्मूला मैं बताऊं। सब्जी मत बनाओ, गैस के चूल्हे पर चपाती मत सेंको और बिजली मत जलाओ, साथ ही कहीं आओ-जाओ नहीं। घर में बैठकर 24 रुपए किलो का कोरा आटा बूको तो आराम से काम चल जाएगा। अब आपको सब्जी-सलाद चाहिए, दालें चाहिए, रहने को घर चाहिए, उजाले को बिजली, पीने को दूध-पानी, तो भइया फिर तो हरि का नाम भजो। ये चीजें आम आदमी के उपयोग की हैं भी नहीं। यह तो सम्पन्न लोगों के लिए है कि वह घी से तर चपातियां, चार सब्जियां तथा देसी घी के गुलाब-जामुन रोज खाएं। आम आदमी सडक़ के किनारे बैठ कर केवल आटा बूक कर काम चलाए तो सरकार का काफी सारा बरडन कम हो जाता है। सारे पापड़ जनता के लिए बेलने पड़ रहे हैं बेचारी सरकार को। सब जगह बिजली 24 घंटे दो, शुद्ध जल पीने को दो, लोगों को रोजगार दो, उनकी संतानों के लिए पढ़ाई की व्यवस्था करो। आप अपने बच्चों को पब्लिक स्कूलों में इंग्लिश मीडियम से पढ़ाना चाहते हैं, तो ऐसे सपने लेने का आपको हक किसने दिया है। सरकारी स्कूल खुले हुए हैं, खुले शौचालय हैं और संतान को बड़ा बनाने की सोचोगे तो कैसे काम चलेगा। दूसरी ओर छह सौ रुपए में पूरे परिवार को भिक्षाटन की तरफ धकेल रही है, मेरे तो यह विरोधाभास समझ में आया नहीं। छह सौ रुपए में तो भिखारी ही बनेंगे लोग। क्योंकि पकी-पकाई रोटी भिक्षावृत्ति से ही मिलती है। सरकार ने रैनबसेरे खोल रखे हैं, घर नहीं है तो उनमें जाकर लेट जाओ।

पूरे रात-दिन उनमें पड़े रहो तथा मनरेगा से या सब्सिडी के छह सौ रुपए से घर चलाओ। नेताजी अकेले हर सुबह छह सौ रुपए का नाश्ता करते हैं, वे कर सकते हैं, क्योंकि उनके पास भ्रष्टाचार से कमाई किया हुआ काला धन है। दुनिया के तमाम ऐशो-आराम नेताओं और पूंजीपतियों के लिए हैं। आम आदमी को उनसे क्या लेना-देना? पैदल यात्रा करो तो डीजल-पैट्रोल का बढ़ता दाम भी नहीं सताएगा। मोपेड़, स्कूटर, कार, ये आम आदमी के लिए नहीं हैं। ये भी नेताओं के और उनकी बिगड़ी संतानों के लिए हैं। आपको तो कोरा आटा बूकना है, वह बूकते रहिए। चपातियां चार-छह खा जाता है। आटा ज्यादा बूक नहीं पाएगा तो आराम से घर चलेगा क्या, दौड़ेगा? बात समझदारी की कही है- बाकी अर्थ तो कुछ भी निकालते रहो। प्रति व्यक्ति आय भी हमारे यहां बहुत कम है, उसी में काम चलाना सीखो। पांव उतने ही फैलाने चाहिए, जितनी चादर हो। मैंगो मैन ने मैंगो मैन पार्टी बनाई है, वह भी यही सुविधाएं मुहैया कराएगी। पांच और सात सितारा होटलों का कीमती रहन-सहन और खाद्य तो इन बड़े नेताओं को छोड़ दीजिए। इनकी तरफ आप देखते भी क्यों हैं? किसी की होड़ या बराबरी मत करो। पड़ौसी मक्खन-ब्रेड दूध पी रहा है तो पीने दीजिए। आप तो अपने छह सौ रुपयों की सीमा में काम करिए। इसलिए भाई लोगो टीवी-फ्रिज-सोफा-बंगला-कार-कोठी, नौकर-चाकर, पढ़ाई-लिखाई, हाईजिनिक भोजन सब आपके लिए नहीं हंै। आधुनिक सुख-सुविधाएं नेताओं की हैं। इसलिए हे आम आदमी, केवल छह सौ कमा और उसी में काम चला तथा चुपचाप नेताजी को वोट दे दे ताकि वे सरकार बनाकर देश को लूटते रहें।

पूरन सरमा

स्वतंत्र लेखक


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