‘आतंकिस्तान’ का कबूलनामा
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने रहस्योद्घाटन किया है कि पाकिस्तान पिछले तीन दशकों से अमरीका, ब्रिटेन और पश्चिमी देशों के लिए आतंकवाद जैसा ‘गंदा धंधा’ कर रहा था। हमने आतंकियों को पालने-पोसने, टेऊनिंग देने और पैसा देने का काम किया है। जाहिर है कि पाकिस्तान में आतंकी संगठन सक्रिय रहे हैं। हमने बहुत बड़ी गलती की है, जिसका खामियाजा हमने भुगता है। हमने सोवियत संघ के खिलाफ 1980 और 90 के दशक में और फिर न्यूयॉर्क में 9/11 आतंकी हमले के बाद अमरीका का सहयोग नहीं किया होता, तो आज हमारा ‘टैऊक रिकार्ड’ (आतंकवाद के मामले में) कहीं बेहतर होता! पाक रक्षा मंत्री ने आरोप लगाया है कि अफगानिस्तान में अमरीका ने सोवियत संघ के खिलाफ जंग में आतंकियों को खुलकर समर्थन दिया था।’ बहरहाल सोवियत संघ का अस्तित्व खत्म हो चुका है। अमरीकी सेनाओं के अफगानिस्तान को छोड़ कर गए कई साल गुजर चुके। जो तालिबान वैश्विक पटल पर ‘आतंकवादी’ थे, वे आज अफगानिस्तान में हुकूमत कर रहे हैं, लेकिन आज अफगानिस्तान पाकिस्तान को ‘नंबर 1 दुश्मन’ मानता है और सरहद पर लड़ाई जारी है। वैसे तो पाकिस्तान के रक्षा मंत्री की कीमत दो टके की है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनके कबूलनामे को मान्यता दी जाएगी। उन्होंने अमरीका के ‘स्काई टीवी’ के एक लाइव शो में यह कबूला है कि पाकिस्तान आतंकियों का मुल्क है।
बहरहाल पाकिस्तान के मौजूदा हालात के मद्देनजर यह ‘नंगई वाला बयान’ है। अफगानिस्तान में लडऩे के बाद पाकिस्तान के आतंकियों और उनके आकाओं को एहसास हुआ कि वे भारत के खिलाफ जेहाद का इस्तेमाल कर सकते हैं, लिहाजा 90 के दशक से वर्ष 2000 तक दुनिया में जहां भी आतंकी हमले हुए, वहां पाकिस्तान की मौजूदगी और उसके सबूत पाए गए। भारत में भी जेहाद की आड़ में पाकपरस्त आतंकवाद और कश्मीर में अलगाववाद 90 के दशक में ही पनपे और फैलते गए। पाकिस्तान में आतंकियों को जेहादी ही नहीं, मुल्क के नायक और स्वतंत्रता सेनानी तक माना जाता रहा है। जिन आतंकियों ने कश्मीर के पहलगाम में नरसंहार किया था, पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री इसहाक डार उन्हें भी ‘स्वतंत्रता सेनानी’ मान रहे हैं। फिर वह संभावना जताने लगते हैं। चूंकि पाकिस्तान ‘फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स’ (फाट्फ) को लिखित आश्वासन दे चुका है कि उनके मुल्क में आतंकी मौजूद नहीं हैं और न ही हुकूमत आतंकी संगठनों को पैसा और पनाह देती है। पहलगाम नरसंहार के बाद पाकिस्तान में जो खलबली मची है, लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मुहम्मद सरीखे आतंकी संगठनों के मुख्यालयों में स्थित मस्जिदें और मदरसेे खाली कराए गए हैं। करीब 200 एकड़ में फैले लश्कर के मदरसों में पढऩे वाले करीब 2000 छात्र और मौलवी-मौलाना वहां से चले गए हैं। आतंकियों और छात्रों-मौलानाओं को सुरक्षित जगहों पर भेजा गया है। पाकिस्तान में ऐसा किस खौफ और संभावित हमले के मद्देनजर किया गया है? खबर तो यह भी है कि लश्कर के सरगना हाफिज सईद को एबटाबाद के ‘आईएसआई सेफ हाउस’ में रखा गया है। इसी इलाके में अलकायदा का सरगना ओसामा बिन लादेन छिपा था, जहां अमरीका के कमांडो सैनिकों ने उसे ढेर किया था। बहरहाल भारत ऐसी सूचनाओं और साक्ष्यों के आधार पर फाट्फ में, पाकिस्तान के खिलाफ शिकायत दर्ज कर सकता है और पाकिस्तान को ‘ग्रे लिस्ट’ में डालने का आग्रह कर सकता है। यदि फाट्फ ने पाकिस्तान पर कोई निर्णायक कार्रवाई की, तो दुनिया में उसे भीख तक नहीं मिल सकती। आईएमएफ और विश्व बैंक के कजऱ् मिलना तो बहुत दूर की कौड़ी है। पहलगाम नरसंहार के बाद प्रशासन ने स्थानीय 6 आतंकियों के घर नेस्तनाबूद कर दिए हैं, उन्हें मलबा या राख कर दिया गया है। करीब 175 संदिग्धों को हिरासत में लिया गया है और 14 स्थानीय आतंकियों की सचित्र सूची जारी की गई है। हम उन्हें ही ‘जयचंद’ करार दे रहे हैं। वे सभी पाकिस्तान के आतंकी संगठनों से जुड़े रहे हैं। एजेंसियों ने 64 ‘जयचंदों’ के घरों में छापे भी मारे हैं। बेशक भारत-पाकिस्तान के बीच ‘युद्ध’ की स्थितियां बन चुकी हैं। इनकी नियति अभी तय होनी है।
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