जयगांव। सिलीगुड़ी, दार्जिलिंग जिला, पश्चिम बंगाल — भारत के लिए जीवनरेखा माने जाने वाला ‘चिकन नेक कॉरिडोर’ आज एक बड़े भूराजनीतिक संकट के मुहाने पर खड़ा है। मात्र 22 किलोमीटर चौड़ा यह भूभाग भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों को मुख्य भूमि से जोड़ता है। लेकिन दुर्भाग्यवश, यह संवेदनशील इलाका आज भारत की सबसे बड़ी सामरिक चुनौती बन चुका है, और इस संकट में एक अनदेखा पहलू है: दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी जिलों का भूटान और बांग्लादेश के बीच के व्यापार में किया जा रहा ‘शांत’ उपयोग।
सिलीगुड़ी, जो प्रशासनिक रूप से पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले का हिस्सा है, भारत के लिए सामरिक दृष्टि से उतना ही अहम है जितना कारगिल और सियाचिन। लेकिन यहां की भौगोलिक और राजनीतिक स्थिति इतनी जटिल है कि इस क्षेत्र की सुरक्षा को लेकर भारत सरकार की नीति अस्पष्ट और कमजोर दिखती है। भूटान, जो भारत का परम मित्र राष्ट्र है, आज दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी जिलों का उपयोग करते हुए सीधे बांग्लादेश से व्यापार कर रहा है। यह व्यापारिक गलियारा भारत के भीतर होकर गुजरता है, लेकिन इस पर कोई कठोर निगरानी या नियंत्रण नहीं है। इससे बांग्लादेश को भारत के भीतर से व्यापार करने की अप्रत्यक्ष सहूलियत मिल रही है, और यही बात चीन को भी इस क्षेत्र में घुसपैठ करने के लिए प्रेरित कर रही है।
चीन और बांग्लादेश की रणनीति साफ है: भारत के इस नाजुक हिस्से को अस्थिर करो, और पूर्वोत्तर को मुख्यभूमि से काट दो। बांग्लादेश ने जहां लालमुनिरहाट में चीन के लिए एयरबेस प्रस्तावित किया, जो सिलीगुड़ी कॉरिडोर से महज 50 किलोमीटर की दूरी पर है, वहीं चीन इस पूरे क्षेत्र में डिजिटल और भौगोलिक घुसपैठ की तैयारी कर चुका है। चिकन नेक क्षेत्र का प्रशासनिक नियंत्रण पश्चिम बंगाल सरकार के हाथ में है। लेकिन इस क्षेत्र की सुरक्षा को लेकर कोई ठोस नीति नहीं है। ऐसे में विशेषज्ञों और स्थानीय रणनीतिक हलकों की यह पुरानी मांग दोबारा सिर उठा रही है कि क्या सिलीगुड़ी कॉरिडोर को केंद्र शासित प्रदेश घोषित करना ही एकमात्र समाधान है?
1954 के भारत-तिब्बत सीमा समझौते और 1962 के युद्ध के बाद यह स्पष्ट हो गया था कि भारत को अपनी संवेदनशील सीमाओं और गलियारों का सीधे नियंत्रण अपने हाथ में लेना होगा। लेकिन आज भी यह क्षेत्र राज्य सरकार की नीतियों की उपेक्षा का शिकार है। अगर इस क्षेत्र को केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया जाए, तो न सिर्फ यहां सुरक्षा बलों की तैनाती और गतिविधि आसान होगी, बल्कि रणनीतिक परियोजनाएं भी बिना किसी राजनीतिक बाधा के आगे बढ़ सकेंगी।
भारत ने बांग्लादेश को मिलने वाली ट्रांसशिपमेंट सुविधा को अप्रैल 2025 में समाप्त कर दिया। इसके जरिए बांग्लादेश भारत के बंदरगाहों का उपयोग कर तीसरे देशों में व्यापार करता था। इस एक फैसले ने बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को गहरा झटका दिया, खासकर उसका कपड़ा उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ। वहीं, भारत ने इसके विकल्प के रूप में कला दान मल्टी-मॉडल ट्रांज़िट प्रोजेक्ट को तेज़ी से आगे बढ़ाया है, जो बांग्लादेश को बाईपास करते हुए म्यांमार और उत्तर-पूर्वी भारत को जोड़ता है। 900 किलोमीटर से ज्यादा लंबा यह कॉरिडोर भारत के लिए गेमचेंजर साबित होगा।
यह मानना गलत होगा कि सिर्फ सड़कें, बंदरगाह और मिसाइलें ही इस क्षेत्र को सुरक्षित कर लेंगी। इस क्षेत्र को स्थाई रूप से सुरक्षित करने के लिए ज़रूरी है कि इसे प्रशासनिक रूप से विशेष दर्जा दिया जाए, या तो ‘सेल्फ-गवर्न्ड स्पेशल जोन’ या ‘केंद्र शासित प्रदेश’। इससे न केवल भारत के सामरिक हितों की रक्षा होगी, बल्कि स्थानीय आबादी का विश्वास भी बढ़ेगा, जो वर्षों से इस क्षेत्र की उपेक्षा से नाराज़ है।