नशे का जाल
हिमाचल प्रदेश अपनी सुरम्य वादियों, शांत वातावरण और सांस्कृतिक समृद्धि के लिए जाना जाता है, लेकिन हाल के वर्षों में यह नशे की एक गंभीर सामाजिक चुनौती का सामना कर रहा है। पहले जहां यह समस्या कुछ सीमित इलाकों तक सिमटी थी, वहीं अब यह ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में गहराई से जड़ें जमा चुकी है। युवाओं में नशे की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है जिससे न केवल उनका भविष्य अंधकारमय हो रहा है, बल्कि सामाजिक ढांचे पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है। नशे का यह फैलाव कई कारणों से हो रहा है, जिनमें बेरोजगारी, मानसिक तनाव, सामाजिक दबाव, पारिवारिक विघटन और नशे के पदार्थों की आसान उपलब्धता प्रमुख हैं। स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी भी अब इस चपेट में आ रहे हैं, जो चिंता का गंभीर विषय है। इसके अलावा कुछ सीमावर्ती इलाकों में नशे की तस्करी भी बढ़ रही है जिससे राज्य में नशे के अवैध व्यापार को बढ़ावा मिल रहा है। आज का युवा समाज तेजी से बदलते समय और भौतिकतावाद की दौड़ में शामिल हो चुका है। रातों-रात करोड़पति बनने की चाह, कम समय में ज्यादा पैसा कमाने की लालसा और आरामदायक जीवन जीने की ललक ने कई युवाओं को गलत राह पर मोड़ दिया है। सोशल मीडिया पर दिखावे की संस्कृति ने इस प्रवृत्ति को और अधिक बढ़ावा दिया है जहां लोग दिखावे के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। इस चकाचौंध में अनेकों अच्छे और पढ़े-लिखे परिवारों के लडक़े भी नशे के जाल में फंसते जा रहे हैं। उन्हें यह लगता है कि नशा केवल मौजमस्ती या स्टेटस का प्रतीक है, लेकिन धीरे-धीरे यह आदत बन जाती है और फिर उनका पूरा जीवन तबाह हो जाता है। पढ़ाई छूट जाती है, पारिवारिक रिश्ते बिगड़ जाते हैं और आत्मविश्वास खत्म हो जाता है। ऐसी परिस्थितियों से सामाजिक संरचना भी प्रभावित होती है। सबसे दुखद बात यह है कि जब तक उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। इसलिए जरूरी है कि युवाओं को वास्तविक सफलता और खुशियों का अर्थ समझाया जाए।
परिवार, स्कूल और समाज को मिलकर जागरूकता फैलानी चाहिए ताकि कोई और युवा इस अंधेरे रास्ते का शिकार न बने। कई लोग हिमाचल की वीडियो और डाक्यूमेंट्री के जरिए इसकी सादगी और शांति से प्रभावित होते हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश, कुछ शरारती तत्व इस शांतिपूर्ण प्रदेश की मूल आत्मा को बिगाडऩे में लगे हुए हैं। पिछले कुछ वर्षों में देखा गया है कि अन्य राज्यों से आने वाले कुछ पर्यटक और बाहरी लोग न केवल हिमाचल की सुंदरता का गलत लाभ उठा रहे हैं, बल्कि यहां की युवा पीढ़ी को नशे की गिरफ्त में भी धकेल रहे हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में अवैध नशे के पदार्थों की खेती और तस्करी जैसे मामले सामने आ रहे हैं जिनमें बाहरी तत्वों की भूमिका संदेह के घेरे में है। यह देखा गया है कि कई पर्यटक भांग, चरस, गांजा इत्यादि जैसे नशीले पदार्थों की खोज में हिमाचल आते हैं और यहां के युवाओं को भी इसके सेवन के लिए प्रेरित करते हैं। इससे न केवल युवाओं का भविष्य खतरे में पड़ रहा है, बल्कि प्रदेश की शांतिपूर्ण पहचान भी धूमिल हो रही है। पर्यटकों की निगरानी, नशे के विरुद्ध सख्त कानून और जन-जागरूकता अभियान जरूरी हैं, ताकि हिमाचल प्रदेश अपनी गरिमा और पहचान को बनाए रख सके। नशा आज समाज की ऐसी गंभीर और जटिल बीमारी बन चुका है, जिसे केवल किसी सरकार, संस्था या एक व्यक्ति विशेष द्वारा समाप्त नहीं किया जा सकता। समूह सहयोग जरूरी है।
कर्म सिंह ठाकुर
स्वतंत्र लेखक
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