हैव ए नाइस मूर्ख डे दोस्त…
वे मेरे शुभचिंतक हैं। इसलिए जब जब उनको लगता है कि उन्हें मेरी मूर्खता का लेवल चेक कर लेना चाहिए कि वह कितना बढ़ा घटा, वे मुझे फोन कर लेते हैं मेरी मूर्खता का लेवल चेक करने के लिए। बीपी नार्मल रहे तो रहे, पर मूर्खता का लेवल हमेशा हायर लेवल रहना चाहिए। कल फिर उनका फोन आया। फोन पर मुझसे पूछा, ‘हैव ए नाइस मूर्खता डे दोस्त! पूछने से पहले क्षमा चाहता हूं। सारा साल तो मैं तुम्हारा प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष मूर्ख बनाता ही रहता हूं, पर आज मूर्ख दिवस होने के चलते मैं विशेष तौर पर तुम्हारा मूर्ख बनाते मूर्खता धर्म का पालन करना चाहता हूं। चाहे तुम मूर्ख बनो या न! मुझे पता है कि मेरे द्वारा तुम्हें मूर्ख बनाने पर तुम मेरा मन रखने के लिए मूर्ख बनते रहते हो। मूर्खपुराण में लिखा है कि जो मूर्ख दिवस पर अपने शुभचिंतकों का मूर्ख न बना, उसकी आत्मा को अगले मूर्ख दिवस तक शांति नहीं मिलती। बस, इसे इसलिए औपचारिकता भी समझा लेना’, तो मैंने उनके मुखारविंद द्वारा मूर्ख बनने की तैयारी करते कहा, ‘दोस्त! मूर्ख दिवस पर मेरा मुझसे पूछ कर मूर्ख बनाने के धर्म का पालन करने के लिए दिल की गहराइयों से आभार! आदमी को अपने धर्म का पालन करते रहना चाहिए। ये धर्म ही तो है जो हमें खुद को जैसे मन करे तोड़ेन मरोडऩे की ताकत दिए रहता है।
दोस्त! असली शुभचिंतक ऐसे ही होते हैं जो अपनों का मूर्ख पूछ कर बनाते हैं, पूछकर जूते लगाते हैं। वर्ना दूसरे तो यहां मूर्ख बनाकर, जूता लगाकर चले भी जाते हैं और पता ही नहीं चलता कि वे मूर्ख बनाकर, जूता लगाकर निकल लिए। वैसे दोस्त! अब मुझे पता चल गया है कि ये समझदारी सब समस्याओं की जड़ है। जि़ंदगी में ये जूते ही अधिक लगवाती है। अपने को समझदार मानने वालों की समझदारी की कमर लोग ऐसे तोड़ कर रख देते हैं कि वह सात तो क्या, आठ जन्मों के बाद भी सब कुछ करता है, पर समझदार बनने की तनिक भी कोशिश करता, समझदार होने के नाते।
अब तो मजे से हंसता हुआ अपने घरवालों का मन रखने के लिए कभी अपने घर में मूर्ख बन लेता हूं तो कभी यार दोस्तों का मन रखने के लिए घर के बाहर! जब मैं दूसरों की खुशी के लिए मूर्ख बनता हूं तो मत पूछो मुझे कितना आनंद मिलता है! मेरा रोम रोम आनंद से इतना आनंदित हो जाता है इतना तो भगवान को बेचने वालों का भी क्या ही होता होगा।
डियर! जानता हूं, इस समाज में मूर्ख बनना एक नैतिक क्रिया है और मूर्ख बनाना नैतिक प्रक्रिया। जब हम किसी का मूर्ख बनाते हैं तो असल में हम अपने सामाजिक दायित्व का निर्वाह कर रहे होते हैं। अपने दायित्वों का निर्वाह हो या न, पर हर जागरूक जीव को दूसरों को मूर्ख बनाने के दायित्व का निर्वाह पूरी ईमानदारी से करना चाहिए। इसलिए मूर्ख दिवस पर मैं तुम्हें मुझे मूर्ख बनाने के अपने सारे प्राधिकार, अधिकार सहर्ष सौंपता हूं। मेरी यही कामना कि तुम मूर्ख दिवस पर ही नहीं, पूरे साल मेरा ही नहीं, जिसको भी मूर्ख बनाने के लिए दिमाग मुंह खोलो, पूरी ऊर्जा से मूर्ख बनाते रहो। भगवान तुम्हें अपने को भी मूर्ख बनाने की ऊर्जा प्रदान करें। वैसे भी जबसे समझदारी के डिग्रीधारकों में मूर्खता की चरम पराकाष्ठा देखी है तबसे अपने को समझदार समझने में बहुत पीड़ा होने लगी है दोस्त!
अशोक गौतम
ashokgautam001@Ugmail.com
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