हैदराबाद के जंगलों की चीख सुनी जाए
किसी को उजाड़ कर बसे तो क्या बसे- यह पंक्ति सुनने में भले ही काव्यात्मक लगे, लेकिन इसके पीछे छिपा दर्द, पीड़ा और चेतावनी आज के तथाकथित विकास के मॉडल पर करारी चोट करती है। जब हम हैदराबाद के जंगलों की कटाई और अंधाधुंध शहरी विस्तार की तरफ देखते हैं, तो यह सवाल और भी प्रासंगिक हो जाता है : क्या हम सचमुच बसा रहे हैं या उजाडऩे की प्रक्रिया को ही विकास कहकर महिमामंडित कर रहे हैं?
हैदराबाद का खजागुड़ा रिजर्व फॉरेस्ट, जो कभी वन्य जीवन, जैव विविधता और स्थानीय समुदायों के लिए एक सुरक्षित आश्रय था, अब क्रेनों और बुलडोजऱों की चपेट में है। हालांकि इसे उजाडऩे पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है, फिर भी यह कहना होगा कि प्रकृति संरक्षण का दायित्व समूह समाज का है।
-डा. सत्यवान सौरभ, भिवानी
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