आओ कब्र खोदें
-गतांक से आगे…
वह उसी अंदाज में अपनी बात जारी रखते हुए बोले, ‘मरने के बाद स्वर्ग किसने देखा। जो भोग लिया, वही अपना है। तुम देखते नहीं कि किस तरह माल बनाने के लिए बाबा लोग जनता को परलोक का भय दिखाते हुए स्वयं इतनी भव्यता में जीते हैं। नेता लोगों से समाज और देश की सेवा के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने का आवाह्न करते रहते हैं। पर क्या तुमने कभी किसी नेता के बेटे को देश के लिए कुरबानी देते हुए देखा है? जऱा याद करो कि किस नेता ने देश के लिए अपनी सम्पत्ति दान में दी है। सभी सुविधाओं के भोग में मस्त हैं। दो वक्त की रोटी या सुविधाओं के जुगाड़ में डटे अधिकांश लोग भय से मौन हो जाते हैं या अधिकतर अपने स्वार्थवश भीड़ का हिस्सा होने के बाद नेताओं के समर्थन में नारे लगाते रहते हैं। इसी स्वार्थपरकता के कारण देश हज़ारों साल ग़ुलाम रहा। लेकिन बेडिय़ों में जकड़े होने के बावजूद हम विदेशियों से मनसबदारी स्वीकार करते हुए आपस में उलझे रहे। उम्र भर गऱीबी के साए में जीने वाला आम भारतीय सोचता है कि वह गाय की पूंछ पकड़ कर वैतरणी पार कर जाएगा या पांच वक्त नमाज़ अता करने से बहिश्त का हक़दार बन जाएगा।’ लेकिन हम भारतीय अतीत में ही क्यों रमण करना पसंद करते हैं? मैंने असहज होते हुए पूछा। झुन्नू जी उसी रौ में बहते हुए बोले, ‘जो क़ौम मेहनती नहीं होती, वह या तो भूतकाल में जीती है या भविष्य काल में। वर्तमान में जीने से उसे कोफ़्त होती है क्योंकि अपनी दुर्दशा के लिए वही जि़म्मेवार होती है। इस दुर्गति से ऊपर उठने के लिए उसे हाड़तोड़ मेहनत करनी होगी, जिसके लिए सदियों से उसकी रगों में दौड़ती हरामगिरी, निठ्ठलापन और निकम्मापन इज़ाज़त नहीं देते। उसकी इसी दीनहीनता का लाभ उठा कर ठग उसे अच्छे दिनों के सपने बेचते हुए उससे कहते हैं कि अगले पांच सालों में हम विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति होंगे तथा सन् 2047 तक देश विश्व का सिरमौर बन जाएगा। यही हरामगिरी, निठ्ठलापन और निकम्मापन हमारे प्रजातंत्र की सबसे बड़ी ताक़त है। इसी का लाभ उठा कर तमाम राजनीतिक दल बारी-बारी से सत्ता में बने रहते हैं।
सत्ता से मिलने वाले अल्प उपदान या थोड़ी सी रेवडिय़ों के लिए हम अपना आज गिरवी रखने से नहीं हिचकिचाते। सपनों में जीने वाली ऐसी क़ौम को आसानी से अपने स्वर्णिम और गौरवमयी इतिहास के कि़स्से-कहानियां या सुखद भविष्य के सपने बेचे जा सकते हैं।’ मैंने उनके इस तर्क से प्रभावित होते हुए पूछा कि क्या अन्य क़ौमें भारतीयों से अलग हैं? वह अपने होठों पर व्यंग्यात्मक मुस्कान लाते हुए बोले, ‘क्या काबुल में गधे नहीं होते?’ मैंने कहा कि काबुल में गधे होते हैं, ख़ूब होते हैं और होते भी अच्छी नस्ल के हैं। झुन्नू जी गंभीर होते हुए बोले, ‘अगर पूरी दुनिया में गधे नहीं होते तो संसार का सबसे शक्तिशाली मुल्क कहलाने वाला देश ऐसा राष्ट्रपति क्यों चुनता, जिसके मूर्खतापूर्ण फैसलों ने अमेरिका को घुटनों पर ला दिया है। अगर अमेरिका में गधे नहीं होते तो ऐसा ओछा राष्ट्रपति दुनिया के देशों को उसका पिछवाड़ा चूमने की बात न कहता। दुनिया में ऐसे मूर्खों की कमी नहीं। ऐसे मूर्ख ही नाले की गैस से रसोई बनाने, ट्रैक्टर के टायर में बॉयो गैस भरने या गोबर-गोमूत्र से कैंसर ठीक होने की बात इतने विश्वास से जगत् के सामने रखते हैं कि कोई सच्चा वैज्ञानिक भी धोखा खा सकता है। लेकिन कि़स्मत के धनी ऐसे मूर्खों के अंधभक्त उनके ऐसे दावों पर न केवल तालियां बजाते हैं बल्कि उन्हें बार-बार चुन कर उनके हाथों में सत्ता सौंपते रहते हैं।’ उनकी गंभीरता को देखते हुए मैंने उनसे जानना चाहा कि क्या देश में कब्रों को खोदने का मुद्दा कोई मायने रखता है?
पीए सिद्धार्थ
स्वतंत्र लेखक
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