दिल देखो, बिल न देखो…

By: Apr 26th, 2025 12:05 am

कौन कहता है कि सरकार काम नहीं कर रही? ऐसा कहने वालों को पहले अपने काले चश्मे उतारने चाहिए, वरना सरकार की पारदर्शिता कैसे दिखेगी? सरकार जनहित में इतनी संवेदनशील है कि अफवाह की फुसफुसाहट भी होती है तो खुफिया तंत्र तुरंत उसे पकड़ लेता है और बिना आव-ताव देखे जांच बैठ जाती है। क्योंकि सरकार जनहित को लेकर पूरी तरह समर्पित है। न कुछ गलत देख सकती है और न बर्दाश्त कर सकती है। इससे सरकार की कमिटमेंट और कार्यक्षमता की झलक दुनिया को मिल जाती है। नेताजी को खिलाया गया मुर्गा जंगली था या बेचारा देसी टाइप का था, सरकार ने राष्ट्रीय मीडिया में यह मामला उछलते ही फौरन पुलिस को सक्रिय कर दिया। जिन्होंने सोशल मीडिया और अखबारों में शहीद हुए मुर्गे को जंगली मुर्गी का नाम दे दिया था, उन पर केस दर्ज हो गए। पब्लिक को पता चल गया कि सरकार इस मामले में बहुत सख्त है। सरकार ने जांच बिठाई तो पता चला कि मुर्गा जंगली नहीं था। क्योंकि जंगली मुर्गी का जुगाड़ हो नहीं पाया था। क्योंकि जंगल में कोई जंगली मुर्गा बचा ही नहीं था। सब जान बचाकर इधर-उधर के राज्यों में भाग गए थे। फिर समोसा प्रकरण हुआ। समोसा नेता जी की प्लेट तक क्यों नहीं पहुंचा और रास्ते में कौन लोग उस समोसे को खा गए, इस बारे बड़ी-बड़ी खबरें छपी तो फिर सरकार ने संवेदनशीलता का परिचय देते हुए जांच बिठा दी। मामला फाइव स्टार समोसा और देसी हलवाई के समोसे के बीच उलझ कर रह गया। जांच रिपोर्ट आई और गई। जनता में चर्चा शुरू हुई और फिर खत्म हुई। समोसा पेट से बाहर नहीं आया। होली के दिन एक और मामला सामने आया। कुछ सीनियर अफसरों ने परिवार सहित नाच-गाना किया, भोज रचाया और जनता की आंखों में गुलाल झोंक कर सरकारी खजाने से बिल ट्रेजरी में भेज दिया। लेकिन दुर्भाग्यवश वह बिल सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। सरकार की इज्जत पर आंच आई।

सरकार की फजीहत होने लगी तो सरकार ने फिर संवेदनशीलता का प्रदर्शन किया। लेकिन इस बार जांच उन अफसर पर नहीं बैठी जिन्होंने भोज किया था और बिल सरकार को प्रस्तुत कर दिया था, बल्कि उन पर बैठी जिन्होंने बिल लीक किया। यानी सरकारी खजाने से खाना-पीना तो जायज है, लेकिन बिल पब्लिक के सामने लीक कर देना बहुत बड़ा गुनाह है। अब लीक करने वालों पर एक्शन होगा। हो सकता है कि दो-चार बाबू सस्पेंड भी हो जाएं, क्योंकि सरकार संवेदनशील है। क्योंकि सरकार का रुख बहुत सख्त है। अपनी छवि को लेकर बहुत सतर्क है। सरकार सफेद मामलों में तो वाह-वाह ही लूटना चाहती है, लेकिन काले कारनामों पर पर्दा डाले रखना चाहती है। इसलिए फॉरेन जांच बिठा दी जाती है। कुछ महीने जांच चलती रहती है। फिर रिपोर्ट नेताजी के पास आती है। नेताजी के पलंग के नीचे फाइलों की मोटी गद्दियां हैं। हर गद्दी में एक जांच रिपोर्ट सो रही है और नेताजी उन्हीं के ऊपर सोते हैं पूरी तसल्ली से। पब्लिक को फिर किसी नई जांच का इंतजार रहता है और नई जांच के लिए किसी नए कारनामे का इंतजार रहता है। सरकार में कारनामे करने वाले बहुत गणमान्य लोग हैं। उन्हें ऐसे कारनामे करने का लंबा अनुभव है और उनके इस अनुभव को देखते हुए सरकार ने उन्हें ऊंचे पदों पर भी बिठा रखा है। हर जांच एक सरकारी नाटक है जिसमें कलाकार पुराने हैं, स्क्रिप्ट नई होती है। जनता दर्शक है। तालियां बजाती है और फिर भूल जाती है। जांच चलती रहेगी और पब्लिक को पता चलता रहेगा कि सरकार काम कर रही है। बिल भी लीक होते रहेंगे। सरकार का एक समर्थक बड़े गर्व से कह रहा है। बिल लीक हो गया, कोई बड़ी बात नहीं। आप दिल देखो, बिल न देखो! ऐसे कई बिल ट्रेजरी की शोभा बढ़ा रहे हैं। सरकार के पास दिल है तभी तो बिल बनाकर आ रहे हैं। ट्रेजरी में बिलों का ढेर लगा है। सरकार का दिल देखो न, बिलों के मामले में कितनी दरियादिल है।

गुरमीत बेदी

साहित्यकार


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