व्हाइट हाउस का घेराव
अमरीका में राष्ट्रपति आवास ‘व्हाइट हाउस’ का घेराव किया गया है। यह वाकई चौंका देने वाली, दुर्लभ घटना है। यह अमरीका में नागरिक आंदोलन की पराकाष्ठा है और राष्ट्रपति टं्रप के सत्तावादी रवैये का घोर विरोध है। वैसे अमरीका में ही प्रदर्शनकारियों ने ‘कैपिटल भवन’ (संसद) पर हमला बोल दिया था। उसके भीतर घुस कर जबरदस्त तोड़-फोड़ की थी। उस प्रकरण में टं्रप को ‘खलनायक’ करार दिया गया था, क्योंकि वह विपक्ष में थे और जो बाइडेन देश के राष्ट्रपति थे। अब अमरीका के सभी 50 राज्यों में 50 विरोध-प्रदर्शन किए जा रहे हैं, लेकिन आंदोलन एक ही है, लिहाजा उसे ‘50501’ नाम दिया गया है। टं्रप जनवरी, 2025 में ही अमरीका के राष्ट्रपति चुने गए। सिर्फ तीन माह में ही जनता का सामूहिक विरोध और मोहभंग के भाव स्पष्ट होने लगे हैं। बेशक यह आश्चर्यजनक है। इसके कई कारण हो सकते हैं। समझ नहीं आ रहा है कि राष्ट्रपति टं्रप इस कार्यकाल के दौरान क्या करना और क्या हासिल करना चाहते हैं? उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ, विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व व्यापार संगठन आदि अंतरराष्ट्रीय महत्व के संस्थानों की ‘आर्थिक मदद’ पर पाबंदी लगा दी। यही नहीं, हार्वर्ड विश्वविद्यालय की 2.3 अरब डॉलर की फंडिंग पर विराम लगा दिया। दलील दी गई कि यह विश्वविद्यालय वामपंथी और विघटनकारी छात्रों की नस्लें तैयार कर रहा है। अमरीका ही नहीं, दुनिया भर में बौद्धिक संपदा के निर्माण में इस शैक्षिक संस्थान का अमूल्य तथा अप्रतिम योगदान रहा है। शायद राष्ट्रपति टं्रप को यह तथ्य ब्रीफ नहीं किया गया कि अमरीका के 16 राष्ट्रपति (टं्रप नहीं) हार्वर्ड के ही छात्र थे और सबसे अधिक 161 नोबेल पुरस्कार विजेता भी इसी विश्वविद्यालय ने दिए हैं। सवाल अमरीकी राष्ट्रपति से किए जाते रहे हैं कि जिन्हें अमरीकी प्रशासन परंपरागत रूप से वित्तपोषित करता रहा है, उनकी आर्थिक मदद छीन कर क्या होगा? क्या राष्ट्रपति टं्रप अपने निर्णय पर प्रायश्चित करने की मुद्रा में हैं? कमोबेश कोई भी संगठन, संस्थान या यूनिवर्सिटी इस तरह बंद नहीं होते।
अचरज जताया जा रहा है कि टं्रप ने जो ‘टैरिफ नीति’ घोषित की थी और साझा कारोबार करने वाले प्रमुख देशों पर कर का बोझ लाद दिया था, क्या उससे अमरीका में नई फैक्टरियां खुलेंगी अथवा अमरीका अधिक समृद्ध देश बनेगा और महंगाई, बेरोजगारी की समस्याएं कम होंगी? इसके अलावा, राष्ट्रपति के खास सलाहकार, दुनिया के सर्वोच्च उद्योगपति एलन मस्क ने जिस योजना के तहत सरकारी नौकरियां छीनने की कवायद की है, क्या उससे अमरीका में सामाजिक सुरक्षा मजबूत और व्यापक होगी? अमरीका नागरिक स्वतंत्रता, वैचारिक स्वतंत्रता, मानवाधिकार, लोकतंत्र, सामाजिक सुरक्षा सरीखे मूल्यों की बुनियाद पर टिका है। इन मूल्यों के लिए वहां कई सार्वजनिक संघर्ष किए गए हैं। अब प्रदर्शन के दौरान बैनर-पोस्टरों पर लिखा है-टं्रप को अल सल्वाडोर की जेल में डिपोर्ट कर दिया जाए। राष्ट्रपति पर नागरिक स्वतंत्रता और कानून के शासन को कमजोर करने के आरोप लगाए जा रहे हैं। ‘व्हाइट हाउस’ के अलावा मस्क की ‘टेस्ला कार’ के शोरूम का भी घेराव किया जा रहा है। उनमें आगजनी की घटनाएं हुई हैं। आंदोलनकारी दलील दे रहे हैं कि हमारा मकसद टं्रप प्रशासन के तहत बढ़ते सत्तावादी और तानाशाहीपूर्ण रवैये से लोकतंत्र को बचाना है। आंदोलन अहिंसक ही रहेगा। इन विरोध-प्रदर्शनों में कई राजनीतिक दल भी शामिल हैं, लिहाजा टं्रप के लिए नागरिक और राजनीतिक चुनौतियां दोनों ही हैं। अमरीका और भारत के लोकतंत्र दुनिया के लिए उदाहरण माने जाते रहे हैं। भारत में ऐसी नौबत कभी नहीं आई कि राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री आवासों का ऐसा घेराव किया गया हो। हालांकि विरोधी पक्ष प्रधानमंत्री आवास और संसद भवन के घेराव के नारे जरूर लगाते हैं, लेकिन विरोध-प्रदर्शन ‘जंतर-मंतर’ तक ही सीमित कर दिए जाते हैं। इस बार राष्ट्रपति टं्रप के फैसलों में एकाधिकारवाद ज्यादा झलक रहा है।
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