सतत विकास ही पृथ्वी दिवस का ध्येय

By: Apr 22nd, 2025 12:05 am

यद्यपि हिमाचल में प्लास्टिक बैग पर पूर्णत: प्रतिबंध है, फिर भी मल्टीनेशनल ब्रांड्स व कम्पनियों द्वारा उत्पादों की पैकेजिंग में प्लास्टिक के उपयोग से प्रदेश भी नहीं बच पा रहा…

मानव जीवनयापन के दृष्टिकोण से पृथ्वी, सौरमंडल का सबसे उपयुक्त ग्रह है। पृथ्वी ब्रह्मांड का एक बिंदु मात्र है। खगोलविदों की मानें तो ब्रह्मांड का उद्भव आज से लगभग 13.8 अरब वर्ष पूर्व, बिग बैंग विस्फोट के कारण हुआ। बिग बैंग सिद्धांत के अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति एक बिंदु से हुई, जो आज भी फैलता जा रहा है। ब्रह्मांड इतना विस्तृत एवं विशाल है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। सौरमंडल ब्रह्मांड का एक छोटा अंश है। सौरमंडल जैसे न जाने कितनी आकृतियां ब्रह्मांड में समा जाती हैं। सौरमंडल का एक महत्वपूर्ण ग्रह है पृथ्वी। पृथ्वी, सौरमंडल की वह स्थलाकृति है जहां मनुष्य जीवन के लिए अनुकूल परिस्थितियां उपलब्ध हैं जो अन्य ग्रहों में नहीं हैं। यहां जल, वायु एवं अनुकूल वातावरण सहित न जाने कितने ऐसे घटक हैं जो मनुष्य जीवन को दूसरे ग्रहों से आरामदायी एवं बेहतर बनाते हैं। इतना ही नहीं, पृथ्वी सौरमंडल का एकमात्र ग्रह है जिसकी सतह ठोस, तरल एवं गैस के अलावा वायुमंडल, बादल और मौसम जैसी अद्भुत क्रियाएं भी मौजूद हैं।

इन प्राकृतिक सुख-सुविधाओं को मानव सदैव भोगता चला आ रहा है। आदिमानव से लेकर वर्तमान रोबोट के युग तक आते-आते मनुष्य ने न जाने कितने आयाम स्थापित किए हैं। ये आयाम मूलत: मनुष्य के विकास की गाथा को भी बयां करते हैं, ऐसा कहने में किंचिंत संशय नहीं किया जा सकता। लेकिन विकास की इस अंधी दौड़ में हमने कुछ पाने के उद्देश्य से बहुत कुछ खो दिया। यद्यपि परिवर्तन प्रकृति का नियम है, लेकिन परिवर्तन प्राकृतिक हो तो शोभनीय एवं लाभप्रद होता है। पिछले 500 से 600 वर्षों में होने वाले परिर्वतनों की तरफ यदि नजर दौड़ाएं तो जो परिवर्तन हम देखते हैं, वे भले ही विकास की गाथा के द्योतक रहे होंगे, लेकिन कहीं न कहीं प्रकृति द्वारा तय मानकों पर खरे नहीं उतरते। परिणामस्वरूप, आज सम्पूर्ण विश्व की पृथ्वी के संरक्षण के प्रति एक सांझी समझ बनी है। चाहे पर्यावरण संरक्षण से संबंधित अंतरराष्ट्रीय पहल हो या जल एवं जलवायु परिवर्तन संरक्षण, ये चिंताएं वैश्विक मंच पर चर्चा का मुख्य मुद्दा बनी हुई हैं। इस वैश्विक चिंता एवं चर्चा के चलते ही 22 अप्रैल का दिन पूरे विश्व में पृथ्वी दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह शुरुआत संयुक्त राज्य अमेरिका के एक सीनेटर गेलार्ड नेल्सन ने वर्ष 1970 में की। उन्होंने पहली बार विश्व पर्यावरण संबंधी मुद्दों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए पूरे देश में रैलियों का आयोजन किया। उन्होंने न केवल पर्यावरण संरक्षण अपितु मानव एवं अन्य जीवित प्राणियों के बीच पारिस्थितिकी संतुलन को बनाने हेतु जनजागरण के लिए प्रयत्न किए। नतीजतन अमेरिकी सरकार ने इसी वर्ष पर्यावरण संरक्षण एजेंसी का गठन किया। इसी एक प्रयास के चलते ही वर्ष 1990 तक पृथ्वी दिवस का आयोजन विश्व के 140 देशों में होने लगा। भारत में पर्यावरण संरक्षण का यह बीड़ा अनेकों पर्यावरणविदों ने अनेक आंदोलन चलाकर उठाया। बल्कि, भारत में पर्यावरण संरक्षण का इतिहास काफी पुराना है। यहां पहला संगठित आंदोलन वर्ष 1730 में राजस्थान में खेजड़ी के पेड़ों को कटने से बचाने के लिए देखने को मिलता है जिसमें बिश्नोई समाज के 363 लोगों ने अपनी जान की बाजी लगा दी थी, जिसके कारण इसे बिश्नोई आंदोलन के नाम से जाना जाता है।

वर्ष 1973 का उत्तराखंड राज्य में सुंदर लाल बहुगुणा का चिपको आंदोलन, साइलैंट वैली बचाओ आंदोलन, मेधा पाटकर का नर्मदा बचाओ आंदोलन व कर्नाटक के एपिको आंदोलन सहित न जाने कितने आंदोलन वनों को काटने से रोकने हेतु चलाए गए। हिमाचल प्रदेश की पर्यावरणविद व समाजसेवी किंकरी देवी का पर्यावरण संरक्षण हेतु आंदोलन कौन भूल सकता है, जिन्होंने वर्ष 1985 में पर्यावरण संरक्षण की लड़ाई आरंभ की और जीवनपर्यन्त इसे जारी रखा। उन्होंने न केवल पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक किया, बल्कि इसके अतिरिक्त खनन माफिया के प्रति भी जंग जारी रखी। पृथ्वी जिन कारकों के कारण मानव जीवन के लिए उपयुक्त ग्रह माना जाता है, वे सभी घटक एवं कारक आज कहीं न कहीं खतरे की जद में हैं। वर्तमान वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण व मृदा प्रदूषण मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण दोनों को अपने आगोश में लिए हुए हंै। देश एवं प्रदेश में कैंसर, श्वास एवं हृदय संबंधी रोगियों की संख्या में निरंतर वृद्धि इस बात की पुष्टि करता है। पृथ्वी सदैव ही अपनी समृद्ध जैव विविधता के लिए जानी जाती है। जैव विविधता परिस्थितिकी तंत्र की महता किसी से छुपी नहीं, यह मनुष्य का आश्रय, खाद्य श्रृंखला व अन्य आवश्यक वस्तुओं का प्राकृतिक स्रोत है। परंतु आज हमारी पृथ्वी का पारिस्थितिकी असंतुलन व समृद्ध जैव विविधता का भी पतन हो रहा है, जो निश्चित तौर पर नीतिकारों के समक्ष गहन चिंतन का विषय है। यद्यपि विश्व के पर्यावरणविद एवं बुद्धिजीवी इस बाबत प्रयत्नशील हैं, तथापि इसमें व्यक्तिगत समझ एवं व्यक्तिगत पहल ही सफलता की राह में मील का पत्थर साबित हो सकता है। जलवायु परिवर्तन एक और समस्या है जो मानव जीवन को चौतरफा प्रभावित करता है। अनावश्यक एवं भयानक मौसमी क्रियाएं जलवायु परिवर्तन के उदाहरण हैं। इसके अतिरिक्त अपशिष्ट प्रबंधन वर्तमान में एक विकट स्थिति पैदा कर चुकी है। जहां एक ओर स्वच्छ भारत मिशन ने लोगों का कूड़ा-कर्कट के एकत्रीकरण के प्रति निश्चित रूप से दृष्टिकोण में सकारात्मक परिवर्तन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निहित की है, वहीं एकत्रित कूड़े का सवंद्र्धन कर पाने में चूकते जा रहे हैं।

रोजमर्रा की जिंदगी में प्लास्टिक के उपयोग की आदी होती वर्तमान पीढ़ी को इसके विकल्प तलाशने की कवायद है। यद्यपि हिमाचल में प्लास्टिक बैग पर पूर्णत: प्रतिबंध है, फिर भी मल्टीनेशनल ब्रांड्स व कम्पनियों द्वारा उत्पादों की पैकेजिंग में प्लास्टिक के उपयोग से प्रदेश भी नहीं बच पा रहा। दैनिक उपभोग की मैगी, टॉफी-चॉकलेट व कोल्ड ड्रिंक्स सहित अनेक ऐसे उदाहरण हैं जो प्रदेश के प्लास्टिकमुक्त अभियान के कदम धीमे करते हैं। इतना जरूर है कि कुछ उत्पादों में बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक उपयोग में किया जाना प्लास्टिक उपयोग के खतरे से बचने के संदर्भ में एक सराहनीय प्रयास है। वहीं प्लास्टिक की बोतल के पुन: प्रयोग पर भी जागरूकता फैलाई जा रही है। इनका प्रयोग फूलों के गमले, साज-सजावट आदि में किया जाना चाहिए।

प्रो. सतपाल

शिक्षाविद


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