‘मानवता का मसीहा’ चला गया

By: Apr 23rd, 2025 12:05 am

ईसाई धर्म के सर्वोच्च धर्मगुरु पोप फ्रांसिस, अंतत:, यीशु मसीह के घर लौट गए। दुनिया के 1.2 अरब ईसाइयों के लिए यह शोकाकुल घड़ी है। जीवन और मौत नियति के अपरिहार्य फैसले हैं, लेकिन ऐसे धर्मगुरु की अंतिम विदाई भावुकता और करुणा से भर देती है, जो आजीवन परमाणु हथियारों और युद्धों का विरोध करते रहे। पोप ने परमाणु हथियार बनाने और उन्हें रखने को भी ‘अनैतिक अपराध’ करार दिया था। पोप फ्रांसिस ईसाई, रोमन कैथोलिक चर्च के ही धर्मगुरु नहीं थे, बल्कि दुनिया उन्हें ‘ईश्वर का रूप’ मानती थी। उन्हें ‘यीशु मसीह’ का ही प्रतिरूप माना गया। पोप हमेशा मानवीय, नागरिक, धार्मिक, वैचारिक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्षधर रहे और युद्धों को समाप्त करने की कोशिशें कीं। उन्होंने हमेशा मानवीय सहिष्णुता का पाठ पढ़ाया, लेकिन दुर्भाग्य और विडंबना है कि ईसाई धर्म को मानने वाले राष्ट्राध्यक्ष भी युद्धों में संलिप्त हैं। कितनी हत्याएं की जा रही हैं, कितने घायल पीड़ा और दर्द में तड़प रहे हैं, कितने क्षेत्र खंडहर और मलबे में तबदील किए जा चुके हैं, उनकी संख्याएं गौरतलब नहीं हैं, लेकिन पोप के निधन का समाचार सुनकर उन हत्यारों और विध्वंसकों की आंखें भी डबडबाई होंगी! वे श्रद्धांजलि के तौर पर ही पुनर्विचार करें कि युद्ध क्यों लड़े जा रहे हैं? बहरहाल पोप अधिकतर यूरोप से ही आते रहे हैं। इटली का वर्चस्व रहा है। कैथोलिक चर्च के 266 पोप में से 217 पोप इटली की सरजमीं से ही आए हैं। दिवंगत 266वें पोप इस संदर्भ में अपवाद रहे। वह अर्जेन्टीना के निवासी थे। पोप जैसे सर्वोच्च पद तक पहुंचे और 12 लंबे सालों तक रोमन कैथोलिक चर्च का नेतृत्व किया। पोप सिर्फ धर्मगुरु ही नहीं होता, बल्कि वेटिकन सिटी का प्रशासनिक और कार्यकारी प्रमुख भी होता है। वहीं से फैसले और निर्देश जारी किए जाते रहे हैं, जिन्हें 1.2 अरब ईसाइयों ने हमेशा स्वीकार किया और उनका पालन भी करते रहे हैं।

पोप फ्रांसिस भीतरी आत्मा से ही ‘मानवतावादी’ थे, लिहाजा उन्होंने ‘मृत्यु दंड’ का विरोध किया। उन्होंने चर्च के रुख में बदलाव करते हुए ‘क्षमादान’ पर बल दिया और मौत की सजा को हर हाल में अस्वीकार्य बताया था। पोप के विचार पुनर्विवाह, समलैंगिकता, गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल, महिला मतदान पर प्रगतिशील और आधुनिक थे, लेकिन वह बड़े विवादों से हमेशा दूर रहे। पोप ने अप्रैल, 2014 में पहली बार चर्चों के भीतर बच्चों के साथ होने वाले यौन शोषण की घटनाओं को स्वीकार किया और सार्वजनिक तौर पर माफी भी मांगी। पादरियों की तरफ से किए जा रहे इस अपराध को उन्होंने नैतिक मूल्यों का पतन माना। बहरहाल भारत में हिंदू और इस्लाम धर्म के बाद ईसाई तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। इसके अनुयायी आबादी का करीब 4.8 फीसदी हैं, फिर भी भारत में ईसाई ‘अत्यंत अल्पसंख्यक’ हैं, लिहाजा उन पर हमले भी किए जाते रहे हैं। वर्ष 2024 में 834 ऐसे हमले दर्ज किए गए। ईसाई धर्मावलंबी देश के पूर्वोत्तर राज्यों, दक्षिण भारत और गोवा में बसे हैं। सर्वाधिक ईसाई नागालैंड में हैं। पोप के निधन पर भारत ने भी तीन दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया है। गरीबों और हाशिए पर पड़े दबे-कुचले, वंचित लोगों के प्रति पोप की प्रतिबद्धता अलग ही किस्म की थी, लिहाजा उन्हें ‘झुग्गियों के पोप’ के उपनाम से भी जाना गया। वह यहूदियों को निशाना बनाने की कूटनीति के भी खिलाफ थे। उन्होंने गरीबों और सामाजिक न्याय के हित की हमेशा पैरोकारी की। वह अपने पूर्ववर्ती पोप की तुलना में अधिक उदार थे और चर्च को गरीबों, असहायों के साथ जोड़ा। उन जमातों को संरक्षण भी दिया। बहरहाल पोप के पार्थिव अंत से एक शून्य तो पैदा हुआ है, जिसे भरने में समय लगेगा। यदि पोप ने अपने उत्तराधिकारी का नाम तय कर दिया था, तो नए पोप को पदासीन कराने में आसानी होगी। अलबत्ता जो चयन-प्रक्रिया है, उसके मद्देनजर ही नया पोप चुना जाएगा। दुनिया इंतजार करेगी कि नया मसीहा कौन आता है, जो ईसाई धर्म का आह्वान कर सके।


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