थाने की छत पर पेड़

By: Apr 21st, 2025 12:06 am

पुलिस थाने का पेड़ बिना बताए ढह गया। पुलिस ने यूं तो कई पेड़, कई भवन और लोग ढहते देखे, लेकिन यह मंजर भयानक था। आधा पेड़ थाने की छत पर और आधा बाहर सडक़ से गुजर रही बस की छत पर था। कार्रवाई के लिए चश्मदीद गवाह ढूंढे गए। स्वयं थानेदार सतर्क थे, आखिर उनकी छत का मामला था। जनता पहली बार पुलिस को पेड़ से लड़ता देखकर खुश थी, लेकिन चश्मदीद गवाह बनने को तैयार नहीं थी। खैर थानेदार का अनुभव काम आया, लिहाजा उन्होंने थाने को गुलजार कर रहे सिपाहियों को तुरंत पेड़ गिरने का चश्मदीद गवाह बना दिया। बस और बस के ऊपर गिरे हुए पेड़ के एकमात्र गवाह यही कांस्टेबल थे। बस की छत पर चढऩे को कहा तो आधे असमर्थ हो गए। अंतत: घोषणा हुई, ‘बढ़े हुए पेट वाले सुरक्षा कारणों से बस के ऊपर न चढ़ें। महिला कांस्टेबलों को भी रोका गया, लेकिन इस तमाशे में ट्रैफिक जाम हो गया। यूं तो पुलिस अपनी यूनिफार्म में किसी को भी नीचे उतार सकती है, लेकिन यहां अपनी छत से पेड़ नीचे उतारने में महकमे की ट्रेनिंग विफल हो रही थी। एक बार तो थानेदार ने सोचा कि लॉकअप में रखे कुछ भरोसेमंद अभियुक्तों से ये काम ले लें। भरोसा इसलिए था क्योंकि कई चेहरे पुलिस की जान-पहचान के ही थे, बल्कि जरूरत पडऩे पर ये लोग इशारे पर कुछ भी कर सकते थे और करते रहे हैं। फिर ख्याल आया, बड़े साहब कहीं बुरा न मना लें।

याद आया, ‘आज तो साहब की कोठी पर ताजा सब्जी और खूब पके हुए फल भी रवाना नहीं हुए। सडक़ को ट्रैफिक जाम ने रोक लिया तो कल्लू मियां को रेहड़ी भी कहां लगवाते। आधा काम तो कल्लू मियां भी कर देता है। वह रोजाना मुफ्त में सब्जी नहीं, कई बार रेहड़ी में थाने की हिस्सेदारी में आया माल भी छिपा लेता है, यहां तक कि वक्त आने पर चिट्टे की खेप को किलो से घटाकर मिलीग्राम बना देता है।’ थानेदार साहब बाहर निकले और जनता से अमन और अपने बचाव की अपील की। आपदा में देश सेवा का अवसर पाते ही पुलिस अभियान में इलाके के कई माफिया सरगना तैयार हो गए। सबसे आगे अवैध खनन में माहिर आए और कहने लगे पूरे थाने को गिरा देते हैं, पेड़ स्वयं ही गिर जाएगा। नया थाना बना देंगे, बस इधर दो छोटी सी दुकानें हम अपने लिए निकाल लेंगे। तभी शराब माफिया नशे में पहुंच गया। ‘सर! तमाशबीन जनता को पिलाकर पिछले चुनाव की तरह पूरे पेड़ को गिरा देंगे।’ एक बार थानेदार को लगा कि यह आइडिया परखा हुआ है, लेकिन फिर लगा कि यहां ही सारी सप्लाई लगा दी, तो कल एमएलए साहिब की तयशुदा बोतलें कहां से आएंगी। तभी किसी ने कहा, सर वो सामने वन माफिया के एक्सपर्ट काटू जी आ गए हैं, अब तो काम हो जाएगा। पहली बार जंगल और थाने का मिलन हो रहा था। नीचे पुलिस महकमा ऊपर जंगल की अमानत। दो सरकारी अमानतों से जनता के अमन चैन का पसीना छूट रहा था। वन विभाग ने सिक्का उछाला, ‘सर! यह पौधा अंग्रेजों के जमाने का है, लिहाजा इस बार हम थाने की तफतीश करेंगे कि इसकी जड़ें कैसे खोखली हो गईं। यह वन संरक्षण अधिनियम का सरेआम उल्लंघन है।’ थानेदार पहली बार आफत में आया। बात आगे बढक़र कानून-व्यवस्था तक पहुंच गई तो एसपी साहब घर से सीधे और सादा कपड़ों में पहुंच गए। साहब को लगा कि पेड़ तो पुलिस के धक्के से नीचे गिर जाएगा।

उन्होंने अपने अधीन रिजर्व पुलिस के जवान बुलाए और आदेश दिया कि इसे वीआईपी ड्यूटी मानकर पूरा जोर लगा दो। वाकई वीआईपी ड्यूटी में पुलिस बहुत ही ताकतवर होती है। फैसला हुआ कि यह काम तो दराट भी कर सकता है, लेकिन थानेदार का तर्क था, ‘सर एक तो दराट रखना गैर कानूनी है, फिर जो दराट हमने लोगों से चुराए हैं, वे पूरी तरह जंग से खराब हो चुके हैं। वैसे हमारे पास काम के कट्टे व तलवारें हैं, लेकिन यहां पेड़ पर कैसे चलाएं। हार कर वन तस्कर को बुलाया जिसने पेड़ से पुलिस की छत बचा दी। कानून व्यवस्था का आंखों देखा हाल देख रही जनता ने पुलिस की मौजूदगी में वन तस्कर के पक्ष में ‘जिंदाबाद’ के नारे लगाए। न एसपी और न ही थानेदार को कोई आपत्ति हुई, बल्कि इनाम स्वरूप पुलिस थाना परिसर में किसी की बुरी नजर से ढह गए अंग्रेजों के जमाने का पेड़ अब वन तस्कर को तोहफे के रूप में दे दिया गया।

निर्मल असो

स्वतंत्र लेखक


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