मित्र जी कहिन

By: Apr 23rd, 2025 12:05 am

हे अखबार वालो! मेरे घर में एक नहीं, दो नहीं, सात सात अखबार रोज आते हैं। मर गया इनको उनको आपके अखबारों की सुर्खियां बनते देखता। कभी मुझे भी अपने अखबार की सुर्खी बनाओ तो मेरा आपका अखबार खरीदना सार्थक हो। आपके अखबार खरीदने के कुछ पैसे वसूल हों।

तो कल हुआ यों कि जैसे ही मैंने ऑफिस जाने के समय अखबार खोला तो फ्रंट पेज पर अपने राम प्रसाद जी छाए हुए। उनके घर की तलाशी की फोटो छपी थी। अखबार वाले कह रहे थे, उनकी बीवी, उनके बेटे, उनके रिश्तेदारों के नाम-पता नहीं कहां कहां क्या क्या है? घर में करोड़ोंछिपाए हुए। प्रथम दृष्टया तो मुझे चरित्र में हद से अधिक ईमानदारी होने का केस लगा। उनके सद्चरित्र को कलंकित करने की किसी की साजिश लगी।

एआई का जमाना है साहब! सब कुछ हो जाता है इजीली। पर जब ध्यान से फोटो देखा तो उनका ही घर लगा। वही कमरा जहां मैं उनके घर जाकर अक्सर चाय शाय पिया करता था। ईमानदारी पर उनके मौलिक प्रेरणास्पद व्याख्यान सिर झुकाए सुना करता था।

हद है यार! इन अखबार वालों की भी। शरीफ लोगों का दफ्तरों में काम करना मुहाल किए हैं। लोकतंत्र में हर जनता की सेवा करने वालों के पास आय से अधिक संपत्ति का होना जायज नहीं, बिल्कुल जायज है। जिस देश में जनता की सेवा करने वालों के पास आय से अधिक संपत्ति हो और देश की जनता राशन का आटा लेने की भाग दौड़, होड़ में एक दूसरे को धकिया रही हो, सोच लेना, उस देश में सच्चा लोकतंत्र आ चुका है।

अखिर जब उस खबर पर विश्वास नहीं हुआ तो मैंने टाट से विराट हुए को फोन लगा डाला। उस समय वे फ्री लगे, सो मैंने उनके साथ जाली संवेदना जताते उनसे पूछा। जिस देश में जाली देशभक्ति हो, जाली देशभक्त हों, जाली प्रश्नपत्र हों, जाली उत्तरपुस्तिकाएं हों, जाली उत्तरदाता हों, जाली मतदाता हों, वहां पर मेरे जैसा जाली संवदेनाएं व्यक्त करे तो आश्चर्यचकित मत होइएगा प्लीज! अधिकारों की फेहरिस्त में इतना की कत्तवर््य तो मेरा भी बनता है।

‘बंधु! ये मैं अखबार में क्या पढ़ रहा हूं?’
‘सही पढ़ रहे हो दोस्त!’
‘मतलब?’

‘देखो! आय से अधिक संपत्ति जोडऩे के लिए तुम नहीं जानते सरकारी कर्मचारी से लेकर पुजारी तक को क्या क्या नहीं करना पड़ता? तुम क्या जानो आय से अधिक संपत्ति जोडऩे के तरीके जो ग्यारह बजे ऑफिस जाते हो, फाइलों के पेज खुजलाते हो और जैसे ही चार बजते हैं, पांच बजे का इंतजार करते लंच का खाली डिब्बा उठा जिस रास्ते ऑफिस गए थे, उसी रास्ते घर आ जाते हो। कहीं भी आय से अधिक संपत्ति फाइलों पर सिर धरे नहीं जुड़ती दोस्त! जो कहते हो कहते रहें, पर अवैध संपत्तियां वैध तरीकों से कभी नहीं जुड़ा करतीं दोस्त! यहां तो वैध जोडऩे के लिए भी बहुधा अवैधों का सहारा लेना पड़ता है दोस्त! तुम्हारी तरह नहीं कि सात सात अखबार सुबह ग्यारह बजे तक पढ़ते रहे और हर आय से अधिक संपत्ति रखने वालों की खबर पर नाक भौं सिकोड़ कुढ़ते रहे, चिढ़ते रहे।
केवल दस से पांच फाइलों पर सुस्त हाथ पांव मारने से सैलरी से अधिक और कुछ नहीं जुड़ा करता दोस्त! बैंकों से लिए लोन की किस्तें ही जुड़ा करती हैं। ओके! सब सैटल कराने के बाद जल्दी ही मिलता हूं’, उन्होंने मुझे फुली आश्वस्त करते आधुनिक कर्मयोग का अवैध ज्ञान दिया तो मेरी जान में जान आई।

अशोक गौतम

ashokgautam001@Ugmail.com


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