हिमाचली हिंदी कहानी : विकास यात्रा

कहानी के प्रभाव क्षेत्र में उभरा हिमाचली सृजन, अब अपनी प्रासंगिकता और पुरुषार्थ के साथ परिवेश का प्रतिनिधित्व भी कर रहा है। गद्य साहित्य के गंतव्य को छूते संदर्भों में हिमाचल के घटनाक्रम, जीवन शैली, सामाजिक विडंबनाओं, चीखते पहाड़ों का दर्द, विस्थापन की पीड़ा और आर्थिक अपराधों को समेटती कहानी की कथावस्तु, चरित्र चित्रण, भाषा शैली व उद्देश्यों की समीक्षा करती यह शृंखला। कहानी का यह संसार कल्पना-परिकल्पना और यथार्थ की मिट्टी को विविध सांचों में कितना ढाल पाया। कहानी की यात्रा के मार्मिक, भावनात्मक और कलात्मक पहलुओं पर एक विस्तृत दृष्टि डाल रहे हैं वरिष्ठ समीक्षक एवं मर्मज्ञ साहित्यकार डा. हेमराज कौशिक, आरंभिक विवेचन के साथ किस्त-१०४
-(पिछले अंक का शेष भाग)
मनोज कुमार शिव का ‘घर वापसी’ (2021) शीर्षक से पहला कहानी संग्रह प्रकाशित है। इसमें ग्यारह कहानियां- गरीबी का भूत, इंसाफ, स्याथा, मेवे वाला, रिटायरमेंट, जलेबी मेले की, गोमती का झरना, घर वापसी, बंटवारा, गुरु दक्षिणा और बुराई का अंत संगृहीत हैं। मीना चंदेल का ‘जीवन एक संघर्ष’ (2021) शीर्षक से पहला संग्रह प्रकाशित है जिसमें उनकी अठारह कहानियां- पश्चाताप, मुखाग्नि, उलझन, काश!, जीवन एक संघर्ष, पहचान, अंतरात्मा, समय चक्र, नई राह, वापसी, विश्वासघात, सबक, पहला प्यार, मुक्ति, बंटवारा, संकल्प, सच्चा रिश्ता और पछतावा संग्रहीत हैं। कमलेश सूद ने विभिन्न विधाओं में सृजन किया है। ‘मेरी अधूरी कहानी’ (2021) शीर्षक से उनका पहला कहानी संग्रह प्रकाशित है जिसमें उनकी उन्नीस कहानियां- गंगा स्नान, लाडो, मेरी अधूरी कहानी, बुआ, दीवार, रिटायरमेंट के बाद, त्रिशंकू, अनहोनी टल गई, पारस, इतने अपने पर कितने पराए, मुझे याद कर लेना, अंतिम विदाई, रिक्शावाला, देवदूत, ऐसी झगड़ालू बहू सबको मिले, एक सपना पूरा करना है अभी, मेरा सोहणा पुत्तर, फैसला और कल्पतरु संगृहीत हैं। ‘कहां हो तुम’ शीर्षक से उनका लघु कथा संग्रह प्रकाशित है। राजेंद्र राजन के विवेच्य अवधि में दो कहानी संग्रह ‘पापा! आर यू ओके’ (2021) और ‘सलीबों का शहर’ (2025) शीर्षक से प्रकाशित हैं। ‘पापा! आर यू ओके?’ में राजेंद्र राजन की ग्यारह कहानियां- विदाई बेला, पापा! आर यू ओके?, लेखक की मौत, कंफर्ट जोन, पतझड़ इधर-उधर, हिटलर की औलाद, यू आर नॉट ए सैलिब्रिटी, हनी ट्रैप, यह धुआं कहां से उठता है, प्रजा के पांव और वाईफाई संगृहीत हैं। उनके नव्यतम कहानी संग्रह ‘सलीबों का शहर’ में बारह कहानियां- नजरबंद, पिन ड्रॉप साइलेंस, वोट का टेंडर, प्रेत योनि, सलीबों का शहर, यातना शिविर, बुर्के वालियां, हरी साड़ी, मातम पुर्सी, चुन्नीलाल की मूर्ति स्थापना, हत्यारे और फागणू राम की उपकथा संगृहीत हैं।
हंसराज भारती का इस अवधि में ‘सुकेती पुल सलामत है’ (2021) शीर्षक कहानी संग्रह प्रकाशित है। इसमें उनकी तेरह कहानियां- बंदूक और बांसुरी, छोटी भाभी, खिंद, लाहौर, लौटते हुए, मैं और पाकिस्तान, मिट्टी से दूर, रेड अलर्ट, रिफ्यूजी, सपनों की ओट में, शिमला समझौता, सुकेती पुल सलामत है और यादों भरा सफर संगृहीत हैं।
श्याम सिंह घुना का ‘आज का महाभारत’ (2021) शीर्षक कहानी संग्रह प्रकाशित है जिसमें उनकी अ_ारह कहानियां- बागवानों की बादशाह, होनी-अनहोनी, जूते का गुस्सा, फेल हो गई कुटकी भी, तलाक, अडिय़ल घोड़ा, डाइस, जावेदा, पप्पू का सपना, सफर में सपने, संबंधों के लुटेरे, सितारा देवी का फैसला, मेरे सपने मेरे अपने, रघुराम ढाई सौ ग्राम, आत्ममुक्ति, किसका बेटा, उपलब्धियां और आज का महाभारत संगृहीत हैं।
सुशील कुमार फुल्ल के विवेच्य अवधि में तीन कहानी संग्रह ‘मुक्ति द्वार तथा अन्य कहानियां’ (2021), मेरी लोकप्रिय कहानियां (2021), मेरी चयनित कहानियां (2022) प्रकाशित हैं। ‘मुक्ति द्वार तथा अन्य कहानियां’ शीर्षक संग्रह में सताईस कहानियां- जान बहादुर फुर्र, मुण्डू, ब्रेकडाउन, माटी के खिलौने, मीछव, जोंक, टुच्चे लोग, पैकेज, पालतू, फिरौती, खोपडिय़ां, देवता, दण्डकीला, दान पुन्न, ग्रौंचड़, मुक्तिद्वार, हार में भी जीत, पीपल का पेड़, भरोसा, तबादला, होना न होना, विमुक्त, लाल बत्ती लेखक, अपनी अपनी राम कहानी, गीद्दड़सिंगी, बी बी सी संगृहीत हैं।
‘मेरी चयनित कहानियां’ शीर्षक संग्रह में अ_ारह कहानियां- मेमना, देउता, दण्डकीला, होरी की वापसी, मीछव, मुक्तिद्वार, मुण्डू, रिकवरी एजेंट, तृप्ति, टुच्चे लोग, फंदा, जूठन दसौंध और मुक्ति, लल्ली-छल्ली, अटकाव, अधर में अटके हुए लोग, मां, पालतू और फिरौती संगृहीत हैं। गंगाराम राजी के विवेच्य अवधि में ‘मालिक तेरे बंदे हम’ (2021), मैं उसकी आंख का तारा था (2021), मेरी हास्य व्यंग्य कहानियां-1 (2021), मेरी हास्य व्यंग्य कहानियां-2 (2022), मेरी हास्य व्यंग्य कहानियां-3, मेरी हास्य व्यंग्य कहानियां-4 (2024), ‘जिंदगी कैसी है पहेली और अन्य कहानियां’ (2023), जब याद आए, गाली दो न साहब (2023), कहानी पागल होने की (2023) व सारथी (2024) प्रकाशित हैं।
गंगाराम राजी ने ‘श्रेष्ठ युवामन की कहानियां’ (2022) का संपादन भी किया है। ‘मैं उसकी आंख का तारा था’ शीर्षक कहानी संग्रह में उनकी तेरह कहानियां- मैं उसकी आंख का तारा था, गुरु दक्षिणा, लॉकडाउन के बाद, चोर चोर मौसेरे भाई, लेन देन में, नेता जी कहिन, देख दिनन के फेर, फैमिली पेनशन, डॉक्टर झोली छाप, भूत भूत, जीने की कला, पचास के पार और कुत्ता कहीं का संगृहीत हैं। ‘मेरी मुंबई प्रवास की कहानी-3’ (2023) में उनकी तेरह कहानियां- हम भी हैं, गठरी, पल दो पल का साथी, ऑपरेशन रंग महल, किसी की सांसें चलती हैं तुम्हें ऑनलाइन देखकर, लव एंड ट्रस्ट, बूढ़ा ठरकी है, क्या करे मीरा, गौरैया का आसमान, निपटारा हो गया, पीली कोठी और हमारे पकौड़े संगृहीत हैं। ‘जिंदगी कैसी है पहेली और अन्य कहानियां’ (2023) शीर्षक कहानी संग्रह में गंगाराम राजी की चौदह कहानियां- मोबाइल बोला, नॉन ट्रांस्फरेबल, सरफरोश, दो दूनी चार, जीएसटी, चिंगारी सुलगने लगी है, समदर्शी नाम तुम्हारो, वर्षा में भीगने का मजा, मैन होल कवर, कदली से केला, केले से बनाना, गॉड ब्लेस माय सन, रत्नाकर क्यों वाल्मीकि हुआ?, विदाउट आम्र्स विदाउट हीट विदाउट वायलेंस, जिंदगी कैसी है पहेली संगृहीत हंै।
‘सारथी’ कहानी संग्रह में तेरह कहानियां और सत्रह लघु कथाएं- सारथी, वायरस, हठ, पहली नजर, बुलडोजर बाबा, आओ पढ़ें, मूर्तिकार, सौ के चौबीस, प्रेम कहानी में, नौ महीने का विद्यालय, घंटा बजाते रहे, कौआ खाकर बिल्ली हज को चली और ऊंचे बोलो हैप्पी बर्थडे संगृहीत हैं।
विजय कुमार पुरी के संपादन और जितेंद्र कुमार के सह संपादन में ‘खुशबू खिलते फूलों की’ (2021) शीर्षक कहानी संग्रह प्रकाशित है जिसमें हिमाचल प्रदेश के उभरते सोलह कहानीकारों की दो-दो कहानियां- मुरब्बा, खबर की खबर (राजीव पत्थरिया), कत्र्तव्य और भावना, समान असमान (दिलीप वशिष्ठ), अज्ञातवास, जन्नत की ओर (विनोद धब्याल राही), हम शाखें, टिफिन (एस अतुल अंशुमाली), जरूर, अंकल (काव्या वर्षा), सजा, गुलामी (नीरज पखरोलवी), ये कैसी बेबसी, मां! मुझे मत मारो (बचन सिंह घटवाल), दुख की चादर, सपना (सोनिया दत्त पखरोलवी), आभास, मुआवजा (जय करण), तबादला, जमना (प्रताप पाराशर), हार की जीत, एक और वापसी (अनिल मासूम), देवता का सेवादार, अजनबी चेहरे (राकेश पत्थरिया), दर्जी रामलाल, पछतावा (छविंदर कुमार), संघर्ष, पराया धन (आशना वर्मा), लडक़ी, लॉकडाउन (नीतू कुमारी), लौट आओ न, तनाव का खिंचाव (कश्मीर सिंह), लॉकडाउन में विवाह, नशा (जितेंद्र कुमार), अलविदा, स्मार्टफोन (विजय कुमार पुरी) संगृहीत हैं। रजनीकांत का ‘अपना-अपना सलीब’ (2022) शीर्षक कहानी संग्रह प्रकाशित है जिसमें उनकी अ_ारह कहानियां- आखिरी शरारत, कहानी उस रात की, दूसरा ही रूप, घोर कलियुग, सरकारी, अपना अपना सलीब, बूहा करे झमझम, लाजो, निम्मो मौसी, दुलारी, मांवा ठंडियां छांवां, मत्तामपुरसी, नानक दुखिया सब संसार, गलफाह, कबूलनामा, एक दुखियारी बहिन, राज और ब्ला ब्ला संगृहीत हैं।
एलआर शर्मा का ‘लेखक, चौकीदार और बुलबुल’ (2022) शीर्षक कहानी संग्रह विवेच्य अवधि में प्रकाशित है। प्रस्तुत संग्रह में चौदह कहानियां- लेखक, चौकीदार और बुलबुल, सुनहरे सपने-काले पत्थर, एक प्याला कमीज, रेहड़ीवाला प्रोफेसर, गड्डी तुरदी पहाड़ां विच ओये, हां भई जुकाम है, कविवर सतपाल सपोला की मुंबई यात्रा, हालचाल जो पूछा उनका, चार लाख का थप्पड़, एक अफसर के साथ दिवाली, संयोग या भाग्य, चंदरकांता, एक दफ्तर की कहानी और साहित्य की रेलगाड़ी संगृहीत हैं। अरविंद ठाकुर, राजेंद्र पालमपुरी और कल्याण जग्गी द्वारा संपादित कहानी संग्रह ‘हिमाचल की उत्कृष्ट कहानियां’ (2022) शीर्षक से प्रकाशित है। प्रस्तुत संपादित संग्रह में हिमाचल प्रदेश के चौंतीस कहानीकारों की कहानियां- जिंदगी है झुनझुना (अरविंद ठाकुर), मिस कॉल (अशोक दर्द), पहाड़ पिघलता रहा (जय नारायण कश्यप), निरीह प्रश्नों का उत्तर (राजीव कुमार त्रिगर्ती), अनामिका (मनोज कुमार शिव), दगडू जिंदा है (कल्याण जग्गी), वो प्रेम पत्र (पंकज दर्शी), अल्लाहदिता उर्फ देवीदिता हाजिर हो (अजय पाराशर), स्वयंभू (विजय उपाध्याय), पहाड़ पर काली छाया (सुदर्शना भटेडिय़ा), आखिरी मील का पत्थर (शाम अजनबी), स्वीकृति (सुशील कुमारी गौतम), गंगा स्नान (कमलेश सूद), बुरांश के फूल (विक्रम कौशल ‘प्रयास’), सुलेखा (अर्जुन कनौजिया), एक कहानी की कहानी (अशोक कालिया), बंदूक और बांसुरी (हंसराज भारती), एहसास (राकेश मिन्हास अजनबी), छठी अंगुली (अलका चावला), रूबी (सुमन शेखर), तारतम्य (शबनम आर्य), वक्त बदलता है (भूपिंद्र जसरोटिया), गमले का पौधा (गोपाल शर्मा), उस लाठी में आवाज थी (कुलदीप शर्मा), खामोश जिंदगी (आशिमा बन्याल), बीस साल बाद (दीनदयाल वर्मा), दर-ब-दर (विक्रम गथानिया), नानकी (शेर सिंह), बाबूजी (राजेंद्र पालमपुरी), सजा, स्ट्रीट सिंगर, विकास (कृष्ण चंद्र महादेविया), प्रेत योनि (राजेंद्र राजन), मां चुप हो जाओ न (गंगाराम राजी), कोहरा (सुशील कुमार फुल्ल), मैं लुट गई (सुदर्शन भाटिया) संगृहीत हैं। कहानी संग्रह के अंत में कहानीकारों का परिचय दिया गया है।
शेर सिंह के तीन कहानी संग्रह बावला (2022), घास का मैदान (2022) और चेन्ना माया (2025) विवेच्य अवधि में प्रकाशित हैं। बावला शीर्षक कहानी संग्रह में उनकी सत्रह कहानियां- असर, भूख, ध्यानी का भग्गी, जहां चाह वहां राह, मास्टर जी की बकरी, नानकी, पैराग्लाइडर, पिता, सफाई, स्वाभिमानी, अंधेरा ही अंधेरा, कृष्ण लीला, बावला, बुजदिल, संक्रमण काल, स्वयंभू और शाडू संगृहीत हैं। ‘घास का मैदान’ संग्रह में उन्नीस कहानियां- अंधेरी सुरंग, अटूट बंधन, बहुरंगी दुनिया, हारू, इति सिद्धम, का-पुरुष, कठिन राह के यात्री, लैंड शार्क, लत, मानवीयता, परंपरा, समय का फेर, शरीफ चोर, सिस्टम के पुर्जे, त्रासदी, वसुधैव कुटुंबकम्, युक्ति और मुक्ति, घास का मैदान और लाठी संगृहीत हैं।
‘चेन्ना माया’ शेर सिंह का नव्यतम कहानी संग्रह है जिसमें उनकी सत्रह कहानियां- चंडीगढ़ से दिल्ली, जिजीविषा, लखी केवल नाम नहीं, मध्यस्थता, सैरगाह, अक्सर ऐसा ही होता है, अनाम रिश्ते, अपनत्व, कौन जिम्मेदार, खोखले रिश्ते, चेन्ना माया, जिम्मेदारी या मजबूरी, नीलामी, फिसलन भरी राह, बेघर, विडंबना तथा सैम और लिजा संगृहीत हैं। सरल भाषा में लिखी गई ये कहानियां मनोरंजन के साथ-साथ सीख भी देती हैं।
-(शेष भाग अगले अंक में)
हिमाचल का कहानी संसार
विमर्श के बिंदु
1. हिमाचल की कहानी यात्रा
2. कहानीकारों का विश्लेषण
3. कहानी की जगह, जिरह और परिवेश
4. राष्ट्रीय स्तर पर हिमाचली कहानी की गूंज
5. हिमाचल के आलोचना पक्ष में कहानी
6. हिमाचल के कहानीकारों का बौद्धिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक व राजनीतिक पक्ष
लेखक का परिचय
नाम : डॉ. हेमराज कौशिक, जन्म : 9 दिसम्बर 1949 को जिला सोलन के अंतर्गत अर्की तहसील के बातल गांव में। पिता का नाम : श्री जयानंद कौशिक, माता का नाम : श्रीमती चिन्तामणि कौशिक, शिक्षा : एमए, एमएड, एम. फिल, पीएचडी (हिन्दी), व्यवसाय : हिमाचल प्रदेश शिक्षा विभाग में सैंतीस वर्षों तक हिन्दी प्राध्यापक का कार्य करते हुए प्रधानाचार्य के रूप में सेवानिवृत्त। कुल प्रकाशित पुस्तकें : 17, मुख्य पुस्तकें : अमृतलाल नागर के उपन्यास, मूल्य और हिंदी उपन्यास, कथा की दुनिया : एक प्रत्यवलोकन, साहित्य सेवी राजनेता शांता कुमार, साहित्य के आस्वाद, क्रांतिकारी साहित्यकार यशपाल और कथा समय की गतिशीलता। पुरस्कार एवं सम्मान : 1. वर्ष 1991 के लिए राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से भारत के राष्ट्रपति द्वारा अलंकृत, 2. हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा राष्ट्रभाषा हिन्दी की सतत उत्कृष्ट एवं समर्पित सेवा के लिए सरस्वती सम्मान से 1998 में राष्ट्रभाषा सम्मेलन में अलंकृत, 3. आथर्ज गिल्ड ऑफ हिमाचल (पंजी.) द्वारा साहित्य सृजन में योगदान के लिए 2011 का लेखक सम्मान, भुट्टी वीवर्ज कोआप्रेटिव सोसाइटी लिमिटिड द्वारा वर्ष 2018 के वेदराम राष्ट्रीय पुरस्कार से अलंकृत, कला, भाषा, संस्कृति और समाज के लिए समर्पित संस्था नवल प्रयास द्वारा धर्म प्रकाश साहित्य रतन सम्मान 2018 से अलंकृत, मानव कल्याण समिति अर्की, जिला सोलन, हिमाचल प्रदेश द्वारा साहित्य के लिए अनन्य योगदान के लिए सम्मान, प्रगतिशील साहित्यिक पत्रिका इरावती के द्वितीय इरावती 2018 के सम्मान से अलंकृत, पल्लव काव्य मंच, रामपुर, उत्तर प्रदेश का वर्ष 2019 के लिए ‘डॉ. रामविलास शर्मा’ राष्ट्रीय सम्मान, दिव्य हिमाचल के प्रतिष्ठित सम्मान ‘हिमाचल एक्सीलेंस अवार्ड’ ‘सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार’ सम्मान 2019-2020 के लिए अलंकृत और हिमाचल प्रदेश सिरमौर कला संगम द्वारा डॉ. परमार पुरस्कार।
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