भक्त और भगवान का रिश्ता कई अटूट विश्वास से बंधकर बनता है। ईश्वर के प्रति आस्था और श्रद्धा के लिए भक्त को किसी शर्त या किसी सबूत की जरूरत नहीं पड़ती है। भारतीय इतिहास से लेकर वर्तमान तक हम इस तरह की कई भगवान के प्रति भक्त की ईश्वरीय आस्था की सच्ची कहानियां सुनते आए हंै। राजस्थान के अलवर जिले के बहतुकला गांव में धौलादेवी का मंदिर ऐसी ही सच्ची कहानी को बतलाता है। जहां एक भक्त माता की भक्ति में अपने प्राण त्याग देता है, तो कहीं माता से झूठ बोलना भक्त पर भारी पड़ जाता है। आइए जानते हैं राजस्थान के इस मंदिर के बारे में। कहां स्थित है यह मंदिर- माता धौल देवी का मंदिर राजस्थान के अलवर जिले के बहतुकला गांव में स्थित है। इस मंदिर से जुड़ी खास बात यह है कि इस मंदिर से जितनी आस्था अलवर जिले के और दौसा के लोगों की है, उससे कहीं ज्यादा यहां उत्तर प्रदेश के आगरा और मथुरा के लोगों की है। इस राज्य के लोगों की माता के इस मंदिर में बड़ी संख्या में आस्था का कारण यह भी है कि माता को यहां के लोग अपनी कुलदेवी के रूप पूजा-अर्चना करते हैं।
माता की कृपा और आस्था की कहानी- मंदिर से जुड़ी कहानी यह है कि एक दिन जब एक बंजारा आराम करने के लिए मंदिर में रुका, तब देवी प्रकट होकर उस बंजारे से थैली में रखी वस्तु के बारे में पूछती हैं। बंजारा देवी की महिमा से अंजान बोल देता है कि नमक है। तभी माता उत्तर सुन चली जाती है। जब बंजारा जागने के पश्चात थैली को देखता है, जिसके बाद वह रो पड़ता है। तभी देवी प्रकट होती है और देवी से बंजारा माफी मांगाता है। जिसके बाद हीरे-मोती जवाहरात से उसका थैला भर गया। एक प्रचलित कहानी है यह भी है कि एक अनाथ कन्या जिसका नाम कधैला था, जोकि अपने भाई-भाभी के पास रहती थी। वह रोज गाय चराने जाती थी और घर देर से लौटती थी। तभी एक दिन उसके भाई-भाभी ने उसका पीछा किया उन्होंने देखा की कधैला राजसभा में मुख्य देवी के सिंहासन पर बैठी थी। जब कधैला की नजर अपने भाई-भाभी पर पड़ी तो उसने अपने प्राण उसी वक्त त्याग दिए। इस महीने लगता है मेला-राजस्थान में कई ऐसे आकर्षक मेलों का आयोजन होता है, जिसका आनंद लेने राज्य के बाहर से भी लोग आते हैं। इन मेलों में पर्यटकों की बड़ी संख्या देखने को मिलती है। धौलागढ़ देवी मंदिर में भी वैशाख महीने में बहुत बड़ा मेला लगता है। इस मेले में श्रद्धालुओं की काफी भीड़ एकत्रित होती है। धौलागढ़ देवी मंदिर में भक्तों की अटूट आस्था व श्रद्धा का अनुमान इस मेले को देखने से ही लगता है।