नहीं चाहिए भारतरत्न…
मेरे योग्य होते हुए भी मुझे भारतरत्न नहीं चाहिए क्योंकि पता नहीं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत कब मुझे किसी व्यक्ति के बारे में क्या कहना पड़ जाए और उसे क्या लग जाए व उसकी पार्टी के लोग कब मुझसे नाराज हो जाएं तथा मुझे दिया हुआ भारतरत्न वापस लेने की मांग करने लगें। अभी हुआ क्या था- विचारक जी ने अपना मत ही तो प्रकट किया था कि नमोनारायण जी की पार्टी भडक़ उठी और यहां तक कह दिया कि उनकी सरकार बनी तो वे विचारक जी से दिया हुआ भारतरत्न सम्मान वापस लेगी। न सोचना, न विचारना और कह दिया कि उनसे भारतरत्न वापस लो। विचारक जी ने भी कह दिया कि ले लो भाई यदि इससे तुम्हारी सरकार बनती है तो। यही मेरा कहना है कि मुझे तो इस लफड़े में डालें ही नहीं, मेरे पिताजी ने मेरा नाम भारतरत्न पहले ही रख रखा है, वही मेरे लिए पर्याप्त है। आपको बात पसंद नहीं आई और बना दिया आपने तिल का ताड़। और कुछ नहीं तो इसी पर राजनीति होने लगी। पता नहीं राजनीति इतनी कैसे गिर गई है कि वैचारिक गुणवत्ता का सर्वथा अभाव हो गया है। पिताजी का देहांत अभी कुछ दिनों पूर्व हुआ है, मरते समय यही कह गए थे, बेटा तू भी विचारक है, हो सकता है सरकार तुझे भी भारतरत्न दे दे, लेकिन तू भूलकर भी मत लेना। बाद में बहुत छीछालेदर होती है। तू तो मेरे लिए जन्मजात रत्न है। इसलिए मैंने तेरा नाम ही भारतरत्न रखा था। राजनीति बड़ी गंदी हो गई है, कभी चुनाव भी मत लडऩा। यहां रोज नए-नए नमोनारायण पैदा होते हैं तथा काल कवलित हो जाते हैं। तेरा किया हुआ नेक कार्य ही अमर और अमिट रहने वाला है।
मैं फ्रीडम फाइटर था, देख ले कभी किसी ने कुछ पूछा भी। वोटों के लिए पेंशन दे दी और इतिश्री कर ली। ये नेता लोग क्या-क्या करते हैं, आज किसी से छुपा हुआ नहीं है। थूक कर चाटते हैं और जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करते हैं। आचरण से भ्रष्ट तथा देश को लूटने वाले हैं। इसके बाद पिताजी ने अपनी आंखें सदा के लिए मूंद ली थी। आज मैं कहता हूं नेता लोग लाखों-करोड़ों का गबन-घोटाला कर रहे हैं, क्या वे वापस देते हैं? कभी नहीं, बल्कि अपना यह लूट तंत्र जारी रखते हैं तथा जनता को बेवकूफ बनाकर लोकतंत्र का ढोंग करके सत्ता में बने रहते हैं। विचारक जी से मान लीजिए, आपने भारतरत्न वापस ले भी लिया तो उनके क्या फर्क पड़ जाएगा? क्या उनका दिया गया योगदान कम हो जाएगा? भारतरत्न आपने दिया था, वे जबरन लेकर नहीं आए थे, उनका मान तो पहले ही था, तब ही तो आपने यह मान दिया, वरना किस ऐरे-गैरे, नत्थू खैरे लबाली को दे देते अथवा खुद ले लेते, विचारक जी के क्या फर्क पड़ जाता। इन्हीं बातों को ध्यान में लाकर और पिताजी की अंतिम इच्छा को ध्यान में रखते हुए मैं सार्वजनिक घोषणा करता हूं कि मुझे भारतरत्न कृपया न दें। मेरा भारतरत्न नाम ही पर्याप्त है और वैसे भी जो इस भारतमाता की मिट्टी पर खेल-कूद लिया तथा आचरण से शुद्ध रहा, वही तो असली भारतरत्न है। उपाधियां या सम्मान देने से ही नहीं बन जाता है भारतरत्न। इसलिए मुझे नहीं चाहिए भारतरत्न।
पूरन सरमा
स्वतंत्र लेखक
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