मेरे सामने वाली खिडक़ी में

By: May 23rd, 2025 12:05 am

आप सोच रहे होंगे कि मेरे सामने वाली खिडक़ी में कोई चांद का टुकड़ा रहता है। हरगिज नहीं, चांद का टुकड़ा होता तो परेशानी वाली कोई बात ही नहीं थी। मेरे सामने वाली खिडक़ी में गुप्ताजी का परिवार रहता है। गुप्ता जी, मिसेज गुप्ता, उनका लडक़ा कमल तथा लडक़ी नीरू। यह है कुल मिलाकर गुप्ता जी के परिवार की जनसंख्या। मेरे कमरे की खिडक़ी ठीक उनके कमरे की खिडक़ी के सामने खुलती है। मुझसे न खिडक़ी खोलते बनती है और न बंद करते ही। कई बार मन कहता है-जब खिडक़ी बंद ही करनी थी तो बनवाई क्यों थी और यदि मकान में खिडक़ी बन ही गई है तो अब उसे खोलना ही है। सो मैं खिडक़ी खोलकर बैठा रहता हूं। खिडक़ी खोलने के पीछे मुख्य आकर्षण मिसेज गुप्ता हैं। मैं फिर यहां स्पष्ट कर दूं कि मिसेज गुप्ता के साथ मेरा ऐसा-वैसा कुछ नहीं है। बस खिडक़ी खोलनी है और मिसेज गुप्ता की दिनचर्या का जायजा लेना मेरी नियति है। मेरी खिडक़ी के सामने वाली खिडक़ी के सबसे असहाय पात्र गुप्ता जी हैं जो बेहद दब्बू तथा डरपोक किस्म के इनसान हैं। सदैव दबी जुबान में बात करते हुए मेरी खिडक़ी में कनखियों से देखते रहते हैं। एक-दो बार तो मुझे शक हुआ कि कहीं गुप्ता जी मेरी पत्नी को तो इस बहाने नहीं देखते हैं। परंतु मेरा यह शक मात्र वहम निकला और अंत में अनेक गोपनीय ताका-झांकी के बाद यह तो साबित हो गया कि गुप्ता जी जब स्वयं की पत्नी से ही आंख नहीं मिला सकते तो मेरी मिसेज दुर्गा से क्या नैन लड़ाएंगे? गुप्ता जी उम्र में मेरे समकालीन हैं, यही पैंतीस के आसपास उम्र, परंतु चिंतन की निरंतरता ने उन्हें असमय ही चालीस के ऊपर का बना दिया है।

चश्मा तो मैं भी लगाता हूं, परंतु गुप्ता जी के चश्मे का कांच और फ्रेम दोनों मोटे हैं। कपड़े गुप्ता जी भी पहनते हैं, परंतु ढीले-ढाले मुगलकालीन, जबकि मैं इस मामले में थोड़ा आधुनिक हूं। दाढ़ी मैं भी बनाता हूं, मैं प्राय: रोजाना शेव करता हूं, जबकि गुप्ता जी सात दिन में रविवार की सुबह। चेहरा गुप्ता जी के भी है, परंतु रुआंसा-घिघियाया सा है, जबकि मेरा प्रयत्न मंद मुस्कान हंसने का है। मुझमें और गुप्ता जी में जो सबसे बड़ा साम्य है, वह है उनकी और मेरी पत्नी एक सी हैं, फर्क बस इतना सा है कि वे पत्नी से डरते हैं, जबकि हम लोगों के यहां सत्ता परिवर्तन नहीं हुआ है। विषयांतर होने से बचने के लिए मूल विषय पर आना चाहिए तथा कहानी की मूल पात्रा मिसेज गुप्ता पर विचार होना चाहिए। मिसेज गुप्ता परिवार में मातृ प्रधान व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करती हैं तथा गुप्ता जी वर्तमान में पराधीनता व गुलामियत का जीवन जीने को मजबूर हैं। मिसेज गुप्ता सामान्यत: आराम पर जोर देती हैं। बच्चों तथा गुप्ता जी को दिन में पांच-सात बार डांटना सामान्य घटना है। सुबह चाय बनाने की ड्यूटी गुप्ता जी की है, तो रोटियां बनाने की जिम्मेदारी उनकी बालिका की है। बीच में थोड़ा सा हाथ बंटा देंगी तथा उसके बाद कमर दर्द, सिर दर्द अथवा कमजोरी का बहाना करके वे पलंग पर लेट जाती हैं। सबसे दर्शनीय दृश्य मेरे लिए उस खिडक़ी में से वह है, जब गुप्ता जी सिर अथवा पैर दबाते हुए अपने भाग्य को कोसते हैं। गुप्ता जी यह कर्म करते हुए ‘रिवोल्ट’ की गति को प्राप्त नहीं हुए हैं। निरंतर उनका गहरा सेवाभावी बनते जाना तथा विनयशीलता का आभूषण उनकी शोभा बन विकसित हो रहा है।

पूरन सरमा

स्वतंत्र लेखक


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App or iOS App