मुझे बाबा बन जाने दो…

By: May 9th, 2025 12:05 am

मेरे लंगोट में आने में कोई कमी नहीं है, लेकिन पत्नी व बच्चे मुझे बाबाजी भी नहीं बनने दे रहे। जब मैं प्याज-टमाटर भी नहीं खरीद पा रहा हूं, स्कूटर में पैट्रोल नहीं भरवा पा रहा हूं, तो मुझे चालीस साल की इस आयु में बाबा बन ही जाना चाहिए। बाबा पिचहत्तर वर्ष का भी मर्दाना टेस्ट में फिट है और मेरी चालीस में हवा निकल गई है। बताइये परिस्थितियां मेरी बाबा बनने के अनुकूल हैं या नहीं? बाबा लोग मलीदे खा-खा कर मुस्टंडे हो रहे हैं और मेरी बिना एक्स-रे करवाए ही सारी पसलियां गिनी जा सकती हैं। मैं सारे जहां से अपील करता हूं कि मुझे बाबा बनने से न रोका जाए। खास तौर पर मेरा मेरे परिवारजनों से आग्रह है कि वे अब मुझे बाबा बनने से न रोकें। उनकी दलील है कि कोल्हू का बैल कोल्हू में घूमता हुआ ही भला लगता है। बाबा बन जाओगे तो किसी जेल में पड़े-पड़े सड़ोगे, इससे अच्छा तो गृहस्थ बने रहकर जीवन के आनंद लूं। लेकिन जीवन में आनंद बचा कहां है? सरकार ने अपनी गलत नीतियों से मुझे लंगोट में ला दिया है। बाजार और महंगाई ने मुझेे जार-जार फूट कर रोने को मजबूर कर दिया है। वेतन में जो रुपया लाता हूं, वह डॉलर के आगे पानी भर रहा है। मेरी शारीरिक क्षमता के साथ-साथ खरीद क्षमता भी लगभग चुक गई है। कल ही की बात है, मैंने अपने बेटे को बुलाया और कहा- ‘बेटा, मुझे विदा करो। कहीं भी आश्रम बनाकर गुजरा कर लूंगा। एक बार मौका तो दो, बाद में तो व्यारे-न्यारे करके तुम सबको भी वहीं बुला लूंगा। अब इस जीवन में कुछ नहीं धरा है। बाबा लोग बीएमडब्ल्यू में घूम रहे हैं। मैं आप लोगों के लिए निस्सार हो गया हूं।

अत: मुझे बाबा बन जाने दो।’ बेटा बोला- ‘पापा, अगले महीने तक तो आप वैसे भी बाबा बन जाओगे। आपके उस ऊपरवाले की कृपा से पोता या पोती होने वाला है, इसलिए आप इस जिद को छोड़ें। बाबाओं की हालत आप देख नहीं रहे? कितनी बुरी और विकट स्थितियों से वे जूझ रहे हैं।’ तभी मेरा सहपाठी कमलकांत आ गया। वह आते ही बोला -‘अरे भाई शर्मा क्या बात है। आज तो बाप-बेटे में घुट-घुट कर बातें हो रही हैं।’ पहले बेटा ही बोला-‘अंकल, पापा को समझाओ न, इन्होंने एक सप्ताह से बाबा बनने की जिद पकड़ रखी है। आप तो दुनिया का सारा नाटक समझते हैं। पापा बाबागिरी नहीं कर पाएंगे। इनकी बाएं चलने की आचार संहिता इन्हें एक सफल बाबा किसी भी सूरत में नहीं बना सकती।’ कमलकांत ने बेटे से कहा-‘जा बेटा, तू मेरे लिए चाय-पानी की व्यवस्था कर, मैं बात करता हूं तेरे पापा से।’ बेटा चला गया और कमलकांत मुझसे बोला-‘क्या बात है शर्मा, रेप करने की इच्छा हो रही है। भाई घर में रहकर कुछ भी करो, लेकिन यह बाबा वाला चक्कर मेरी समझ में नहीं आ रहा।’ मैंने कहा-‘दरअसल कमलकांत मैं इस बिना पहिए की गृहस्थी की गाड़ी को ज्यादा नहीं खैंच पाऊंगा। मुझे महंगाई और भ्रष्टाचार ने मारा है। इसलिए भाई तुम घरवालों को समझाओ, पांच साल में घर की तकदीर बदल दूंगा। फिर ये आराम से मेरे आश्रम में साई बनकर रहें।’ कमलकांत एक पल को कहीं खो गया, फिर बोला-‘मुझे भी ले चलो शर्मा। मैं भी बहुत दुखी हूं। दोनों भाई कमाएंगे- खाएंगे। मौज करेंगे।’ मैं बोला-‘जाओ पहले घर में बात करो।’

पूरन सरमा

स्वतंत्र लेखक


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