तन-मन के परे जाने का साधन ध्यान

सद्गुरु जग्गी वासुदेव
जब आप अपनी पहचान एक शरीर के रूप में करते हैं, तो जीवन के बारे में आपकी सारी समझ सिर्फ जीवित रहने भर के बारे में होगी। अगर आप अपनी पहचान अपने मन के रूप में करते हैं, तो आपकी सारी समझ सिर्फ पारिवारिक, सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण की गुलाम ही होगी। आप इन सब के परे देख ही नहीं सकते। केवल जब आप अपने ही मन के फेर से मुक्त होंगे, तब ही आप परे के आयाम को जान पाएंगे। यह शरीर और यह मन आपके नहीं हैं। ये कुछ ऐसी चीजें हैं जो आपने कुछ समय में इक_ा की हैं। आपका शरीर आपके खाए हुए भोजन का एक ढेर मात्र है। आपका मन केवल आपके द्वारा बाहर से इक_ा किए हुए प्रभावों का एक ढेर है। आपने जो इक_ा किया है वो आपकी संपत्ति है। जैसे कि आपका घर है, बैंक में जमा रकम है, वैसे ही आपके पास शरीर और मन है। बैंक में अच्छी रकम, एक अच्छा शरीर और एक अच्छा मन एक अच्छा जीवन जीने के लिए जरूरी हैं, पर पर्याप्त नहीं हैं। कोई भी मनुष्य इन चीजों से कभी भी संतुष्ट नहीं रहेगा। ये जीवन को सिर्फ आरामदायक बनाएंगे। पहले की किसी भी पीढ़ी ने इस तरह के आराम की, इस तरह की सुविधाओं की कल्पना भी नहीं की थी, जो हमारे पास हैं।
फिर भी हम यह नहीं कह सकते कि इस धरती पर हम सबसे ज्यादा आनंदित और सबसे ज्यादा प्रेमपूर्ण पीढ़ी हैं। आपके जीवित रहने के लिए आपके पास शरीर और मन, ये जो दो साधन हैं, वे ठीक हैं पर वे आपको पूर्णता नहीं देंगे।
उनसे आपको संतोष नहीं मिलेगा, क्योंकि मनुष्य का गुण ही है जितना है उससे ज्यादा चाहना। अगर आप नहीं जानते कि आप कौन हैं, तो क्या आप ये जानने के काबिल हैं कि ये दुनिया क्या है? आप जो हैं, उसके सही गुणों का अनुभव करने के लिए आपको अपने शरीर और मन के परे जाना होगा। योग और ध्यान, इसके लिए वैज्ञानिक साधन हैं।
आध्यात्मिक प्रक्रिया: जीवन के लिए स्वच्छंद उत्साह- आमतौर पर दुनिया में हर कोई अपने सपनों को पूरा करने की सोचता है। आपका सपना जो कुछ भी हो, यह आपके अतीत का एक बढ़ाया-चढ़ाया हुआ रूप होता है। आप किसी ऐसी चीज का सपना नहीं देख सकते जिसे आप जानते नहीं हैं। तो, आप जो जानते हैं, उसी के आधार पर तय करते हैं कि आपको भविष्य में क्या करना है। जब आप पहले से जो जानते हैं, उसी से अपना भविष्य तय करते हैं, तो एक तरह से आप यह सुनिश्चित कर लेते हैं कि आपके साथ कभी भी कुछ नया नहीं होगा। भविष्य के लिए ऐसे सपने एक संभावना नहीं है। आप भविष्य में अतीत की तलाश कर रहे हैं। आप वास्तव में वापस लौट रहे हैं, लेकिन आपको लगता है कि आप आगे बढ़ रहे हैं। किसी लक्ष्य के बिना बस यहां रहना ही एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है। इसका मतलब सुस्त और शिथिल होना नहीं है।
एक आध्यात्मिक प्रक्रिया का अर्थ है कि अभी जो कुछ भी हो रहा है, उसके साथ गहरी भागीदारी के साथ में रहना, लेकिन लक्ष्य के बिना। यदि आप इस तरह से यहां बैठने की हिम्मत रखते हैं कि ‘कल जो कुछ भी होगा, मुझे मंजूर है, लेकिन अभी मैं जो कुछ भी कर रहा हूं, उसे मैं सबसे अच्छे तरीके से करूंगा’ तो आप स्वाभाविक रूप से आध्यात्मिक होंगे। आध्यात्मिक प्रक्रिया जीवन के लिए एक स्वच्छंद उत्साह होने से अलग नहीं है। समूचे ज्ञान को प्राप्त करने के लिए आपको अपने अंतर्मन की गहराइयों में झांकना होगा और जीवन का सही अर्थ और भाव क्या है इसे जानना होगा।
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