खामोश, नेता जी ट्विटर पर हैं…

By: May 24th, 2025 12:05 am

नेताजी ट्वीट कर रहे हैं। वह ट्विटर पर हैं। अभी उन्हें पब्लिक के बीच में आने की फुर्सत नहीं है। मीडिया के बीच में आने के लिए उन्होंने अभी तक समय नहीं निकाला है। महंगाई और भ्रष्टाचार को लेकर उन्होंने अभी मंथन नहीं किया है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि नेताजी कुछ नहीं कर रहे और निठल्ले बैठे हैं। नेताजी ट्विटर पर हैं। ट्वीट कर रहे हैं। फेसबुक पर हैं…अपनी गतिविधियां बताते रहते हैं। जनता को संबोधित करते रहते हैं। संदेश देते रहते हैं। पब्लिक उनसे मिलने के लिए बेचैन रहती है। फाइलों के ढेर उनकी टेबल पर लग जाते हैं। नेताजी के पास पब्लिक की समस्याएं सुनने की फुर्सत नहीं है। नेताजी सिर्फ अपनी बात कहते हैं- वह भी ट्विटर पर आकर, फेसबुक पर आकर, टीवी पर आकर! नेताजी इसी तरह आते रहते हैं, उपदेश देते रहते हैं, गरजते रहते हैं। विरोधियों को ललकारते रहते हैं, फटकारते रहते हैं। किसी न किसी के सिर पर दोष मढ़ते रहते हैं। उन्हें लगता है कि जो कुछ गलत आज तक होता आया है वो विरोधियों ने किया है और जो भी ठीक हो रहा है, उसका श्रेय केवल उन्हें ही मिलना चाहिए। नेताजी देश-विदेश जाते रहते हैं। घूमते फिरते रहते हैं। घुमंतू नेता हैं। विमान में यात्राएं करते हैं। ट्विटर, व्हाट्सएप्प और फेसबुक पर यात्राएं करते हैं। यात्राओं के बीच ही चिंतन और मनन करते हैं। कभी गंभीर हो जाते हैं, कभी आक्रामक हो जाते हैं। उनके समर्थक उनकी इस अदा पर बलिहारी हैं। समर्थकों को लगता है कि कलियुग में वह भगवान का अवतार लेकर आए हैं, सुधार करके जाएंगे। समर्थक उनकी महानता के किस्से आपस में शेयर करते रहते हैं, और नेताजी अपने विचार ट्विटर पर शेयर करते रहते हैं। देश चल रहा है। ट्विटर चल रहा है। नेताजी का संदेश चल रहा है।

पब्लिक टुकुर-टुकुर देख रही है, आने वाले अच्छे दिनों की उम्मीद में। नेताजी जनता की उम्मीद के नायक हैं। नेताजी जब ट्वीट करते हैं, तो खबरें बनती हैं। हर लाइक और रीट्वीट को वह जनादेश समझते हैं। नेताजी प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं करते, क्योंकि सवालों से खतरा होता है। वे कैमरे में देखते हैं, लेकिन जनता की आंखों में नहीं। कभी-कभी उनकी भाषा में कवित्व झलकता है- ‘सब चंगा सी, सब चंगा होवेगा।’ नेताजी के पीछे पूरा आईटी सेल है, जो ट्रेंड बनाता है, ट्रेंड मिटाता है। पार्टी मीटिंग अब ज़ूम पर होती है और आंदोलन ईवेंट मैनेजमेंट से। जनता की समस्याओं पर फुर्सत नहीं, क्योंकि कैमरा एंगल सेट करना भी एक काम है। नेताजी के हर दौरे में फ्लाइट से ज़्यादा फोटो शूट ज़रूरी होता है। हर नारे में उनका नाम होता है, और हर योजना में उनका चेहरा। नेताजी देश के बारे में नहीं, अपनी ब्रांडिंग के बारे में सोचते हैं। और जनता? वो लाइक करती है, शेयर करती है, और फिर चुपचाप महंगाई झेलती है। नेताजी जब मुस्कराते हैं, तो कैमरे फ्लैश हो उठते हैं, और जब चुप रहते हैं, तब भी एंकर उनका बचाव करते हैं। नेताजी की खांसी भी ब्रेकिंग न्यूज़ बन जाती है, और उनकी चुप्पी को ‘रणनीतिक मौन’ कहा जाता है। नेताजी का हर दौरा ‘ऐतिहासिक’ होता है, भले ही सडक़ वहीं की वहीं हो। उनके भाषणों में ‘विकास’ सबसे ज़्यादा होता है- और जमीन पर सबसे कम। नेताजी की नजऱ में हर सवाल एक साजि़श है। हर आलोचक देशद्रोही है, और हर विरोधी विघ्नसंतोषी। नेताजी जब आत्ममुग्ध होते हैं, तो देशभक्ति की परिभाषा बदल जाती है। और जनता? वह अब भी ‘अच्छे दिनों’ के पुराने पोस्टर संभाले बैठी है।

गुरमीत बेदी

साहित्यकार


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