Stromatolite Fossil : सोलन के चंबाघाट में मिला 60 करोड़ साल पुराना स्ट्रोमैटोलाइट फॉसिल

By: May 14th, 2025 12:01 am

गिनीज बुक वल्र्ड रिकॉर्ड होल्डर प्रसिद्ध भू-वैज्ञानिक डा. रितेश आर्य ने की खोज, पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत की कहानी समझने में भी मिलेगी मदद

सौरभ शर्मा — सोलन

सोलन जिला के चंबाघाट क्षेत्र में दुनिया के सबसे प्राचीन स्ट्रोमैटोलाइट फॉसिल (जीवाश्म) की खोज की गई है। यह खोज गिनीज बुक वल्र्ड रिकॉर्ड होल्डर व टेथिस फॉसिल म्यूजियम के संस्थापक कसौली निवासी प्रसिद्ध भू-वैज्ञानिक डा. रितेश आर्य ने की है। उनका दावा है कि यह फॉसिल 60 करोड़ वर्ष से भी अधिक पुराने हैं और पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत की कहानी बयां करते हैं। इस खोज से न केवल देश-विदेश के भू-वैज्ञानिकों व इस क्षेत्र में अध्ययनरत छात्रों को लाभ मिलेगा बल्कि पृथ्वी पर जीवन की शुरूआत के कई रहस्यों पर भी पर्दा उठेगा। जाने-माने भू-वैज्ञानिक डा. रितेश आर्य किसी परिचय के मोहताज नहीं है। वह निरंतर जगह-जगह फॉसिल की खोज करते रहते हैं। कुछ माह पूर्व ही उन्होंने कोटी रेलवे स्टेशन के पास दो करोड़ वर्ष पुराने फॉसिल स्टेम को खोजा था। वह हरियाणा सहित लेह-लद्दाख में भी फॉसिल खोज चुके हैं।

उनकी यह खोजें भू-वैज्ञानिक संसार के लिए एक वरदान साबित हुई हैं। वहीं, अब उन्होंने एक बार फिर सोलन के साथ लगते चंबाघाट क्षेत्र के जोलाजोरां गांव में दुनिया का सबसे प्राचीन स्ट्रोमैटोलाइट फॉसिल खोज निकाला है। उन्होंने दावा किया है कि यह फॉसिल 60 करोड़ वर्ष से अधिका पुराना है। डा. रितेश आर्य का कहना है कि यह पत्थर नहीं, बल्कि जिंदा इतिहास है और पृथ्वी के पहले जीवों द्वारा बनाए गए स्मारक हैं। उन्होंने तब ऑक्सीजन का निर्माण शुरू किया, जब धरती पर कोई पेड़-पौधे या जानवर नहीं थे। अगर स्ट्रोमैटोलाइट्स नहीं होते, तो आज ऑक्सीजन भी नहीं होती।

क्या होते हैं स्ट्रोमैटोलाइट्स

स्ट्रोमैटोलाइट्स समुद्र की उथली सतहों पर माइक्रोबियल चादरों द्वारा बनाए गए परतदार पत्थर होते हैं। सोलन में स्ट्रोमैटोलाइट्स का मिलना यह दर्शाता है कि आज का सोलन क्षेत्र कभी टेथिस सागर का समुद्री तल हुआ करता था। टेथिस वही सागर है जो कभी गोंडवाना (जिसमें भारत, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अमेरिका और अंटार्कटिका शामिल थे) और एशिया के बीच था। डा. आर्य बताते हैं कि जब पृथ्वी की हवा में ऑक्सीजन नहीं थी और ग्रीनहाउस गैसें छाई थीं, तब इन्हीं सूक्ष्म जीवों ने करीब दो अरब साल में धीरे-धीरे ऑक्सीजन बनाना शुरू किया, जिससे आगे जाकर जीवन संभव हुआ।

नई खोज को लेकर यह बोले विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ

ओएनजीसी के पूर्व महाप्रबंधक डा. जगमोहन सिंह ने कहा कि चंबाघाट के ये स्ट्रोमैटोलाइट्स हमें उस युग में ले जाते हैं, जब पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत हो रही थी। यह भारत की भूवैज्ञानिक धरोहर में एक ऐतिहासिक योगदान है। वाडिया संस्थान के पूर्व वरिष्ठ भूवैज्ञानिक और स्ट्रोमैटोलाइट्स पर अंतरराष्ट्रीय भूवैज्ञानिक समन्वय कार्यक्रम (आईजीसीपी) के सदस्य प्रो. विनोद तिवारी ने कहा कि चंबाघाट का स्ट्रोमैटोलाइट स्थल वैश्विक भूवैज्ञानिक मानचित्र में एक महत्त्वपूर्ण योगदान बन सकता है, जो पृथ्वी विज्ञान के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय समन्वय और सहयोग को प्रोत्साहित करेगा। पंजाब विश्वविद्यालय के भूविज्ञान के पूर्व विभागाध्यक्ष एवं वरिष्ठ भूवैज्ञानिक प्रो. (डा.) अरुण दीप आहलूवालिया ने कहा कि ये जीवाश्म न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं, बल्कि संरक्षण के योग्य भी हैं। इनकी संरचना और आकार अद्भुत है। यदि सोलन इस दिशा में पहल करता है, तो यह मसूरी और नैनीताल जैसे क्षेत्रों के लिए भी प्रेरणा बन सकता है।


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