जांच की महान परंपरा…
प्रजा ने राजा के दरब-ार में पहुंचकर गुहार लगाते हुए कहा, ‘महाराज! यह बड़ा गंभीर मामला है। व्यवस्था के उत्पीडऩ से एक इंजीनियर ने सुसाइड कर लिया। अब तो सबूत सामने हैं। अफसरों की चुप्पी भी बहुत कुछ कह रही है। दोषियों को सजा जरूरी है और इसके लिए सीबीआई से जांच होनी चाहिए।’ राजा मुस्कुराए, वह मुस्कुराहट जो चुनावी वादों के वक्त दिखाई देती है और घोषणा करने के बाद गायब हो जाती है, ‘काहे की जांच? हमारी एजेंसियां बहुत बढिय़ा काम कर रही हैं। हमारी एजेंसियां चाहें तो चाय में पड़ी मक्खी का डीएनए निकाल सकती हैं और विपक्ष की नींदों का भी हिसाब रख सकती हैं।’ प्रजा ने कहा, ‘लेकिन महाराज! आपकी एजेंसियों पर तो जनता को भरोसा नहीं रहा। वह तो कहते हैं जो आप कहें, वही रिपोर्ट बना देते हैं।’ राजा बोले, ‘देखो प्रजा! अपनी एजेंसियां जो जांच कर रही हैं, उनकी जांच से पूरी तरह संतुष्ट हूं।’ प्रजा बोली, ‘लेकिन हम तो संतुष्ट नहीं हैं।’ राजा बोले, ‘प्रजा आप बहुत भोली हो। विपक्ष ने आपको उकसा कर गुमराह कर दिया है। आप भावनाओं में बह रही हो, लेकिन हम राजा लोग अनुभव में पके हुए हैं। हमें अच्छी तरह पता है कि जांच किससे करानी है और किससे नहीं। हमारी एजेंसियां वो हैं जो न सिर्फ जांच करती हैं, बल्कि जरूरत पडऩे पर विरोधियों की डिबरी भी टाइट कर देती हैं।’ राजा ने समझाया, ‘अगर हमने जांच सीबीआई को सौंप दी तो प्रदेश की फजीहत हो जाएगी। इससे हमारी एजेंसियों का मनोबल टूटेगा। और वैसे भी, जब हमें किसी राजनीतिक विरोधी को रगड़ा देना हो, तो हम अपनी एजेंसी भेजते हैं। वो दिन-रात जांच करती रहती हैं और विरोधी सवालों के जवाब देते-देते थक जाते हैं। हमारी एजेंसियां अपने आप में एक संपूर्ण यंत्र हैं (सत्ता रक्षक भी और सत्ता भक्षक भी, पर विपक्ष के लिए)।’
राजा बोले, ‘हमारी एजेंसियों का एक विशेष प्रशिक्षण होता है। जांच शुरू करने से पहले वे ‘कौन अपना, कौन पराया’ की पहचान करना सीखती हैं। फिर उसी अनुसार स्पीड तय करती हैं। अगर आरोपी विपक्ष का है तो फाइलें धड़ाधड़ खुलती हैं, प्रेस कॉन्फ्रेंस होती हैं और हर रोज नया खुलासा होता है। लेकिन अगर सत्ता पक्ष का हो तो एजेंसी फाइल को नींबू-मिर्च लगाकर थाने के ऊपर लटका देती है कि नजर न लगे। उनकी नजरें रिपोर्ट से ज्यादा इशारों को पढऩे में माहिर हैं। सीसीटीवी से पहले वो सत्ता की सीटी पर ध्यान देती हैं। उनके ऑफिस में संविधान की किताब अलमारी में ऊपर की शेल्फ में धूल खा रही होती है, और राजा का फोटो ठीक सामने टंगा होता है- हर सवाल का उत्तर।’ ‘लेकिन हजूर जांच सीबीआई एजेंसी से होनी चाहिए। इससे दूध का दूध पानी का पानी होगा।’ पब्लिक में से एक व्यक्ति बोला। राजा ने गर्व से कहा- ‘हमारी एजेंसियां निष्पक्ष नहीं हैं। वे निश्चल हैं, क्योंकि उन्हें कभी सत्ता की ‘ना’ सुनाई ही नहीं देती। वे इतना खामोशी से काम करती हैं कि कब किसी की गरदन फंस गई, खुद उसको भी पता नहीं चलता। हमारी एजेंसियां सबसे पहले यह देखती हैं कि आरोपी किस पार्टी का है। अगर सत्ता पक्ष का है तो फाइल खोलने से पहले हनुमान चालीसा पढ़ती हैं, और अगर विपक्ष का है तो इतनी तेजी से चलती हैं जैसे बकरी शेर के सामने आ गई हो।’ राजा बोले- ‘सीबीआई जैसी एजेंसियां स्वतंत्र होती हैं, और स्वतंत्र सोचती हैं। अब भला हम राजा होकर ये कैसे बर्दाश्त करें कि कोई हमारे फैसलों पर उंगली उठाए? हम वहीं से जांच कराएंगे जहां सवाल कम और सलाम ज्यादा होता है। जहां रिपोर्ट पहले राजा को दिखाई जाती है, फिर फाइल में लगाई जाती है। जहां निष्पक्षता का अर्थ होता है- ‘सत्ता के पक्ष में निष्कलंक रहना।’ और देखिए…हमारी जांच एजेंसियां इतनी अनुभवी हैं कि वे बिना जांच के ही निष्कर्ष निकाल सकती हैं। उन्हें अपराध से पहले अपराधी का नाम पता होता है, और अगर नाम नहीं भी हो, तो इशारा काफी होता है।’
गुरमीत बेदी
साहित्यकार
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