पाकिस्तान के साथ निर्णायक युद्ध की घड़ी

कारगिल के बाद तो अब तक आतंकवाद के रूप में यह युद्ध निरंतर चल रहा है। ट्रंप ने सही कहा है कि यह लड़ाई हजार-पंद्रह सौ साल से चली हुई है। अंतर केवल इतना ही है कि पहले हमले अरब, तुर्क या मुगल करते थे, लेकिन अब उनमें भारत पर हमले करने की हिम्मत तो नहीं बची है या फिर उन्हें शायद इसकी जरूरत भी नहीं है। अलबत्ता अब अपने ही वे लोग जिन्होंने इस कालखंड में इस्लाम ग्रहण कर लिया था, जब भारत पर हमला करते हैं तो तुर्क उनकी मदद पर आ जाते हैं…
अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने पहलगाम पर पाकिस्तान द्वारा किए गए परोक्ष आक्रमण करते हुए कहा कि यह झगड़ा एक हजार साल से चला हुआ है। दोनों पक्षों को इसे सुलझाना चाहिए। बहुत से लोगों ने इसके लिए ट्रंप पर विपरीत टिप्पणियां कीं। लेकिन लगता है ट्रंप ने जाने-अनजाने में इतिहास के एक बहुत बड़े तथ्य की ओर संकेत किया है। पाकिस्तान भारत के पश्चिमोत्तर का हिस्सा है। सन् 712 में हिंदुस्तान पर अरबों का पहला हमला इसी क्षेत्र के सिंध प्रदेश पर हुआ था। सरल शब्दों में कहना हो तो आज के कराची शहर पर हुआ था। आज 2025 तक आते-आते उस हमले को हुए लगभग 1300 साल हो गए हैं। उसके बाद इस क्षेत्र में कभी शांति नहीं हो सकी। सन् 1000 के आसपास तुर्कों ने इसी सप्त सिंधु क्षेत्र पर हमले करके इसे इस्लाम के घेरे में लाना शुरू किया था। पांच सौ साल तक यह दुखांत अबाध रूप से चलता रहा। लेकिन इन पांच सौ साल में हिंदुस्तान के पश्चिमोत्तर की बहुत सी जनसंख्या को डरा धमका कर या लालच से इस्लाम पंथ या शिया पंथ में मतांतरित कर दिया गया।
संघर्ष और विरोध भी होता रहा। सन् 1500 के आसपास मुगलों ने हल्ला बोल दिया। उनके काल में तो ‘इस्लाम में आ जाओ या फिर मरने की तैयारी करो’ का माहौल बनने लगा। लेकिन विरोध भी उतना ही तीखा होने लगा। गुरु नानक देव जी से लेकर गुरु गोबिंद सिंह जी तक की दशगुरु परंपरा इसी काल में शुरू हुई थी। लेकिन अब तक भारत का बहुत बड़ा हिस्सा मसलन बलूचिस्तान, खैबर पख्तूनखवा, सिंध प्रदेश और पंजाब का बहुत बड़ा हिस्सा इस्लाम पंथ को ग्रहण कर चुका था। अठारहवीं सदी में भारत पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया। वे बीसवीं शताब्दी के मध्य में देश से तो चले गए, लेकिन जाने से पहले पश्चिमोत्तर भारत या सप्त सिंधु क्षेत्र के उस हिस्से को जो पिछले हजार साल में इस्लाम की चपेट में आ चुका था, पाकिस्तान नाम देकर भारत से अलग कर गए। उसके बाद अरबों, तुर्कों या मुगलों को हिंदुस्तान पर हमला करने की जरूरत नहीं पड़ी या फिर उनमें अब उतनी हिम्मत नहीं रही थी, लेकिन उनका यह काम भारत के ही उस हिस्से ने संभाल लिया जिसे अंग्रेज इस्लाम के आधार पर अलग करके गए थे। उसके बाद पाकिस्तान द्वारा 1947-48, 1965, 1971 में किए गए हमलों और उसके बाद कारगिल युद्ध को देखा जा सकता है।
कारगिल के बाद तो अब तक आतंकवाद के रूप में यह युद्ध निरंतर चल रहा है। ट्रंप ने सही कहा है कि यह लड़ाई हजार-पंद्रह सौ साल से चली हुई है। अंतर केवल इतना ही है कि पहले हमले अरब, तुर्क या मुगल करते थे, लेकिन अब उनमें भारत पर हमले करने की हिम्मत तो नहीं बची है या फिर उन्हें शायद इसकी जरूरत भी नहीं है। अलबत्ता अब अपने ही वे लोग जिन्होंने इस कालखंड में इस्लाम ग्रहण कर लिया था, जब भारत पर हमला करते हैं तो तुर्क उनकी मदद पर आ जाते हैं। तुर्की इस समय यही कर रहा है। लेकिन अब मुख्य प्रश्न यही है कि क्या पंद्रह सौ साल से चली आ रही इस लड़ाई को खत्म करने का वक्त आ गया है? यह सवाल इसलिए भी जोर पकड़ रहा है क्योंकि इस समय देश में प्रधानमंत्री के पद पर नरेंद्र मोदी हैं और देश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। भारतीय जनता पार्टी अपने जनसंघ काल से ही इस लंबी लड़ाई को निर्णायक रूप से खत्म करने के पक्ष में रही है। कुछ तथाकथित विद्वान इसकी व्याख्या यह कह कर करते हैं कि भारतीय जनता पार्टी इस्लाम पंथ और शिया पंथ के खिलाफ है। भाजपा किसी के खिलाफ नहीं है, वह भारत के पक्ष में है। भाजपा यह मानती है कि इस देश में भगवान की पूजा के हजारों तरीके हैं, उनमें नमाज पढ़ कर ईश्वर की आराधना भी एक है। इसी प्रकार ईश्वर के नाम भी अनेक हैं, उनमें से अल्लाह भी एक है। इसलिए विरोध का तो प्रश्न ही नहीं है। अलबत्ता भगवान की पूजा करने के जितने तरीके हैं, उन सभी के आधार पर देश के उतने टुकड़े नहीं किए जा सकते। पाकिस्तान नाम का टुकड़ा इसी आधार पर देश से अलग किया गया था। यह आधार ही गलत था। भाजपा मानती है कि यह घृणित कार्य साम्राज्यवादी यूरोपीय ताकतों ने किया था, जिन्हें भारत को कमजोर रखने के लिए इसकी जरूरत थी। पाकिस्तान के एक मंत्री ने तो सार्वजनिक रूप से यह मान ही लिया है कि हम पिछले चालीस साल से ब्रिटेन-अमेरिका के कहने से भारत के खिलाफ यह गंदा काम कर रहे हैं। पाकिस्तान के इन गंदे कामों के कारण ही भारत में यह मांग उठ रही है कि हजार-पंद्रह सौ साल से चले आ रहे इस युद्ध को समाप्त करने का सही समय आ गया है। इतिहास में ऐसे क्षण आते हैं। पाकिस्तान में भी बलूचिस्तान, खैबर पख्तूनखवा, सिंध प्रदेश से यह मांग उठ रही है। यह सब इलाके पाकिस्तान में नहीं बने रहना चाहते। लेकिन भारत के अंदर इस संभावित निर्णायक युद्ध के समय क्या स्थिति है, इस पर चर्चा करने से पहले मुझे बाबा साहिब अंबेडकर का संविधान सभा की अंतिम बैठक में दिया गया ऐतिहासिक भाषण याद आ रहा है।
बाबा साहिब ने कहा था, ‘मुहम्मद बिन कासिम द्वारा सिंध पर चढ़ाई के समय राजा दाहिर सेन के सैन्य कमांडरों ने मुहम्मद बिन कासिम के एजेंटों से रिश्वत ले ली और अपने स्वयं के राजा के पक्ष में लडऩे से मना कर दिया। वह जयचंद ही था जिसने भारत पर आक्रमण करने और पृथ्वीराज चौहान से लडऩे के लिए मुहम्मद गौरी को भारत में आमंत्रित किया और उससे स्वयं सोलंकी राजाओं के साथ उसकी सहायता करने का वादा किया। जब शिवाजी हिंदुओं की मुक्ति के लिए लड़ रहे थे, तो कई अन्य मराठा राजवंश और राजपूत राजा मुगल सम्राटों के साथ मिलकर उनके खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे। – क्या इतिहास स्वयं को दोहराएगा? यह ऐसा विचार है जो मुझे चिंतित करता है। यह चिंता इस तथ्य के बोध से और अधिक गहरी हो जाती है कि ‘जाति’ और ‘पंथ’ के रूप में हमारे पुराने शत्रुओं के अतिरिक्त, अब हमारा साथ बहुत से राजनीतिक दलों व उनके विविध एवं विरोधी राजनीतिक पंथों के साथ भी जुडऩे जा रहा है। क्या भारतीय अपने देश को अपने पंथ से ऊपर रखेंगे या वे देश के ऊपर पंथ स्थापित करेंगे? मुझे नहीं पता। लेकिन यह बहुत निश्चित है कि यदि इन राजनीतिक दलों ने देश से ऊपर पंथ रखा, तो हमारी स्वतंत्रता को दूसरी बार संकट में डाल दिया जाएगा और संभवत: यह हमेशा के लिए खो जाएगी। इस परिस्थिति में हम सभी को दृढ़ता से हमारे रक्त की आखिरी बूंद के साथ हमारी स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए।’
बाबा साहिब इसको लेकर चिंतित थे। उनकी चिंता जायज थी। आज इस निर्णायक घड़ी में देश की सबसे पुरानी पार्टी, जिसने 1947 में पाकिस्तान बनने से पहले की अपनी कार्यकारिणी की अंतिम बैठक में भारत के विभाजन और पाकिस्तान के निर्माण के पक्ष में प्रस्ताव पारित किया था, जिस प्रकार का व्यवहार कर रही है, वह चिंता पैदा करता है। कांग्रेस के इन वरिष्ठ और कनिष्ठ जनों के बयानों को पाकिस्तान का मीडिया सबसे ज्यादा भारत के विरोध में प्रयोग कर रहा है। लेकिन अभी देखना होगा कि ये लोग भारत के भविष्य की इस अंतिम निर्णायक लड़ाई में कितनी दूर तक पाकिस्तान को सहायता पहुंचाने वाली ‘सिर तन से गायब’ वाली तस्वीरों का उत्पादन करते हैं। बहरहाल, भारतीय सेना निर्णायक लड़ाई की तैयारी में लगी है।
कुलदीप चंद अग्निहोत्री
वरिष्ठ स्तंभकार
ईमेल:kuldeepagnihotri@gmail.com
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