ये आत्मबल जीने नहीं देता

By: May 5th, 2025 12:05 am

आत्मबल सरीखा होना अब सारी ताकतों का जवाब है। आत्मबल की परिस्थितियां हों या न हों, इन्हें आत्मबल सरीखा होना पड़ता है। सबके दादा बताते रहे होंगे कि उनके जमाने में वस्तुओं के मूल्य कितने कमजोर थे, लेकिन आज का आत्मबल बताता है कि मॉल पर खरीदी गई कमीज किस-किस ब्रांड पर भारी है। वैसे हमारे आत्मबल की लड़ाई ब्रांड से है। आश्चर्य यह कि खानपान भी ब्रांड हो गया। घर के चूल्हे में कभी आत्मबल होता था कि यह किसी को खाली पेट जाने नहीं देगा, मांगने वाले तक को भूख से सताने नहीं देगा। उस दिन मांगने वाले का आत्मबल इतना बढ़ गया कि उसने हमारी चाय पीने के बजाय, बाजार की कॉफी के लिए पैसे मांग लिए। दादा कहते थे उनके जमाने में आने में एक किलो घी आता था। तब ग्राहक के भीतर खरीददारी के खिलाफ आत्मबल था। आज के घी-तेल का आत्मबल देखते ही बनता है। हर बार हमसे ज्यादा ऐंठता है। जाहिर है बाजार का आत्मबल हमें जीने नहीं देगा, लेकिन सरकारों का आत्मबल हमें मरने नहीं देगा। उस दिन देश का आत्मबल राशन की दुकान पर खड़ा मिला। वो मुस्करा रहा था, क्योंकि सामने मुफ्त राशन के लिए लंबी कतार लगी थी। देश की मुस्कान को बरकरार रखना कोई आसान काम नहीं, लेकिन सरकारें राज्यों से दिल्ली तक इसी आत्मबल का परिचय देने लगी हैं। जीने के लिए उधार का आत्मबल अगर मिलता रहे, तो सरकारें भी कल्याणकारी दिखाई देती हैं। अब तो नागरिक समाज भी सरकारों के कारण ही चलने लगा है। पूरा बिजली बोर्ड मुफ्त की आपूर्ति में भी ऐसा करंट रखता है कि जनता की सारी शक्ति उसी के कारण दिखाई देती है। अब तो सुबह नहाने से पहले जल शक्ति विभाग के फिटर को मनाने के लिए शक्ति चाहिए।

वैसे गौर से देखें तो सरकारों का सारा आत्मबल सरकारी अफसरों, नौकरशाही और कर्मचारियों के पास चला गया है। अब समय समय का आत्मबल अलग-अलग होता है। उस दिन पटवारी का आत्मबल देखकर हमारी पुश्तैनी जमीन डर गई। अगर हम अपनी बारी आने पर पटवारी महोदय की भाषा नहीं समझते, तो सारे बुजुर्ग स्वर्ग से नरक में पहुंच जाते। वैसे जब आत्मबल बंट रहा था, तो सारा का सारा सरकारी नौकरी में चला गया। लोग सोचते हैं अंग्रेजों ने देश को भारत और पाकिस्तान में बांटा, मगर देश का आत्मबल भी बंटा है। सरकारी नौकर बनते ही आत्मबल ऐसे-ऐसे काम करा देता है कि साधारण व्यक्ति केवल चकित ही हो सकता है। यह आत्मबल ही है जो दो करोड़ की इमारत को बीस करोड़ के खर्च से भी मुकम्मल नहीं करता। हमारे निर्माण और विकास की गाथा के पीछे सरकारी नौकरी का आत्मबल इतना साहसी है कि सडक़ों पर गड्ढों तक की परवाह नहीं करता। यह आत्मबल विद्युत आपूर्ति के बिना जनता को अपने अंधेरों का भी इंतजार करा सकता है। प्राइवेट नौकरी बिना आत्मबल के काम करती है, इसलिए सुबह से शाम तक लगातार करती है। किसी दुकानदार में किसी सरकारी इंस्पेक्टर से उलझने का आत्मबल हो ही नहीं सकता। पहले खबरों में आत्मबल होता था, अब पाठक का भी नहीं होता। झूठे, फरेबी और संवेदनहीन लोगों का आत्मबल देखेंगे तो बेहोश हो जाएंगे। हर कोई सोशल मीडिया पर कोशिश कर रहा है, लेकिन हजारों फ्रेंड्स बटोर कर भी किसी ‘लाइक’ का आत्मबल नहीं होता। सोशल मीडिया भले ही बात-बात पर बात कर ले, लेकिन आज भी किसी अपने का पुराना सा खत आत्मबल देता है। आत्मबल के मुगालते में देश में लोग इतने बहादुर हो गए कि धरती पर स्वर्ग खोजते, पहलगाम पहुंच गए। उस दिन वहां हमारा आत्मबल देखा गया, अपने ही देश के खून में देखा गया। मानना पड़ेगा कि देश के नागरिक आत्मबल के परीक्षण के लिए शहादतें देते हैं। आश्चर्य यह कि पहलगाम में आम नागरिक के आत्मबल के परीक्षण में कोई नेता मौजूद नहीं था, फिर भी देश ने सुना कि किसी राष्ट्रीय नेता का आत्मबल कहीं मंच से गंूज रहा था।

निर्मल असो

स्वतंत्र लेखक


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