खतरे में सोचने की आज़ादी, कहीं आप भी तो नहीं बन गए गुलाम, एक रिपोर्ट ने फिर बढ़ा दी सबकी चिंता
क्या खत्म हो रही है सोचने की आज़ादी, एक रिपोर्ट ने फिर बढ़ा दी सबकी चिंता, AI के इस्तेमाल से कमजोर हो रहा दिमाग, कहीं आपका दिमाग भी तो नहीं हो चुका है आलसी
आज का दौर आधुनिकता का दौर है.. बदलते समय के साथ लोगों के काम करने का तरीका भी बदल गया हैI पहले जिन कामों को करने के लिए घंटों लगते थे इस मशीनी युग में वो मिनटों में हो जाते हैंI और अब तो समय है AI काI जिसने किसी भी व्यक्ति के काम करने के तरीके को पूरी तरह से बदल दिया हैI आज छोटे से छोटे काम को करने के लिए लोग AI का सहारा लेते हैंI AI की दुनिया में जब से चैट जीपीटी आया है तब से तो लोग इस तकनीक के और करीब आ गए हैंI चैट जीपीटी AI की दुनिया में क्रांति लेकर आया हैI
आज कोरपोरेट दफ्तरों से लेकर आम लोग तक चैटजीपीटी जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस चैटबॉट्स पर ज्यादा निर्भर होने लगें हैंI जैसे पहले किसी भी जानकारी के लिए google का सहारा लिया जाता था आज लोग चैटवाट का इस्तेमाल करते हैंI यहां तक कि एक छोटा सा पत्र लिखने के लिए भी इन्ही टूलस का इस्तेमाल किया जाता है। अब आप बोलेंगे कि ये तो अच्छी बात है- कि लोगों का काम आसान हो गया हैI लेकिन ये एक बहुत बड़ी गलतफहमी है दरअसल इस तरह के टूल्स के जरिए काम आसान तो हुआ है लेकिन क्या आप जानते है कि इस इनोवेशन से एक बड़ा खतरा पैदा हो गया हैI क्या आप जानते हैं कि AI चैटबॉट पर निर्भरता से दिमाग की ताकत कमजोर हो सकती हैI ऐसा हम नहीं कह रहे ब्लकि ये बात सामने आई है रिसर्च में। दरअसल अमेरिका के मशहूर रिसर्च संस्थान (MIT) की और से एक नई रिसर्च हाल ही में की गई हैI जिसमें सामने आया कि AI का ज्यादा इस्तेमाल किसी भी व्यक्ति की क्रिटिकल थिकिंग और ब्रेन एक्टीविटी को कमजोर कर सकता है।
दरअसल वैज्ञानिकों ने ये रिसर्च 54 छात्रों परकी.. इन छात्रों को तीन अलग-अलग ग्रुप में बांटा गया.. एक ग्रुप के छात्रों ने केवल चैटजीपीटी का इस्तेमाल करके निबंध लिखा, दूसरे ग्रुप ने गूगल जैसी वेबसाइटों से जानकारी लेकर निबंध तैयार किया, और एक ग्रुप ऐसा था जिसने बिना किसी डिजिटल मदद के खुद से निबंध लिखा। रिसर्च के दौरान हर छात्र के दिमाग की गतिविधियों को EEG मशीन के जरिए मापा गयाI जिससे पता लगाया गया कि लेखन के समय उनका दिमाग कितना सक्रिय था। और जो रिजल्ट आए वो चौंकानें वाले थेI जिन छात्रों ने निबंध सिर्फ चैटजीपीटी से लिखा था, उनके दिमाग की एक्टिविटी सबसे कम पाई गई । क्योंकि उनके दिमाग ने सोचने समझने पर कोई काम नहीं किया और निबंध लिखने के दौरान वो बिल्कुल निषक्रिय था । सर्च इंजिन यूजर्स का दिमाग मध्यम रूप से सक्रिय पाया गया वहीं, जो छात्र खुद से लिख रहे थे, उनके दिमाग में ज्यादा हलचल और सक्रियता देखी गई।
इसके बाद एक और सेशन हुआ इस बार बिना किसा AI टूल के निबंध लिखवाया गया तो पता चला कि जिन लोगों ने AI की मदद से पत्र लिखा था उनका दिमाग न तो पिछले निबंध को याद रख पा रहा था और न ही बेहतर तरीके से सोच पा रहा था । जिन्होने अपने खुद अपने दिमाग से निबंध लिखा था वो टूल की मदद से और बेहतर लिख पाएI जाहिर है इस रिसर्च ने काफी हद तक ये सप्ष्ट कर दिया कि ज्यादा AI का इस्तेमाल ब्रेन कनेक्टिविटी, याददाश्त और किसी चीज को समझने की शक्ति कम हो जाती है । रिसर्च में ये भी पाया गया कि AI के जरिए लिखे गए निबंध भाषा और व्याकऱण के हिसाब से ज्यादा बेहतर थे मगर उनमें एक मौलिक सोच, किसी चीज को भावनात्मक रुप कैस दिया जाए पढ़ने वालों को अपने निबंध से कैसे जोड़ा जाए इन सब चीजों की कमी भी महसूस की गईI तो फिर सवाल उठता है कि क्या ये टेक्नोलोजी हमारे लिए खराब है. इसका जवाब होगा कुछ हद तक हां, लेकिन अगर हम इसी टेक्नोलॉजी का सही तरीके से और एक सीमित मात्रा में इस्तेमाल करते हैं तो रिजल्ट काफी बेहतर आ सकते हैंI अगर आप AI को सहायक टूल मानकर , आखिरी फैसला खुद लें तो रिजल्ट काफी अलग होंगे । खुद से सवाल पूछने और सोचने की आदत न छोड़ें। और अगर ऐसा नहीं किया तो वो दिन दूर नहीं जब आपका दिमाग पूरी तरह से ai का गुलाम बन जाएगाI और न तो खुद से कुछ सोच पाएगा न ही कोई फैसला ले पाएगाI
खैर आप अपनी राय जरूर बताएं- टेक्नोलॉजी के बढ़ते इस्तेमाल पर आप क्या राय रखते हैंI