गीता-रामायण-महाभारत जैसे धर्मग्रंथों का अध्ययन आज हर घर की जरूरत

आज की भागदौड़ भरी जीवनशैली में मानसिक शांति और संतुलन बनाए रखने के लिए इन ग्रंथों का अध्ययन अत्यंत आवश्यक है। श्रीमद्भगवद्गीता को विश्वभर में जीवन प्रबंधन और संवाद का सर्वोच्च ग्रंथ माना जाता है…
धर्मग्रंथ हमेशा से भारतीय समाज के मार्गदर्शक रहे हैं। श्रीमद्भगवद्गीता, रामायण और महाभारत जैसे धार्मिक ग्रंथ जीवन के गूढ़ रहस्यों को सरल भाषा में समझाते हैं। ये ग्रंथ हमें धर्म, आत्मानुशासन, कत्र्तव्यबोध और सामाजिक मर्यादाओं की शिक्षा देते हैं। इनके माध्यम से पाठक को नैतिकता, संयम और सही निर्णय लेने की प्रेरणा मिलती है। आज की भागदौड़ भरी जीवनशैली में मानसिक शांति और संतुलन बनाए रखने के लिए इन ग्रंथों का अध्ययन अत्यंत आवश्यक है। श्रीमद्भगवद्गीता को विश्वभर में जीवन प्रबंधन और संवाद का सर्वोच्च ग्रंथ माना जाता है। महाभारत के युद्धभूमि में अर्जुन को श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए उपदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उस काल में थे। रामायण भारतीय संस्कृति की रीढ़ है। इसमें भगवान श्रीराम के जीवन के माध्यम से मर्यादा, त्याग, समर्पण, कत्र्तव्य और परिवार के प्रति उत्तरदायित्व का अद्वितीय संदेश मिलता है। राम एक आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति और आदर्श राजा के रूप में जीवन की हर कसौटी पर खरा उतरते हैं। वहीं, स्वामी विवेकानंद माता सीता को महिलाओं के लिए सर्वोच्च आदर्श मानते हैं। तुलसीदास कृत रामचरितमानस की चौपाइयां आज भी ग्रामीण भारत में जीवन का हिस्सा हैं और नैतिक शिक्षा का अमूल्य स्रोत बनी हुई हैं। वहीं, महाभारत में मानव जीवन के हर पहलू को छुआ गया है। महाभारत केवल युद्ध की कहानी नहीं है, बल्कि राजनीति, धर्म, नीति, कूटनीति, परिवार और समाज की जटिलताओं को प्रभावशाली ढंग से उजागर करता है। इसमें द्रोण, भीष्म, विदुर, युधिष्ठिर, अर्जुन, अभिमन्यु जैसे पात्रों के माध्यम से धर्म, विवेक, त्याग और नेतृत्व के अनेक उदाहरण मिलते हैं। इसके माध्यम से युवा वर्ग नेतृत्व कौशल, निर्णय क्षमता और नीतिगत सोच का अभ्यास कर सकता है। आज के बढ़ती प्रतिस्पर्धा के युग में जब व्यक्ति भौतिकता की दौड़ में मानसिक तनाव और भ्रम का निरंतर शिकार हो रहा है, ऐसे समय में ये धर्मग्रंथ जीवन में संतुलन और सार्थकता प्रदान करने वाले सिद्ध हो सकते हैं।
यदि बचपन से ही बच्चों को इन ग्रंथों का अध्ययन कराया जाए, तो उनके अंदर नैतिक मूल्य, सहिष्णुता, अनुशासन और सेवा की भावना स्वत: विकसित हो सकती है। हर घर में इन ग्रंथों की उपस्थिति परिवार को एक आध्यात्मिक ऊर्जा देने का कार्य कर सकती है। जब परिवार एक साथ बैठकर रामायण या गीता का पाठ करता है, तो न केवल धार्मिक वातावरण बनता है, बल्कि पारिवारिक एकता भी सुदृढ़ होती है। इससे परिवार और समाज में आपसी संवाद में भी मधुरता आती है। यह भारतीय जीवनशैली की सामूहिकता की परंपरा को भी मजबूत करता है। इन ग्रंथों की भाषा, भाव और शैली इतनी सरल और प्रभावशाली है कि आम व्यक्ति भी इसे समझकर आत्मसात कर सकता है। गीता के श्लोक हों या रामायण की चौपाइयां, इनका प्रभाव सीधे हृदय पर पड़ता है। इन ग्रंथों को पढऩा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मविकास की भी यात्रा है, जो व्यक्ति को भीतर से मजबूत बनाती है। ऐसे ग्रंथ जीवन के हर मोड़ पर सही निर्णय लेने में सहायता करते हैं। आज जब समाज में नैतिक मूल्यों में गिरावट, पारिवारिक विघटन और सामाजिक विघटन की समस्याएं बढ़ रही हैं, तब इन धर्मग्रंथों की प्रासंगिकता और अधिक बढ़ जाती है। ये ग्रंथ न केवल व्यक्ति के आचरण को शुद्ध करने में सहायक होंगे, बल्कि समाज को भी एक सही दिशा देने का कार्य करेंगे। हमें यह समझने की भी आवश्यकता है कि हमारी यह सांस्कृतिक धरोहर एक जीवंत परंपरा है। पश्चिमी सभ्यता के अंधानुकरण की दौड़ में हम अपने मूल्यों और ग्रंथों से दूर हो रहे हैं। जबकि गीता और रामायण जैसे ग्रंथ विश्व के अन्य देशों में अध्ययन और शोध का विषय बन चुके हैं। हमें अपने ही सांस्कृतिक खजाने को पहचानकर उसका सम्मान और प्रचार करना चाहिए। अत: यह समय की मांग है कि हर भारतीय परिवार अपने घर में इन धर्मग्रंथों की स्थापना करे, उन्हें पढ़े, समझे और आने वाली पीढिय़ों को भी इसके महत्त्व से अवगत कराए। -डा. रविंद्र सिंह भड़वाल
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