आर्थिकी-रोजगार बढ़ा रहा सहकारिता क्षेत्र

By: Jul 5th, 2025 12:05 am

सहकारिता मंत्री ने इस दिशा में एक कदम आगे बढ़ते हुए एक ऐसी सहकारी संस्था बनाने का ऐलान किया है जो प्राइवेट एग्रीगेटर ऐप्प बेस्ड कैब सेवा ओला और उबर की तर्ज पर होगी, जिससे कैब ड्राइवरों की इनकम में भारी इजाफा होगा। इसका नाम सहकार टैक्सी होगा और इसके ड्राइवरों को किसी को कट या कमीशन नहीं देना होगा। यह सहकार से समृद्धि का एक बड़ा उदाहरण होगा। इसमें टू व्हीलर, फोर व्हीलर, थ्री व्हीलर वगैरह सभी आएंगे और इससे लाखों ड्राइवरों की आय बढ़ेगी। इसके अलावा इस क्षेत्र में बीमा कंपनियां स्थापित करने की महत्वाकांक्षी योजना पर भी काम चल रहा है…

वर्ष 2024 में भारत के सहकारी क्षेत्र ने दुनिया में धूम मचा दी और उसके दो सहकारी संगठनों को पहले और दूसरे पायदान पर रखा गया। ये हैं इफको और जीसीएमएमएफ जिसका अमूल ब्रांड सारे देश में जाना जाता है। इन दोनों ने अपने कामकाज और टर्नओवर से सारी दुनिया में अपना डंका बजवाया। इफको, जिसका पूरा नाम इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड है, विश्व की सबसे बड़ी उर्वरक सहकारिता संस्था है। यह किसानों को सस्ती कीमतों पर उच्च गुणवत्ता वाले उर्वरक उपलब्ध कराने के लिए 1967 में स्थापित की गई थी। इफको मुख्य रूप से उर्वरकों के उत्पादन और विपणन में संलग्न है और इसकी 5 प्रमुख इकाइयां भारत में स्थित हैं। भारत के सहकारी परिदृश्य में इनका स्थान रोजगार, उत्पादन और कारोबार के लिहाज से अद्वितीय है। सिर्फ ये ही नहीं, भारत में हजारों सहकारी संस्थाएं हैं जो जमीनी स्तर पर काम कर रही हैं तथा आमजन के सशक्तिकरण में हाथ बंटा रही हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि हमारी सहकारी संस्थाएं महिलाओं और सीमांत किसानों के आर्थिक विकास में बड़ा काम कर रही हैं। पिछले कुछ वर्षों में लाखों किसान इन सहकारी संस्थाओं से जुडक़र साहूकारों के कर्ज के जाल से निकलने में सफल हुए। इनसे महिलाओं को इतनी कमाई हुई कि आज देश में 1.15 करोड़ लखपति दीदियां हैं। जाहिर है कि हमारी सहकारी संस्थाएं आर्थिक समृद्धि के सेतु बन गई हैं। सहकारी संस्थाओं से ऋण लेकर करोड़ों लोग अपना काम कर रहे हैं और सफल भी हो रहे हैं। इनकी व्यापक उपस्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश में 8.5 लाख सहकारी संस्थाएं हैं और उनके 29 करोड़ सदस्य हैं।

2019 के पहले देश में सहकारी संस्थाएं पूरी तरह से राज्यों के हाथ में थीं और तमाम तरह की समस्याओं से जूझ रही थीं। उन्हें कई तरह के नियम-कानूनों का सामना करना पड़ता था। उनकी देखरेख का काम कृषि विभाग, ग्रामीण विकास विभाग और उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के पास बंटे हुए थे। इससे हमेशा विलंब होता था और कई तरह के विवाद भी उठ खड़े होते थे। प्रशासन में कई तरह की अड़चनें सामने आती थीं। हर राज्य अपने तरीके से इन्हें चलाने की कोशिश करता था। इन बाधाओं को दूर करने के लिए ही मोदी सरकार ने 2021 में सहकारिता मंत्रालय को सृजित किया। यह गृह मंत्री अमित शाह के पास पूरी तरह से कर दिया गया। सहकारिता मंत्रालय सृजित करने के पीछे पीएम मोदी के मिशन ‘सहकार से समृद्धि’ की मूल भावना थी। इसके तहत छोटी-छोटी सहकारी संस्थाओं को मजबूत करना, सहकारिता पर आधारित एक अर्थव्यवस्था खड़ी करना, आर्थिक सुधारों को लागू करना और ट्रेनिंग वगैरह की व्यवस्था करना शामिल है। राष्ट्रीय स्तर के सहकारी संगठनों को और भी मजबूत करना सहकारिता मंत्रालय के ही कार्य हैं। सहकारिता मंत्री अमित शाह ने इन संस्थाओं को पूरी तरह से मॉडर्न बनाने तथा डिजिटाइज करने की दिशा में महती कदम उठाया और इसके परिणाम भी देखने में आने लगे हैं। देश भर में प्राइमरी एग्रीकल्चरल क्रेडिट सोसायटियों के कंप्यूटराइजेशन पर 2516 करोड़ रुपए खर्च किए गए जिससे 43658 कंप्यूटरों तथा उपयुक्त सॉफ्टवेयर पूरी तरह से लैस हैं। सहकारिता मंत्रालय ने 8 लाख ऐसी कोऑपरेटिव सोसायटियों के 30 करोड़ सदस्यों का डेटा तैयार कर रखा है जिससे उनसे सीधे जुडऩा संभव है। 43000 प्राइमरी एग्रीकल्चर क्रेडिट सोसायटियों को कॉमन सर्विस सेंटर में बदला जा चुका है जिनसे ग्रामीणों तथा आदिवासियों को सरकार की 300 स्कीमों की हाथों-हाथ जानकारी मिल सके और उनका फायदा हो। इन सभी की सफलता देखते हुए सरकार ने दो लाख नए प्राइमरी एग्रीकल्चर सर्विस सेंटर बनाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है ताकि हर पंचायत में इनकी पहुंच हो। ऋण वितरण को भी बड़े पैमाने पर बढ़ाया गया है और यह 128000 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है, जबकि 2021 में यह राशि महज 25000 करोड़ रुपए थी। अब किसानों के लिए ब्याजमुक्त ऋण उपलब्ध हो जाने से और उस तक किसानों की पहुंच हो जाने से सूदखोर साहूकारों से छुटकारा मिलने लग गया।

अब किसानों को ऋण के लिए यहां-वहां दौडऩा नहीं पड़ता है और उन्हें अपनी पंचायत में ही जरूरी कागजात जमा करने होते हैं और उसके बाद उन्हें ऋण मिल जाता है। इसमें पूरी पारदर्शिता होती है क्योंकि भुगतान डिजिटल मोड में होता है। इस तरह के ऋण में किसी तरह की छुपी हुई रकम नहीं होती है। बड़ी तादाद में किसान इसका फायदा उठा रहे हैं। आदिवासी क्षेत्रों में महिलाओं को सशक्त बनाने में सहकारिता का बड़ा हाथ है। इन्हें बिना भागदौड़ और बिचौलियों के अब ऋण मिल जाता है जिसका वे छोटे-छोटे उपक्रमों में इस्तेमाल करती हैं और साल भर में लाख सवा लाख रुपए आसानी से कमा लेती हैं। देश भर में जो कृषि ऋण बंटता है, उसका 20 फीसदी सहकारी संस्थाओं के जरिये जाता है। 35 फीसदी फर्टिलाइजर का वितरण इन्हीं सोसायटियों के माध्यम से होता है। भारत के कुल जीडीपी का 4.5 फीसदी सिर्फ दुग्ध क्षेत्र से आता है। इसका ही नतीजा है कि सहकारी संस्थाओं में रोजगार बढ़ता जा रहा है। इस पर जोर दिया जा रहा है ताकि रोजगार के अवसर और बढ़ाए जा सकें।

सहकारिता मंत्रालय ने सहकार से समृद्धि के नारे को वास्तविक बनाने के लिए ये कदम उठाए हैं। उसने सभी कोऑपरेटिव में सहयोग के लिए प्रयास किया है। लेकिन सहकारिता मंत्री ने इस दिशा में एक कदम आगे बढ़ते हुए एक ऐसी सहकारी संस्था बनाने का ऐलान किया है जो प्राइवेट एग्रीगेटर ऐप्प बेस्ड कैब सेवा ओला और उबर की तर्ज पर होगी, जिससे कैब ड्राइवरों की इनकम में भारी इजाफा होगा। इसका नाम सहकार टैक्सी होगा और इसके ड्राइवरों को किसी को कट या कमीशन नहीं देना होगा। यह सहकार से समृद्धि का एक बड़ा उदाहरण होगा। इसमें टू व्हीलर, फोर व्हीलर, थ्री व्हीलर वगैरह सभी आएंगे और इससे लाखों ड्राइवरों की आय बढ़ेगी। इसके अलावा इस क्षेत्र में बीमा कंपनियां स्थापित करने की महत्वाकांक्षी योजना पर भी काम चल रहा है। सहकारिता मंत्रालय जल्दी ही एक सहकारी बीमा कंपनी बनाने जा रहा है, जो देश के सभी कोऑपरेटिव को बीमा मुहैया कराएगी। मंत्रालय इसे भारत की सबसे बड़ी बीमा कंपनी के रूप में स्थापित करना चाहता है। सहकारिता मंत्री अमित शाह का मानना है कि एक विकसित अर्थव्यवस्था के लिए एक सुदृढ़ इन्फ्रास्ट्रक्चर की जरूरत होती है और यह सरकार उसी दिशा में काम कर रही है। उन्होंने इस बात पर भी खुशी जाहिर है कि संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2025 को इंटरनेशनल इयर ऑफ कोऑपरेटिव घोषित किया है। सारी दुनिया में इस साल यह 5 जुलाई को मनाया जा रहा है। भारत में सहकारिता के बढ़ते कदम से अर्थव्यवस्था में तेजी आई है और बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर बढ़े हैं।

मधुरेंद्र सिन्हा

स्वतंत्र लेखक


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