सबूत मिटा रहा हूं भाई…
आजकल बाकी सारे काम धाम छोडक़र मैं एक बहुत महत्वपूर्ण काम में लगा हूं और पूरे जी-जान से लगा हूं। जी-जान से इसलिए लगा हूं क्योंकि इस काम के साथ मेरी पूरी साख और मेरा पूरा भविष्य जुड़ा हुआ है। मैं बाकी चीजें तो बर्दाश्त कर सकता हूं, गर्मी बर्दाश्त कर सकता हूं, सर्दी बर्दाश्त कर सकता हूं, महंगाई बर्दाश्त कर सकता हूं, भ्रष्टाचार बर्दाश्त कर सकता हूं, लेकिन यह कतई बर्दाश्त नहीं कर सकता कि मेरी साख पर कोई धब्बा लगे और मेरा भविष्य अंधकारमय हो जाए। अपनी साख और भविष्य बचाने के लिए मैं जिस महत्वपूर्ण काम में दिन-रात लगा हूं, वह काम है सबूत मिटाने का। आज तक मैंने जो भी ऐसे-वैसे काम किए हैं, उनके सबूत मिटाना कोई आसान काम नहीं है, लेकिन मैं कर रहा हूं, क्योंकि मैं हमेशा से चैलेंज स्वीकार करता हूं। मेरे ऐसे-वैसे कामों की लिस्ट बहुत लंबी है। इतनी लंबी कि अगर उसे किसी सीबीआई ऑफिस के बाहर टांग दूं तो जांच अफसरों को ओवरटाइम लगाना पड़े। लेकिन मैं भी हार मानने वाला नहीं हूं। एक-एक सबूत मिटा कर रहूंगा। फिर सारी जांच एजेंसियां खाली हाथ रह जाएंगी। इस काम में मैं पुलिस को भी फॉलो कर रहा हूं और नेताओं को भी फॉलो कर रहा हूं। पुलिस कई बार बड़ी सफाई से सबूत मिटा देती है, बस ऊपर से इशारा मिलने की देर होती है। इसी तरह नेता भी सबूत मिटाने के विशेषज्ञ माने जाते हैं। मैं इन दोनों का अनुसरण कर रहा हूं और सबूत मिटा रहा हूं। पहले मैंने सोचा था कि एक अदद वकील रख लूं जो मेरे पक्ष में दलील दे, लेकिन वकील रखने से बेहतर है कि दलीलों की जरूरत ही न पड़े। जब सबूत ही नहीं रहेगा तो गवाह अपने आप पलट जाएंगे। अब मैंने अपने पुराने दोस्तों को भी अलर्ट कर दिया है, कोई गलती से मुंह न खोल दे।
मुंह पर ताला लगवाने के लिए मैंने उन्हें चाय समोसे से लेकर हफ्ते भर के राशन तक का इंतजाम कर दिया है। मैंने बच्चों को भी सख्त हिदायत दी है कि स्कूल में मम्मी से ज्यादा पापा के कामों के बारे में कोई सवाल आए तो ‘आई डोंट नो’ बोलकर बात खत्म कर देना। कुछ सबूत तो डिजिटल थे, मोबाइल, लैपटॉप, सीसीटीवी। वो भी मैं धीरे-धीरे डिलीट कर रहा हूं। पहले तो सोचा कि मोबाइल गुम कर दूं, लेकिन फिर लगा कहीं कोई भला आदमी ढूंढ कर वापस न दे दे। इसलिए अब मैंने खुद ही उसकी मेमोरी फॉर्मेट कर दी है, दो बार, ताकि कहीं कोई डाटा रिकवरी वाला भी उंगली न कर पाए। कुछ सबूत पुराने अखबारों में छपे थे, उनको मैं रद्दी वाले से खरीदकर भट्ठी में झोंक आया हूं। अब कोई चाहे तो राख उठाकर डीएनए टेस्ट कर ले! कुछ दोस्तों के साथ की फोटो सोशल मीडिया पर थीं, वो भी धीरे-धीरे डीएक्टिवेट कर दी हैं। कुछ पुराने ट्वीट्स में मेरे काले-पीले विचार थे, वो भी मैंने डिलीट कर दिए हैं। अब अगर कोई स्क्रीनशॉट दिखा दे तो कह दूंगा कि यह फोटोशॉप है, मुझे बदनाम करने की साजिश है! मैंने तो अपने घर के कबाड़ तक छान डाले हैं, कहीं कोई पुराना बिल, रसीद, चि_ी, संदिग्ध पर्ची न बची रहे। पत्नी को भी समझा दिया है कि अगर कोई पूछे तो कह देना- ‘साहब तो बड़े शरीफ हैं, इनके खिलाफ बोलने वाला जरूर झूठा होगा।’ पत्नी ने भी मुस्कराकर हामी भर दी, आखिर उसे भी पता है कि मेरे उज्ज्वल भविष्य में ही उसकी गृहस्थी की रोशनी है। कभी-कभी सोचता हूं कि इतने सबूत मिटा कर मैं कोई गुनाह तो नहीं कर रहा? लेकिन फिर दिल को समझा लेता हूं कि यह गुनाह नहीं, सुरक्षा कवच है। जब बड़े-बड़े लोग ऐसा कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं? अगर कोई मुझसे पूछ ले कि सबूत क्यों मिटा रहे हो तो मैं सीना ठोक कर कहूंगा, ‘भाई, मैं तो अपनी इज्जत बचा रहा हूं। लोकतंत्र में इज्जत बचाना कोई आसान काम नहीं है।’ अब तो आलम यह है कि सपने में भी मैं सबूत ही मिटा रहा हूं, कभी बक्से में ताले लगा रहा हूं, कभी हार्ड डिस्क जला रहा हूं, कभी पुरानी डायरी फाड़ रहा हूं।
गुरमीत बेदी
साहित्यकार
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