महिला क्रूरता की घटनाएं व उनका समाधान

अगर किसी गुस्सैल पर्सनैलिटी वाली लडक़ी ने पिता से उसकी मां को प्रताडि़त होते देखा है, तो उसके दिमाग में ये और भी ज्यादा पुख्ता हो जाता है कि ‘मैं खुद के साथ ये हरगिज नहीं होने दूंगी।’ ऐसे में कई बार 10 फीसदी बंधन पर भी वह ऐसे बर्ताव करती हैं जैसे उन्हें बुरी तरह दबा रखा है। मनोविज्ञान के मुताबिक यह क्षण उनके लिए असहनीय हो जाते हंै और क्रूरता को जन्म देते हैं। ऐसे में क्रूरता के जन्म के लिए किसी महिला को जिम्मेवार ठहराना एकतरफा फैसला होगा। किसी भी रिश्ते में भरोसा एक महत्वपूर्ण रोल अदा करता है। इसके साथ ही भरोसा जीतने में समय भी लगता है…
चर्चित समाचारों के मुताबिक देश में कुछ महिलाओं द्वारा अपने प्रेमियों के साथ साजिश करके कई पतियों की जीवनलीला खत्म करने की घटनाएं बड़ी तेजी से बढ़ रही हैं। मनोवैज्ञानिक और समाजशास्त्री इस तरह कि घटनाओं को लेकर चिंतित हैं। ऐसा क्यों हो रहा है कि आजकल न केवल कुछ पुरुष, बल्कि कुछ महिलाएं भी क्रूर व्यवहार का रास्ता अपनाती जा रही हैं। क्रूरता शारीरिक और मानसिक दोनों हो सकती है। जीवनसाथी को शारीरिक चोट पहुंचाना जैसे शरीर, अंग या स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाना या मृत्यु शारीरिक क्रूरता मानी जाएगी। अगर किसी व्यक्ति को एक या दो कामों से गंभीर चोट पहुंचती है तो उसे शारीरिक क्रूरता माना जाएगा। किसी व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाना, नाम पुकारना, व्यक्ति की प्रतिष्ठा को बदनाम करना, झूठे आरोप लगाना, जीवनसाथी के साथ वैवाहिक संबंध बनाने से इनकार करना, मानसिक रूप से अस्वस्थ होना, व्यक्ति की सामाजिक और आर्थिक भलाई को खतरे में डालना मानसिक क्रूरता मानी जाएगी। किसी व्यक्ति के खिलाफ शारीरिक क्रूरता साबित करना अपेक्षाकृत आसान है, मानसिक क्रूरता साबित करना मुश्किल है और यह व्यक्ति की संवेदनशीलता और सामाजिक स्थिति के आधार पर अलग-अलग होता है।
क्रूरता, उत्पीडऩ, यातना और पीड़ा की अवधारणा हमारे समाज में लंबे समय से प्रचलित है। मनोविज्ञान के अनुसार हालात इत्यादि के चलते कुछ महिलाओं की सोच में प्यार की जगह नफरत, भरोसे ही जगह धोखा और साथ निभाने के बजाय रिश्तों को खत्म कर देने की सोच ने जन्म ले लिया है। बल्कि पिछले कुछ समय में ऐसे कई केस सामने आए हैं, जहां महिलाएं रिश्तों से उबरने की बजाय उन्हें खत्म करने का रास्ता चुन रही हैं। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है स्ट्रेस, प्रेशर या अंदर दबी भावनाएं, नई-नई शादियों में जब ऐसा होता है तो इसके पीछे का कारण या तो ये होता है कहीं शादी जबरदस्ती कराई गई है या फिर उसका पति उसे पसंद नहीं है। ऐसे में महिलाओं के मन में बैठ जाता है कि उनकी पसंद और नापसंद को जरूरी नहीं समझा जा रहा है। ऐसे में वे क्रूर होने का रास्ता चुन लेती हैं। जब कोई महिला अपने पति की हत्या करवा देती है, तो क्या ये सिर्फ क्राइम है या कोई मानसिक बीमारी? मनोवैज्ञानिक मत है कि इसे सिर्फ क्राइम नहीं कहा जा सकता है। इसे दिमागी रूप से बीमार होना भी कह सकते हैं। ऐसे में महिलाएं अपनी भावनाओं और गुस्से को बैलेंस नहीं कर पाती हैं। और गुस्से में तो इनसान हमेशा गलत कदम ही उठाता है। इसके पीछे भी यही कारण है। हम एक और बात पर ध्यान दें। हालिया घटनाओं में अधिकतर मध्यम वर्ग की ऐसी महिलाएं हैं, जो छोटे शहरों से हैं। ये देखना इसलिए जरूरी है क्योंकि हमारे समाज के ढांचे में मध्यम वर्ग की महिलाओं पर ही सारे नियम लादे गए थे। वही सालों से दबी रही हैं। छोटे शहरों की ये महिलाएं सालों से बंधनों में बंधी रही हैं। अब सोशल मीडिया का एक्सेस हर किसी के पास है, इसमें सामाजिक स्तर का या छोटे शहरों का कोई कनेक्शन नहीं है। लेकिन इन महिलाओं ने अपनी माओं को, दादियों को मर्द प्रभावी समाज से शोषित होते हुए देखा है। ऐसे में ये वो पहली जनरेशन है जो इस सामाजिक दबाव से, बंधन से बाहर निकली है। तो ऐसे में अगर किसी गुस्सैल पर्सनैलिटी वाली लडक़ी ने पिता से उसकी मां को प्रताडि़त होते देखा है, तो उसके दिमाग में ये और भी ज्यादा पुख्ता हो जाता है कि ‘मैं खुद के साथ ये हरगिज नहीं होने दूंगी।’ ऐसे में कई बार 10 फीसदी बंधन पर भी वह ऐसे बर्ताव करती हैं जैसे उन्हें बुरी तरह दबा रखा है। मनोविज्ञान के मुताबिक यह क्षण उनके लिए असहनीय हो जाते हंै और क्रूरता को जन्म देते हैं।
ऐसे में क्रूरता के जन्म के लिए किसी महिला को जिम्मेवार ठहराना एकतरफा फैसला होगा। किसी भी रिश्ते में भरोसा एक महत्वपूर्ण रोल अदा करता है। इसके साथ ही भरोसा जीतने में समय भी लगता है। आज के समय में रिश्ते मूड पर डिपेंड हो गए हैं। महिला हो या फिर पुरुष, ये भावना आ चुकी है कि मेरी मर्जी नहीं चलेगी तो रिश्ता भी नहीं चलेगा। मूड के वशीभूत होकर, महिला हो या पुरुष, कोई भी हो, समझौता करने के बजाय रिश्तों को तोडऩा ज्यादा पसंद करते हैं। आजकल बहुत लोग सोशल मीडिया पर रील्स देखकर ही उसे अपनी लाइफ मान लेते हैं। वे अपने रिश्तों की तुलना रील से करने लगते हैं और घर से बाहर सुख तलाशना शुरू कर देते हैं। पुरुष भी इसका अपवाद नहीं है। अंत में कुछ महिलाओं में नशे की आदत भी बहुत बढ़ गई है। शराब, स्मोकिंग, ड्रग्स आदि का इस्तेमाल अब कुछ महिलाओं में भी बहुत ज्यादा पिछले कुछ सालों में बढ़ा है। इस तरह की लत भी महिला क्रूरता की वजह बनती है। क्या ऐसे व्यवहार को नियंत्रित किया जा सकता है। महिलाओं के ऊपर क्रूरता को लेकर कुछ पुरुष भी कम नहीं होते। हर रोज महिलाओं को थप्पड़ों, लातों, पिटाई, अपमान, धमकियों, यौन शोषण और अनेक अन्य हिंसात्मक घटनाओं का सामना करना पड़ता है। इन सबके बावजूद हमें इस प्रकार की हिंसा के बारे में अधिक पता नहीं चलता है, क्योंकि शोषित व प्रताडि़त महिलाएं इसके बारे में चर्चा करने से घबराती, डरती व झिझकती हैं। महिला को चोट पहुंचाने के लिए पुरुष अनके बहाने दे सकता है, जैसे कि वह शराब के नशे में था, वह अपना आपा खो बैठा या फिर वह महिला इसी लायक है। परंतु वास्तविकता यह है कि वह हिंसा का रास्ता केवल इसलिए अपनाता है क्योंकि वह केवल इसी के माध्यम से वो सब प्राप्त कर सकता है, जिन्हें वह एक मर्द होने के कारण अपना हक समझता है।
महिला पर पुरुष क्रूरता को लेकर मनोविज्ञानी बताते हैं कि वास्तविक परेशानी को पहचानने या उसका कोई व्यावहारिक समाधान ढूंढने के बजाय, पुरुष हिंसा का सहारा लेकर असहमति को जल्दी से समाप्त करना चाहते हैं। किसी पुरुष को लडऩा बेहद रोमांचक लगता है और उससे उसे नई स्फूर्ति मिलती है। वह इस रोमांच को बार-बार पाना चाहता है। अगर कोई पुरुष हिंसा का प्रयोग करता है कि वह जीत गया है और अपनी बात मनवाने का प्रयत्न करता है, हिंसा की शिकार, चोट व अपमान से बचने के लिए, अगली स्थिति में, उसका विरोध करने से बचती है। ऐसे में पुरुष को और भी शह मिलती है। अगर पुरुष यह मानता है कि मर्द होने का अर्थ है महिला के ऊपर पूरा नियंत्रण होना, तो हो सकता है कि वह महिला के साथ हिंसा करने को भी उचित माने। कुछ पुरुष यह समझते हैं कि मर्द होने के कारण उन्हें कुछ चीजों का हक है, जैसे कि अच्छी पत्नी, बेटों की प्राप्ति, परिवार के सारे फैसले करने का हक। यदि महिला सशक्त है तो पुरुष को यह लग सकता है कि वह उसे खो देगा या महिला को उसकी जरूरत नहीं है। वह कुछ ऐसे कार्य करेगा जिससे महिला उस पर अधिक निर्भर हो जाए। ऐसा व्यवहार भी एक महिला को क्रूरता के रास्ते पर चलने के लिए मजबूर कर सकता है। इसके लिए पुरुषों को भी आत्म-विश्लेषण करने की जरूरत है।
डा. वरिंद्र भाटिया, कालेज प्रिंसीपल
ईमेल : hellobhatiaji@gmail.com
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