मनुष्य ईश्वर से अनभिज्ञ है, फिर भी खुद को चतुर समझता है

श्री राधा कृष्ण मंदिर कोटला कलां में चल रही श्रीमद्भागवत महापुराण कथा में भक्तों ने लिया बाबा बाल जी महाराज का आशीर्वाद
नगर संवाददाता – ऊना
हमारी श्रद्धा हिमालय की तरह अडिग बनी रहे। हाथी तो बहुत बलवान होता है पर अपनी दुर्बलता के कारण अपने से कम ताकत वाले महावत को पीठ पर बैठा कर दर-दर की भीख मांगता रहता है। हम सब की भी कहानी कुछ ऐसी ही है। अपने आत्मबल को न जान कर मन की आकांक्षाओं के गुलाम बन कर ठोकरें खाते रहते हैं। उक्त प्रवचन कथावाचक भागवताचार्य दामोदर दास जी महाराज ने श्री गुरु पूर्णिमा महोत्सव (व्यास पूजा) के उपलक्ष्य में श्री राधा कृष्ण मंदिर कोटला कलां में चल रही श्रीमद्भागवत महापुराण कथा सप्ताह के तीसरे दिन रविवार को को किए। इस मौके पर भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने शिरकत की और बाबा बाल जी महाराज से आशीर्वाद प्राप्त किया।
कथावाचक ने कहा कि परमात्मा हमसे दूर नहीं है। इस तथ्य का बोध न होने के कारण ही हम उन्हें दूर एवं अलग समझते हैं। मनुष्य ईश्वर से अनभिज्ञ है फिर भी खुद को चतुर समझता है। यही उसकी सबसे बड़ी कमी है। उन्होंने कहा प्रभु में लगन लगनी चाहिए तभी साधना सफल होगी। हमारा निष्चय हो जाय कि हम कभी अकेले नहीं हैं, सर्वषक्तिमान प्रभु सदैव हमारे साथ है। धर्म सम्मत जीवन हमें यषस्वी बनाता है जबकि मनमर्जी का व्यवहार परेषानियां एवं मुसीबतें देता है। कीट-पतंगे देखते हैं कि हमारे कितने साथी दीपक की रोशनी में जल मरे फिर भी वह दिए की लौ में अपने को झोंक देता है। ऐसे ही मछली, भ्रमर, मृग एवं हाथी अपनी-अपनी कमजोरियों के कारण विपश्रि मोल ले लेते हैं। सत्संग एवं भगवान की पावन कथा हमें प्रज्ञावान बनाती है। महाराजश्री ने कहा कि हम भगवान की इच्छा में अपनी इच्छा को मिला कर आगे बढ़ेंगे तो अधिक आनंद में रहेंगे। जिंदगी है कभी काम से फुर्सत नहीं मिलेगी। इन्हीं उलझनों में हरि भजन के लिए भी समय निकालना पड़ेगा। जो हो रहा है अच्छा हो रहा है, जो होगा अच्छा ही होगा और जो हुआ अच्छा ही हुआ। यदि गीता का यह दिव्य ज्ञान बुद्धि में स्थिर हो सके तो जीवन की सारी खटपट ही मिट जाए।
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