देवभूमि हिमाचल प्रदेश की श्रीखंड महादेव यात्रा इस बार 10 जुलाई से आरंभ होकर 23 जुलाई तक चलेगी। जिला कुल्लू, किन्नौर और शिमला की सीमा के केंद्र की सबसे दुर्गम चोटी पर स्थित धार्मिक स्थल श्रीखंड के दर्शन के लिए हर वर्ष देशभर से शिवभक्त यहां पहुंचते हैं। श्रीखंड महादेव यात्रा बेहद दुर्गम मानी जाती है…
श्रीखंड महादेव धाम को पंच कैलाश में से एक माना जाता है। हर वर्ष जुलाई के माह में श्रीखंड महादेव की यात्रा शुरू की जाती है। श्रीखंड महादेव ट्रस्ट के द्वारा यह यात्रा आयोजित की जाती है। कैलाश मानसरोवर की यात्रा की ही तरह यहां जाने के लिए भी पहले पंजीकरण और उसके बाद मेडिकल चैकअप करवाना आवश्यक होता है। श्रीखंड महादेव यात्रा भारत की दुर्गम तीर्थ यात्राओं में से एक है। देवभूमि हिमाचल प्रदेश की श्रीखंड महादेव यात्रा इस बार 10 जुलाई से आरंभ होकर 23 जुलाई तक चलेगी। जिला कुल्लू, किन्नौर और शिमला की सीमा के केंद्र की सबसे दुर्गम चोटी पर स्थित धार्मिक स्थल श्रीखंड के दर्शन के लिए हर वर्ष देशभर से शिवभक्त यहां पहुंचते हैं। श्रीखंड महादेव यात्रा बेहद दुर्गम मानी जाती है।
यह यात्रा बरसात के मौसम में शुरू होती है इसलिए यहां चलने में कड़ी मेहनत तीर्थ यात्रियों को करनी पड़ती है। इसके साथ ही रास्ते में कई पानी के झरने भी पड़ते हैं जिन्हें पार करके यात्रियों का जाना पड़ता है। जैसे-जैसे ऊंचाई बढ़ती है वैसे-वैसे आक्सीजन की कमी भी महसूस होने लगती है। साथ ही बर्फ से ढके रास्तों पर चलना पड़ता है। यात्रा में स्वास्थ्य जांच के बाद ही यात्रियों को ऊपर भेजा जाता है, लेकिन कठिन भौगोलिक परिस्थितियों वाले इस क्षेत्र में आक्सीजन की कमी और अत्यधिक ठंड के कारण सामान्य स्वास्थ्य के बावजूद जीवन संकट में पड़ जाता है। श्रावण मास में होने वाली इस धार्मिक यात्रा में अब अन्य देशों से भी यात्री आने लगे हैं। शिव भक्त जत्थों में यहां पहुंचते हैं और यात्रा में भाग लेते हैं।
भोले बाबा के दर्शन
दुनिया की सबसे कठिन यात्राओं में मानी जाने वाली इस धार्मिक यात्रा में हर वर्ष पचास हजार के लगभग श्रद्धालु भाग लेते हैं और 18570 फुट ऊंची चोटी पर स्वयंभू लिंग स्वरूप विशाल चट्टान के रूप में भोले बाबा के दर्शन करते हैं। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य, आध्यात्मिक सुकून और सकारात्मक ऊर्जा तीन से पांच दिन की कठिन यात्रा कर पहुंचे शिवभक्तों की थकान मिटा देती है।
श्रीखंड यात्रा का मार्ग
श्रीखंड यात्रा के लिए 32 किलोमीटर की सीधी चढ़ाई श्रद्धालुओं के लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं होती है। श्रद्धालुओं की मान्यता है कि इस चोटी पर भगवान शिव का वास है। इसका आकार शिवलिंग की तरह है और इसकी ऊंचाई 75 फुट है। यहां तक पहुंचने के लिए सुंदर घाटियों के बीच से एक ट्रैक है। यहां पहुंचने के लिए शिमला और कुल्लू की तरफ से पहले निरमंड पहुंचना पड़ता है और उसके बाद बागीपुल के जाओं गांव से पैदल यात्रा शुरू होती है। यहां से सबसे कठिन डंडा धार की चढ़ाई शुरू होती है, जिसमें पहला पड़ाव छातडू, दूसरा कालीघाटी, तीसरा भीमतलाई, चौथा भीमडवार, पांचवां पार्वती बाग, छठा नैन सरोवर, सातवां भीमबही और फिर आठवां और अंतिम श्रीखंड महादेव स्थल है। इनमें सुविधानुसार यात्री रात्रि ठहराव करते हैं, जिसमें सबसे सरल थाचडू, भीमडवार और पार्वती बाग ही है।
पौराणिक महत्त्व
श्रीखंड का स्थान पंच कैलाश में आता है। यह हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में स्थित है। पौराणिक कथानुसार भस्मासुर ने इस पर्वत पर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न कर वरदान प्राप्त किया था। भगवान शिव ने भस्मासुर को किसी के भी सिर पर हाथ रखकर उसे भस्म करने का वरदान दिया था। भस्मासुर अपने वरदान की सत्यता को जांचने के उद्देश्य से भगवान शिव के सिर पर हाथ रखने की कोशिश करने लगा, तब भगवान शिव वहां से अचानक गायब हो गए। तभी भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण करके भस्मासुर के साथ नृत्य करते हुए उसका हाथ उसी के सिर पर रखवा दिया और इस प्रकार भगवान शिव की रक्षा की थी। किंवदंतियां हैं कि भस्मासुर इसी पर्वत पर भस्म हुआ था। निरमंड के बायल गांव में स्थित गुफा से एक रास्ता श्रीखंड को जाता है। मान्यता है कि भगवान शिव ने भस्मासुर से बचाव करने के लिए यहां प्रवेश किया था। ये गुफा आज भी मौजूद है। जहां यह गुफा निकलती है, वहां आश्चर्यजनक रूप से भस्मासुर के वधस्थल पर पानी लाल रंग का है।
माता पार्वती के आंसुओं से बना नैन सरोवर
श्रीखंड महादेव से पहले नैन सरोवर है। माना जाता है कि जब भगवान शिव भस्मासुर से छिपने के लिए श्रीखंड महादेव में समाधिस्थ थे, तब माता पार्वती उनके विलाप में रोई थी और उनके आसुओं से नैन सरोवर निर्मित हो गया था। श्रीखंड महादेव से नैन सरोवर की दूरी 3 किलोमीटर है।
श्रीखंड कैलाश का पांडवों से संबंध
माना जाता है कि श्रीखंड कैलाश में वनवास के दौरान पांडवों ने निवास किया था। भीम ने यहां महादेव को प्रसन्न करने के लिए तप भी किया था। श्रीखंड महादेव ट्रैक के दौरान भीम द्वार नामक एक जगह भी आती है। माना जाता है कि यहां एक गुफा भी स्थित है जहां भीम के पैरों के निशान हैं।