दलाईलामा के पुनर्जन्म का मामला और चीन

1995 में दलाईलामा ने तिब्बत में ही अवतार लिए एक छह वर्षीय बच्चे की पहचान 11वें पंचेन लामा के रूप में की। चीन सरकार ने उसे पूरे परिवार समेत कैद कर लिया और उसे गायब कर दिया था। इसके स्थान पर चीन सरकार ने एक दूसरे बच्चे को अवतार घोषित कर दिया। तब से असली पंचेन लामा का किसी को पता नहीं है और चीन द्वारा घोषित दलाईलामा को तिब्बत के लोगों की मान्यता नहीं है। चीन पंद्रहवें दलाईलामा के मामले में भी यही कहानी दोहरा सकता है। यही कारण है कि वर्तमान दलाईलामा ने बहुत कुछ स्पष्ट कर दिया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनका किसी गुलाम देश में पुनर्जन्म नहीं होगा…
तिब्बत के चौदहवें दलाईलामा तेनजिंग ग्याछो ने अपनी आयु के नब्बे साल पूरे कर लिए हैं। वे तिब्बत के आध्यात्मिक मार्गदर्शक हैं और राजधर्म के हिसाब से तिब्बत के वास्तविक शासक भी हैं। लेकिन चीन के गृहयुद्ध में जीत जाने के बाद कम्युनिस्ट पार्टी ने तिब्बत को स्वतंत्र देश मानने की बजाय उसे चीन का ही हिस्सा कहना शुरू कर दिया था। स्वाभाविक ही तिब्बत ने इसका विरोध किया। लेकिन चीन ने तिब्बत को दो विकल्प दिए थे। पहला आत्मसमर्पण का था। आत्मसमर्पण यानी तिब्बत सरकार खुद ही घोषणा कर दे कि तिब्बत चीन का हिस्सा है, जिसे यूरोप की साम्राज्यवादी ताकतों ने मातृभूमि चीन से दूर कर रखा था। दूसरा विकल्प युद्ध का ही था। लेकिन तिब्बत इतने बड़े चीन से लड़ भी नहीं सकता था। आत्म समर्पण का प्रश्न ही नहीं था और चीन से लडऩे की क्षमता नहीं थी, ऐसी हालत में उसने अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए भारत की ओर देखा। लेकिन दुर्भाग्य से भारत ने तिब्बत की ओर नहीं देखा। भारत द्वारा उस समय तिब्बत की ओर न देखने का भारत और तिब्बत दोनों को ही बहुत नुकसान उठाना पड़ा। तिब्बत की आजादी गई। चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया और 1959 में दलाईलामा को भाग कर भारत आना पड़ा। उनके साथ लगभग एक लाख तिब्बती शरणार्थी भी भारत पहुंचे। यह तो तिब्बत का नुकसान था।
जहां तक भारत का सवाल है, चीन ने भारत के अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख के कुछ हिस्सों पर भी अपना दावा कर दिया। 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर दिया। भारत के कुछ भू-भाग पर कब्जा भी कर लिया और सदा के लिए भारत के शांत सीमांत को अशांत कर दिया। भारत ने दलाईलामा को जब शरण दी तब उनकी आयु पच्चीस साल के लगभग थी। उन्होंने धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) में केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन का सचिवालय स्थापित किया। निर्वासित तिब्बती सरकार में चुनाव का प्रावधान किया। तिब्बती संविधान बनाया गया। तिब्बती संसद का भवन बना। विभिन्न मंत्रालय स्थापित हुए। भारत सरकार ने शरणार्थी तिब्बती नागरिकों को दस्तावेज मुहैया करवाए जिन पर वे तिब्बत के नागरिक के रूप में वीजा लेकर दूसरे देशों की यात्रा कर सकते थे। दूसरे देशों में दूतावास स्थापित किए। नरेन्द्र मोदी ने जब 2014 में प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की थी तो पड़ोसी देशों के प्रधानमंत्री भी निमंत्रित किए गए थे। उनमें निर्वासित तिब्बत सरकार के प्रधानमंत्री भी थे। लेकिन यह सारी व्यवस्था की अनुमति भारत सरकार ने दलाईलामा के प्रशासन को मुहैया करवाई है। आधिकारिक रूप से भारत सरकार तिब्बत की निर्वासित सरकार को मान्यता नहीं देती। यह दलाई लामा का प्रशासन है और दलाई लामा भारत के सम्मानित अतिथि हैं, इसलिए सरकार ने उन्हें अपना प्रशासन स्थापित करने और चलाने की अनुमति दी है। लेकिन अब दो समस्याएं सामने दिखाई देने लगी हैं। चौदहवें दलाई लामा के बाद क्या? जाहिर है यह चिंता वर्तमान दलाईलामा की आयु के कारण ही दिखाई देने लगी है। क्या दलाई लामा के निधन के बाद यह संस्था समाप्त हो जाएगी? यह बहस पिछले कुछ सालों से चल रही है। दलाई लामा कई बार कह चुके हैं कि इस संस्था के भविष्य का निर्णय तिब्बत के लोग ही करेंगे। अपने 90वें जन्म दिन के अवसर पर दलाई लामा ने इस बहस का अंत कर दिया है। उन्होंने कहा मैं पिछले चौदह साल से इस बहस में चुप ही रहा। लेकिन इतने साल मुझे हजारों तिब्बतियों, लामाओं ने इस संस्था को जारी रखने का निर्णय किया है। संस्था को जारी रखने का अर्थ है कि दलाई लामा अपने निधन के बाद पुन: जन्म लेंगे।
दलाई लामा महात्मा बुद्ध के करुणा स्वरूप के अवतार माने जाते हैं। उन्हें विष्णु का अवतार भी माना जाता है। दलाई लामा बोधिसत्व हैं। बोधिसत्व से अभिप्राय है कि वर्तमान दलाईलामा का निर्वाण होगा, यानी जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाएंगे। लेकिन बोधिसत्व पुन: जन्म लेता है क्योंकि उसे इस मृत्युलोक में रह गए शेष लोगों को भी मुक्ति का मार्ग दिखाना है। जाहिर है जब तक तिब्बत ही गुलाम है तब तक दलाई लामा अपने निर्वाण से ही कैसे संतुष्ट हो सकते हैं? इसलिए दलाईलामा ने स्पष्ट कर दिया है कि यह संस्था जारी रहेगी जिसका अर्थ है कि वर्तमान दलाईलामा पुनर्जन्म लेंगे। जाहिर है चीन के लिए यह सूचना सुखद नहीं है। दूसरी समस्या थोड़ी और गुंझलदार है। पुनर्जन्म में दलाईलामा पहचाने कैसे जाएंगे? सामान्य उत्तर तो यही है कि जिस विधि से आज तक के चौदह दलाईलामाओं के पुनर्जन्म की पहचान होती रही है, उसी पद्धति से ही पंद्रहवें दलाईलामा की पहचान होगी। यह ठीक है कि दलाई लामा के नए अवतार को पहचानने की एक पूरी विधि तिब्बत में शताब्दियों से प्रचलित है। अपने अगले जन्म के कुछ संकेत तो पूर्ववर्ती दलाईलामा स्वयं दे जाते हैं। शेष पद्धति निश्चित है। लेकिन इस बार संकट के कारण कुछ दूसरे हैं। चीन ने 2007 में स्पष्ट कर दिया था कि नए दलाई लामा की पहचान करने का अंतिम अधिकार चीन सरकार के पास ही है। नए दलाई लामा के अवतार ग्रहण करने पर अव्वल तो उसकी पहचान ही चीन सरकार करेगी, लेकिन यदि तिब्बत के लामा अपनी प्राचीन प्रचलित पद्धति से पहचान कर भी लेते हैं तो उसको मान्यता देने का अधिकार तो चीन के पास ही है। चीन इसे स्वर्ण घट पद्धति कहता है। सोने के घड़े में नाम डाल कर जिसकी पर्ची निकल आए, उसके पक्ष में निर्णय करना। वैसे आश्चर्य इस बात का भी है कि आत्मा, परमात्मा, पुनर्जन्म इत्यादि अवधारणाओं को सिरे से नकारने वाला चीन अध्यात्म के इस धार्मिक मामले का भी नियंत्रण करना चाहता है।
ऐसा हादसा इससे पहले पंचेन लामा के बारे में हो चुका है। दसवें पंचेन लामा के देहांत के बाद उनके अवतार ग्याहरवें पंचेन लामा की पहचान की पद्धति में अंतिम निर्णय दलाईलामा का ही होता है। 1995 में दलाईलामा ने तिब्बत में ही अवतार लिए एक छह वर्षीय बच्चे की पहचान 11वें पंचेन लामा के रूप में की। चीन सरकार ने उसे पूरे परिवार समेत कैद कर लिया और उसे गायब कर दिया था। इसके स्थान पर चीन सरकार ने एक दूसरे बच्चे को अवतार घोषित कर दिया। तब से असली पंचेन लामा का किसी को पता नहीं है और चीन द्वारा घोषित दलाईलामा को तिब्बत के लोगों की मान्यता नहीं है। चीन पंद्रहवें दलाईलामा के मामले में भी यही कहानी दोहरा सकता है। यही कारण है कि वर्तमान दलाईलामा ने बहुत कुछ स्पष्ट कर दिया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनका किसी गुलाम देश में पुनर्जन्म नहीं होगा। जाहिर है कि उनका अभिप्राय चीन की गुलामी में फंसे तिब्बत से ही है। वे चीन में भी जन्म नहीं लेंगे। वे भारत में भी जन्म ले सकते हैं। इससे पहले भी छठे दलाईलामा का जन्म भारत में ही हुआ था। वर्तमान दलाईलामा ने गादेन फोडरंग न्यास की स्थापना की हुई है। उन्होंने स्पष्ट किया कि पुनर्जन्म के बाद पहचान, यह न्यास ही प्राचीन तिब्बती पद्धति का अनुसरण करते हुए करेगा। चीन को दलाईलामा की यही घोषणा संकट में डाल रही है।
कुलदीप चंद अग्निहोत्री
वरिष्ठ स्तंभकार
ईमेल:kuldeepagnihotri@gmail.com
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