अजय पराशर

भले ही केंद्र तथा राज्य सरकारें मिलकर कितने भी अभियान चला लें, सड़क पर जीवन तभी सुरक्षित हो सकता है जब इसके लिए समाज एकजुट हो जाए। लेकिन यह तभी संभव होगा जब लोग सड़क सुरक्षा के नियमों को अपने जीवन का अनिवार्य अंग बना लें। भले ही अपने गंतव्य पर पहुंच कर लोगों को

बा़गवानी ने हिमाचल को अग्रणी प्रदेश बनाने में अहम भूमिका निभाई है। आज बा़गवानी राज्य के आर्थिक विकास में सालाना करीब 3,300 करोड़ रुपए का भारी योगदान देती है… 25 जनवरी, 1971 को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त करने के पचास वर्षों के  दौरान हिमाचल प्रदेश ने जिस तरह जीवन के हर क्षेत्र में समग्र

शाम की सैर के दौरान पंडित जॉन अली और मैं पार्क के साथ वाली उस सडक़ पर तेज़ी से कदम बढ़ा रहे थे, जिस पर हाल ही में कोलतार डालने के बाद सडक़ को नमी से बचाने के लिए कोलतार मिश्रित रेत डाली गई थी। वहीं सड़क पर बच्चे आपस में खेलते हुए एक-दूसरे पर

जब से नासपीटा हिंदुस्तानी मीडिया कुप्पे की तरह फूल कर, अपने सीने का नाप छप्पन इंच बताने लगा है, तब से खबरों और विज्ञापनों में भेद करना मुश्किल हो गया है। पता ही नहीं चलता कब विज्ञापन के बीच खबरें शुरू हो जाती हैं? खबरों के बीच बजता संगीत और शब्दावली सत्ता, संस्थान या व्यक्ति

विकास कभी नहीं मरता। विकास कभी मर ही नहीं सकता। विकास शाश्वत है, अमर है; नेता जी के दिल में ़कायम कुरसी की तृष्णा की तरह, आ़िखरी सांस लेते आदमी की और जीने की इच्छा की तरह। विकास कभी नहीं मर सकता। चाहे उत्तम प्रदेश की ़खाकी अपनी मनोहर कहानियां गढ़कर उसका एन्काउंटर ही क्यों

अजय पाराशर लेखक, धर्मशाला से हैं मार्निंग वॉक के दौरान पंडित जॉन अली कोे न जाने क्या सूझी कि पार्क में एक जगह रुक कर कुशा चबाने लगे। मैंने पूछा तो बोले कि पिछले दिनों खबर छपी थी कि कुलंत पीठ में लोगों द्वारा अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए घास खाते ही देवता

अजय पाराशर लेखक, धर्मशाला से हैं पंडित जॉन अली अब ज़िला कलेक्टर हो गए थे, लेकिन इतने साल की नौकरी में उन्हें पता लग चुका था कि ऐसे सिस्टम के कालचक्र में बड़े से बड़ा बल्लम होने के बावजूद अपने हाथ कुछ भी नहीं है। सिस्टम बड़ी चीज़ है। सप्तपदी के बाद जिस तरह आपको

अजय पाराशर लेखक, धर्मशाला से हैं सरकारी अस्पताल के योग्य चिकित्सों ने जब पंडित जॉन अली की धर्मपत्नी के कोरोना पॉज़िटिव् होने का अंदेशा व्यक्त किया तो मानो सबको सांप सूंघ गया। थोड़ी देर पहले जिस अस्पताल में तिल रखने की जगह नहीं थी, वहां ऐसी वीरानगी छाई, जैसे श्मशानघाट में मुर्दे को श्रंद्धाजलि अर्पित

अजय पाराशर लेखक, धर्मशाला से हैं भले ही ओशो लाख कहते रहें कि हमें जो शरीर मिला है हमें उसके प्रति सदैव कृतज्ञ होना चाहिए। लेकिन हमें न ़खुद से प्रेम है और न ईश्वर से। दुनिया को छिछोरा बनाने के बाद उसे अपने छिछोरेपन से जीतने की कोशिश करते हैं। लेकिन सामूहिक छिछोरेपन के