पीके खुराना

भोजन के साथ टीवी देखना, अखबार या मैगजीन पढऩा, या अपने मोबाइल पर सोशल मीडिया में व्यस्त रहना गलत है। भोजन खूब चबा-चबाकर खाइये। अच्छी तरह चबाने से हमारे मुंह की लार भोजन में मिल जाती है जिससे भोजना का स्वाद भी बढ़ता है और वह ज्यादा पोषक हो जाता है। ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर, चाय-कॉफी और फल आदि खाने के समय का ध्यान रखिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि आपका जब दिल किया तब कुछ खा लिया। भोजन में विंडो सिस्टम अपनाइए, यानी एक खास समय पर खिडक़ी खुली और आपने खाना खाया। यह आपकी सेहत के

इसीलिए कहा गया है कि हमारी असली पूजा तब शुरू होती है जब हम पूजा खत्म करके पूजा-स्थल से बाहर आते हैं और लोगों के साथ व्यवहार में पूजा के उन सूत्रों को व्यावहारिक रूप देते हैं, अमलीजामा पहनाते हैं, वरना पूजा स्थलों में की गई पूजा का कोई अर्थ नहीं है। देखना यह होता है कि हम उन लोगों से कैसा व्यवहार करते हैं जिनसे हमें कोई काम न हो। हम उन लोगों से कैसा व्यवहार करते हैं जिनका सामाजिक-आर्थिक स्त

संतुलित डर और आत्मविश्वास का मेल आपकी सफलता को सुनिश्चित करता है, क्योंकि वह आपके इरादे को पक्का करता है और आरंभिक छोटी-बड़ी कठिनाइयों और असफलताओं से घबराए बिना आगे चलने की प्रेरणा देता है। यही हमारी सफलता का राज है। इसीलिए मैं दोहरा कर कहता हूं कि सफलता का सबसे बड़ा कारक है पक्का इरादा और विपरीत स्थितियों में भी अपना सपना सच करने की लगन। तो आइए, सपने देखें,

संजय इस उत्तर की गहराई को समझ गए। वे जीवन के दर्शन की इस नई व्याख्या को गहराई से समझ रहे थे। विचारों का झंझावत अब भी चल रहा था, नए विचार मन में आ-जा रहे थे, लेकिन दिमाग साफ था, दिमाग के जाले उतर चुके थे। यह स्पष्ट था कि जीवन को सफल बनाने के लिए हमारी दिशा क्या होनी चाहिए और हमारे प्रयत्न कैसे होने चाहिएं। विचारों से उबर कर संजय ने सिर उठाया ताकि वे उस दिव्य पुरुष को धन्यवाद दे सकें, लेकिन वहां कुछ नहीं था, बवंडर भी नहीं था, प्रकृति की शांति थी और सुहानी बयार थी। जीवन का सार उन्हें समझ आ गया था...

ऐसे में बढ़ती आबादी का बड़ा हिस्सा बेरोजगार, अर्धशिक्षित अथवा अशिक्षित तथा साधनहीन होगा। इस स्थिति को न बदला गया तो बढ़ती आबादी सचमुच अभिशाप बन जाएगी। स्थिति को बदलने के लिए सबसे पहले कस्बों और गांवों में इन्फ्रास्ट्रक्चर के तेज विकास के लिए काम करना होगा, उनके लिए स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवानी होंगी तथा उन्हें रोजगारपरक उद्यमिता की शिक्षा देनी होगी। कंज्यूमर गुड्स कंपनियों को आज ग्रामीण

इनमें से बहुत सी कंपनियां शोध और समाज सेवा पर नियमित रूप से तथा बड़े खर्च करती हैं। इन कंपनियों के सहयोग से बहुत से क्रांतिकारी आविष्कार हुए हैं। सच तो यह है कि इन कंपनियों के बिना वे आविष्कार संभव ही न हुए होते। आर्थिक शिक्षा हमारी खुशहाली की कुंजी है। आर्थिक रूप से शिक्षित व्यक्ति भ्रष्ट हुए बिना भी, किसी दूसरे व्यक्ति का नुकसान किए बिना भी, कानूनी और वैध तरीकों से तेजी से अमीर बन सकता है। वस्तुत: आॢथक शिक्षा के बिना अमीर बनना तो शायद संभव है, पर अमीर बने रहना संभव नहीं है। लक्ष्मी और सरस्वती में यहां कोई विरोध नहीं है...

हमारी लार जितना अधिक पेट में जाएगी, वह उतना ही शरीर को न्यूट्रल बनाएगी, यानी अम्लीय अवस्था का समाधान करेगी, पेट में अम्ल होने से जलन होती है, खट्टे डकार आते हैं जबकि हमारी लार ही उनका इलाज है। भोजन चबा-चबाकर खाने तथा पानी घूंट-घूंट कर पीने से उनमें ज्यादा से ज्यादा लार मिलती है जो मुफ्त में प्राकृतिक ढंग से हमारी एसिडिटी का इलाज करती है। लार में बहुत से जीवाणु होते हैं जो हमारे शरीर के लिए तो ठीक हैं, परंतु थूक देने पर दूसरों के लिए बीमारी का कारण बनते हैं। इसीलिए कहा गया है कि थूकना नहीं चाहिए। थूकने के बजाय ला

इसीलिए कहा गया है..‘सकल पदारथ हैं जग माहीं, कर्महीन नर पावत नाहीं’। जो आदतन परजीवी बने रहते हैं, दूसरों की मदद के तलबगार बने रहते हैं, वे ही असफल होते हैं। कोई साहसी और मजबूत इरादों वाला व्यक्ति कभी असफल नहीं होता। यह जीवन के हर क्षेत्र में सच है। अत: याद रखिए, सफलता के लिए लक्ष्य निर्धारित करना पड़ता है, उस लक्ष्य की ओर पूरा ध्यान केंद्रित करना पड़ता है, कठिनाइयों का मुकाब

कला के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोगों तथा लेखन में रत लोगों के मन में अक्सर यह विचार घर कर जाता है कि चूंकि वे कलाकार हैं, लेखक हैं, रंगकर्मी हैं, चित्रकार हैं अथवा शिल्पकार हैं, इसलिए बढिय़ा काम के लिए ‘मूड बनने’ की आवश्यकता रहती है, अत: कलाकार का मूडी होना उसका गुण है, या उसका अधिकार है। बड़े लेखकों, गायकों, अभिनेताओं के मूड के चर्चे अखबारों व पत्रिकाओं में छपते रहते हैं और लोग चटखारे ले-लेकर उन्हें पढ़ते भी हैं, इससे कला अथवा लेखन से जुडऩे