इस तरह के घोष वाक्य तो कई धर्मों में विद्यमान हैं, किन्तु उनको लागू कौन करता है? गांधी ने उनको सामाजिक जीवन तक विस्तारित किया और लागू करने की पहल की। आजकल बहुत से लोग गांधी की छोटी-छोटी बातों को तोड़-मरोड़ कर उन्हें लांछित करने के प्रयासों में लगे रहते हैं, लेकिन वे इस बात पर गौर करने से बचते हुए निकल जाना चाहते हैं कि गांधी तो खुली किताब है। उसने तो अपनी आत्मकथा में सबके सामने अपने जीवन के हर पहलू को रख दिया है। और उसे नाम दिया ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’...
यही मूल अंतर है जिसे पाकिस्तान के लोग तो शायद समझ रहे हैं, लेकिन अपने राजनीतिक स्वार्थों के कारण वहां के हुक्मरान नहीं समझ रहे। पाकिस्तान के हुक्मरान अपने देश के लोगों को इस्लाम के नाम पर उनकी सनातन सांस्कृतिक चेतना से तोडऩा चाहते हैं। पश्तून इसके लिए तैयार नहीं हैं। न तो डूरंड रेखा के इस ओर के पश्तून और न ही उस ओर के पश्तून। यही कारण है कि दशकों तक तालिबान की मदद के बावजूद आज फिर पाकिस्तान और अफगानिस्तान
आज के ओलंपिक खिलाड़ी भी शौकिया न होकर अब पेशेवर हो गए हैं। सदी पूर्व जब जिम थोर्पे के ओलंपिक पदक इस लिए छीन लिए गए थे कि उसने कहीं खेल के नाम पर थोड़ा सा धन ले लिया था। आज अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स महासंघ स्वयं विश्व रिकॉर्ड बनाने पर एक लाख अमरीकी डालर इनाम देता है और भारत में तो कु
हिमाचल प्रदेश में अनाथ बच्चों की व्यथा एवं परेशानी को समझते हुए कुछ एनजीओ एवं समाजसेवी संस्थाओं ने भी सहायता के लिए हाथ आगे बढ़ाए हैं जिनमें रिटायर्ड आईएएस अधिकारी राजेंद्र सिंह नेगी ने आरके शर्मा के सहयोग से आदर्श बाल निकेतन आश्रम के निर्माण पर 1.40 करोड़ रुपए की राशि खर्च कर एक अनूठी मिसाल कायम की है...
किसी दुर्घटना में आंखें खो चुके मरीजों का मुफ्त इलाज करके उनकी आंखें वापस लाने का अनूठा काम भी डा. ग्रेवाल सरीखा कोई व्यक्ति ही कर सकता है। अभिनय, फोटोग्राफी, नृत्य, संगीत आदि कलाओं में महारत पाने के लिए जिस संयम, धीरज और लगातार अभ्यास की आवश्यकता होती है, वह व्यक्ति को संवेदनशील बनाती हैं। ऐसा कोई भी व्यक्ति जब अपने धन अथवा समय को जनसेवा के कार्यों के लिए भी समर्पित करता है तो वह सच्चे अर्थों में आध्यात्मिक हो जाता है। पंद्रहवीं शताब्दी के भक्ति साहित्य के श्रेष्ठ कवि नरसी भगत के मूल गुजराती भजन का हिंदी रूपांतरण ‘वैष्णव जन तो तेने कहिए, जे पीर पराई जाने
जहां तक युवा महत्त्वाकांक्षा का सवाल है, पूछा जा सकता है कि रोजगार के अधिकार को मौलिक अधिकार क्यों न बनाया जाए... हाल का राजनीतिक-विकासात्मक, सृजनात्मक घटनाक्रम और उनसे उपजी विश्लेषणात्मक सोच यह प्रश्न भारत के युवाओं के पूछ रही है। पहली राजनीतिक घटना यह है कि कांग्रेस, मुख्य विपक्षी दल, एनडीए सरकार पर आरोप लगा रही है कि वह संविधान में बदलाव करने जा रही है। वह भारतीय नागरिकों को इस संबंध में सचेत भी कर रही है। दूसरी घटना के रूप में हम प्रखर चिंतक और ‘दिव्य हिमाचल’ के सीएमडी भानु धमीजा की पुस्तक ‘भारत में राष्ट्रपति प्रणाली : कितनी जरूरी, कितनी बेहतर’ को ले
आज जब चीन से आयात घाटा 85 अरब डॉलर के असहनीय स्तर तक पहुंच चुका है, जिसका असर हमारे विनिर्माण और रोजगार पर भी पड़ रहा है, हमें चीन पर निर्भरता कम करने के सघन प्रयास करने की जरूरत है। सबसे पहले जब 2018-19 के बजट में प्रधानमंत्री मोदी की ‘मेक इन इंडिया’ नीति घोषणा के तहत इलेक्ट्रॉनिक्स और टेलीकॉम उत्पादों पर आयात शुल्क 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत करने का निर्णय लिया गया, और फिर उसी वर्ष वस्त्र और परिधानों पर आयात शुल्क बढ़ाने और तत्पश्चात अन्य गैर-जरूरी आयातों पर आयात शुल्क 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत करने का निर्णय लिया गया, उसके फलस्वरूप वर्ष 2018-19 में चीन से व्यापार घाटा केवल 53.6 अरब डॉलर रह गया, जबकि 2017-18 में यह 63 अरब डॉलर था। महत्वपूर्ण बात यह है कि उस समय इन आयात शुल्कों में वृद्धि का कई अर्थशास्त्रि
हम उम्मीद करें कि नए वर्ष में भारत की विशाल कौशल प्रशिक्षित युवा आबादी भारत को विदेशी निवेशकों की नजरों में और अधिक पसंदीदा देश बनाने की डगर पर बढ़ाएगी...
योग के नियमों का पालन करने के बाद अगर यौगिक क्रियाओं को किया जाता है तो मानव में शारीरिक-मानसिक स्तर पर आश्चर्यजनक रूप से अलौकिकता का सुधार होता है...