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डा. भरत झुनझुनवाला आर्थिक विश्लेषक जीएसटी के कारण अर्थव्यवस्था की कुशलता का लाभ नहीं मिल रहा है। जीएसटी लागू होने के कारण साइकिल की उत्पादन लागत कम हुई है, लेकिन आम आदमी के पास साइकिल खरीदने के लिए क्रय शक्ति ही नहीं रही है। यह ऐसे हुआ कि आम आदमी के सामने 56 भोग परोसकर

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री वरिष्ठ स्तंभकार पूरे तीन साल बाद मार्च 1922 को ब्रिटिश सरकार ने रौलेट एक्ट को वापस ले लिया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जलियांवाला बाग में जब शांतिप्रिय जनता पर डायर की सेना गोलियों की बौछार कर रही थी, तो उस भीड़ में एक अनाथ बालक ऊधम सिंह

कुलभूषण उपमन्यु अध्यक्ष, हिमालय नीति अभियान   हमारे शिक्षण में बुनियादी तौर पर ही यह दोष है कि हम सत्य के खोजी बनने के बजाय अपने-अपने मंतव्य को दूसरों पर थोपने में ज्यादा रुचि लेते हैं। फिर चाहे धार्मिक शिक्षण हो या भौतिक शिक्षण, हम सभी का हाल तो यही है। फिर छात्र हिंसा की

संसद द्वारा दैनिक मूल्यांकन के लिए अंबेडकर की पैरवी में जो भी थोड़ा-बहुत व्यावहारिक या मूल्यवान था, वह भी तब समाप्त हो गया जब भारत ने दलबदल विरोधी कानून अंगीकार कर लिए। वर्ष 1985 के संविधान संशोधन ने सांसद के लिए पार्टी के फरमान के खिलाफ वोट देना अवैध बना दिया। अब अगर बहुमत पार्टी

प्रो. एनके सिंह अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार कुछ ऐसे भी आलोचक हैं जो कहते हैं कि गंगा अभी भी साफ नहीं है तथा न ही वह गंदगी से मुक्त है। यह सत्य है कि गंगा का पानी धीरे-धीरे साफ हो रहा है, किंतु यह पूरी तरह साफ नहीं है क्योंकि अभी इस दिशा में बहुत कुछ

भूपिंदर सिंह राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक गेहूं, मक्का आदि अनाज हमारे अपने खेत में आज भी हो जाता है, मगर उसे न खाकर हम सस्ते डिपो से मिलने वाले बिना प्रोटीन के आटे की रोटी खा रहे हैं। हमारे खाने से हमें मिलने वाला परंपरागत प्रोटीन, जो हमें दूध, गेहूं व दालों से मिलता था, आज

पीके खुराना राजनीतिक रणनीतिकार असल जीवन में डॉन जैसे अपराधी या तो पुलिस के हाथों मारे जाते हैं या फिर उनके प्रतिद्वंद्वी उनकी हत्या कर देते हैं और बहुत बार तो खुद उनके साथियों में से ही कोई उनकी जीवन लीला समाप्त कर देता है। अपराध फिल्मों में दर्शकों के लिए चाट-मसाला खूब होता है।

कुलभूषण उपमन्यु अध्यक्ष, हिमालय नीति अभियान   वन धीरे-धीरे समाज की अंतर्चेतना में बसने वाली सामाजिक धरोहर के सिंहासन से उतार कर वन विभाग की संपत्ति बना दिए गए। यह भी नहीं समझा कि यह कितना बड़ा नुकसान वन व्यवस्था के लिए दीर्घकाल में साबित हो सकता है। इसी के चलते वन माफिया और वन

डा. भरत झुनझुनवाला आर्थिक विश्लेषक   सरकारी बैंकों को बेचकर उस रकम का सरकार के अधीन ही दूसरे कार्यों में निवेश करने से सरकार की भूमिका छोटी नहीं होती है, बल्कि सरकार की भूमिका में गहराई आएगी। मेरा तर्क अर्थव्यवस्था में सरकार की भूमिका को झुठलाने का नहीं, बल्कि उसको गहराने का है, जैसे परिवार