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ऋषि-मुनियों की तपोस्थली देवी- देवताओं के लिए प्रसिद्ध देवभूमि हिमाचल की ओर स्वतः ही लोग यहां आकर्षित होते रहे हैं। हिमाचल के कोने- कोने में मंदिरों की स्थापना हुई है, जिनमें से आज कई विश्व  विख्यात हैं, जिनमें नयनादेवी, ज्वालाजी, चिंतपूर्णी आदि अनेकों मंदिर शामिल हैं। शिवालिक की पहाडि़यों तले बसे नालागढ़ में मां तारा

दुनिया में भगवान राम सिर्फ  एक जगह अकेले हैं यानी उनकी मूर्ति के साथ न तो उनकी पत्नी सीता है और न उनके छोटे भाई लक्ष्मण। माउंटआबू में रघुनाथ जी का यह मंदिर दुनिया का इकलौता मंदिर है, जहां भगवान राम अकेले हैं। भगवान राम की ये मूर्ति स्वयंभू  है।  इस मूर्ति के बारे में

तल्लक्षणानि वाच्यन्ते नानामतभेदात्।। अब नाना मतों के अनुसार उस भक्ति के लक्षण कहते हैं। पूजादिष्वनुराग इति पाराशर्यः।। पराशरनंदन श्रीव्यासजी के मतानुसार भगवान की पूजा आदि में अनुराग होना भक्ति है। कथादिष्विति गर्गः। श्रीगर्गाचार्य के मत से भगवान की कथा आदि में अनुराग होना ही भक्ति है। आत्मरत्यविरोधेनेति शाण्डिल्यः।। शांडिल्य ऋषि के मत में आत्मरति के

प्रकृति ने प्रजनन-क्रिया की सिद्धि के निमित्त जिस उद्दाम वासना को मानव हृदय में प्रतिष्ठित किया है, उसकी उच्छृंखलता यौवन में आकर इतनी तीव्र हो उठती है कि सामाजिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से उसका संयम आवश्यक है।भारतीय धर्म ने उस उद्दाम प्रवृत्ति को स्वीकार किया है तथा विश्व की संस्थिति और संपूर्णता के लिए मनुष्य

ध्यानावस्थित होकर भौतिक जीवन-प्रवाह पर चित्त जमाओ। अनुभव करो कि समस्त ब्रह्मांडों में एक ही चेतना शक्ति लहलहा रही है, उसी के विकार भेद से पंचतत्त्व निर्मित हुए हैं। इंद्रियों द्वारा जो विभिन्न प्रकार के सुख  दुख अनुभव होते हैं, वह तत्त्वों की विभिन्न रासायनिक प्रक्रियाएं हैं, जो इंद्रियों के तारों से टकराकर विभिन्न परिस्थितियों

सर्दियों का मौसम आते ही हम ठंड से बचने के लिए गर्म कपड़ों का इस्तेमाल करते हैं, शरीर को चाहे कितने ही गर्म कपड़ों से ढक लिया जाए, लेकिन शरीर को ठंड से बचाने के लिए अंदरूनी गर्मी की जरूरत होती है। अगर शरीर अंदर से गर्म होगा तो हमें ठंड कम लगेगी और हम

मनुष्य बुराइयों से बचता रहे इसके लिए उसे हर घड़ी अपना लक्ष्य अपना उद्देश्य सामने रखना चाहिए। यात्रा में गड़बड़ी तब फैलती है, जब अपना मूल लक्ष्य भुला दिया जाता है। मनुष्य जीवन में जो अधिकार एवं विशेषताएं प्राप्त हैं वह किसी विशेष प्रयोजन के लिए हैं। इतनी सहूलियत अन्य प्राणियों को नहीं मिली। मनुष्य

यदि देहं पृथक्कृत्य चित्ति विश्राम्य तिष्ठसि। अधुनैव सुखी शांतः बंधमुक्तो भविष्यसि।। अष्टावक्र जनक से कहते हैं कि यदि तू स्वयं को शरीर से पृथक करके चैतन्य में स्थित है तो अभी सुखी, शांत व बंधनमुक्त हो जाएगा। इस सूत्र में अष्टावक्र द्वारा राजा जनक को दिया गया परमोपदेश है। अष्टावक्र कहते हैं कि जनक! यदि

व्यायाम और प्राकृतिक भोजन के द्वारा, शरीर की प्रत्येक मांसपेशी को संतुलित रूप में विकसित करना होगा, शक्ति का अर्जन करना होगा-तभी हम सुंदर बन सकेंगे। प्रकृति में ही वास्तविक सुंदरता विद्यमान है… प्रकृति में किसी भी लक्ष्य की पूर्ति के लिए सभी साधन विद्यमान है। आपको वाह्य उपचारों की आवश्यकता नहीं है। आप जैसा