यह घाटी प्रदेश के दक्षिण-पूर्वी भाग में स्थित है। यह सिरमौर से पावंटा नगर के अस्तित्व में आने के बाद पावंटा घाटी के नाम से भी जानी जाती है। यमुना नदी इसे देहरादून से अलग करती है… गतांक से आगे… सतलुज घाटी : ऋषि मुनि यहां साधना करते समय अनादि काल से इनका प्रयोग करते
राडार वस्तुओं का पता लगाने वाली प्रणाली का एक यंत्र है, जिसमें सूक्ष्म तरंगों का उपयोग होता है। इसकी सहायता से गतिमान वस्तुएं जैसे जलयान, वायुयान, मोटर गाडि़यों आदि की दूरी, ऊंचाई, दिशा, चाल आदि का दूर से ही पता चल जाता है। इसके अलावा मौसम में तजी से आ रहे बदलाव का भी पता
घाटी सांगला के आगे खुलती है और चितकुल तक पेड़ों से आच्छादित ढलानों वाली है। घाटी के अंतिम आवासीय गांव हरे-भरे खेतों और ऊंचे पर्वत शिखरों से घिरा ‘चितकुल’ परियों के देश जैसा है। छोटे-छोटे विलक्षण घर, मंदिर, गोम्पा और लोग ‘शंगरी- ला’ के पूर्ण प्रतिबिंब मंत्र मुग्ध कर देते हैं… बैंटनी विरासत में मिला यह भवन
कुछ दशक पहले यह परंपरा थी कि अभिभावक अपने बच्चों को डाक्टर, इंजीनियर या वकील ही बनाना चाहते थे। आज अभिभावकों की सोच बदल चुकी है। वे डाक्टर, इंजीनियर और वकील के विकल्प को छोड़ अपने बच्चों के लिए बेहतर अवसरों के अंबार चाहते हैं। उनकी आकांक्षाओं की उड़ान को पंख लगाने में होटल व्यवसाय
संजीव कपूर वह भारतीय पाक शैली का विशेष दस्तावेज तैयार करते हैं और प्रामाणिक प्रतिलिपि निकालते हैं, जिससे भारत और दुनिया के दूसरे देशों के लोग भारतीय पाक शैली को सही तरीके से जान सकें। संजीव कपूर ने कुकरी से संबद्ध कई पुस्तकें भी लिखी हैं… संजीव कपूर आजकी भारतीय पाक शैली के सबसे प्रसिद्ध
रैडक्लिफ रेखा 17 अगस्त, 1947 को भारत विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा बन गई। सीरिल रैडक्लिफ की अध्यक्षता में सीमा आयोग द्वारा रेखा का निर्धारण किया गया, जो 88 करोड़ लोगों के बीच 1,75,000 वर्ग मील (4,50,000 वर्ग किमी) क्षेत्र को न्यायोचित रूप से विभाजित करने के लिए अधिकृत थे। भारतीय
आईपीएल-2018 चेन्नई के चैंपियन बनते ही आईपीएल-11 खत्म हुआ। अपनी घातक गेंदबाजी से पूरे टूर्नामेंट में विरोधियों के दांत खट्टे करने वाली सनराइजर्स हैदराबाद खराब गेंदबाजी के चलते ही खिताबी मुकाबला गंवा बैठी। नजदीकी मुकाबलों के कारण इस बार का सीजन अब तक का सबसे रोमांचक सीजन कहा जा रहा है। जाहिर है इसमें रिकार्ड
हिमाचल के श्रेष्ठ स्कूल-31 राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला करसोग जो कि लगभग 70 साल पहले माध्यमिक स्कूल के रूप में खुली। इसे 1952 में कृषि उच्च विद्यालय का दर्जा दिया गया, उसके बाद 1965 में उच्चतर माध्यमिक विद्यालय का दर्जा दिया गया, 1986 में राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला करसोग का नाम दिया गया। अब 2017