आस्था

श्रीराम शर्मा कई बार हमें जीवन में इतनी तकलीफ  और कष्टों का सामना करना पड़ता है कि हम समझ नहीं पाते हैं कि आखिर यह सब क्यों हो रहा है और इन सबसे कैसे निपटा जाए। समस्त दुःखों का कारण है, अज्ञान, अशक्ति व अभाव। जो व्यक्ति इन तीनों कारणों को जिस सीमा तक अपने

डॉ.प्रणव पण्ड्या गायत्रीतीर्थ, शांतिकुंञ्ज हरिद्वार कला, ज्ञान, संवेदना हमारे जीवन में आए, हमारे विचारों में आदर्शवादिता की उच्च स्तरीय सद्भावनाओं का समावेश हो, इस उद्देश्य से श्रद्धा भक्ति के साथ उनकी अर्चना की जाती है। विद्या के बिना मनुष्य सार्थकता की ओर नहीं बढ़ सकता है। विद्या के बगैर जीवन में आत्मोन्नति नहीं कर सकता।

क्योंकि भगवान शिव स्वयं  यहां पर प्रकट हुए थे, अतः श्रद्धालु लोगों ने यहां पर स्वयंभू शिव का मंदिर स्थापित किया और उसे नाम दिया अजगैबीनाथ मंदिर।  एक ऐसे देवता का मंदिर जिसने साक्षात उपस्थित होकर, यहां वह चमत्कार कर दिखाया जो किसी सामान्य व्यक्ति से संभव  न था… सुल्तानगंज भारत के बिहार राज्य के

नूरपुर उपमंडल के प्राचीन किले में स्थित श्री बृजराज स्वामी मंदिर। यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां श्रीकृष्ण के साथ राधा नहीं, बल्कि मीरा है। मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति के साथ अष्टधातु से बनी मीरा की प्रतिमा है, जो भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करती है। कहते हैं कि श्री बृजराज स्वामी मंदिर

खुदाई गहरी होती गई और शिवलिंग का धरती के अंदर आकार बढ़ता गया। पचास फुट से अधिक की खुदाई हुई मगर शिवलिंग का अंतिम छोर पता नहीं चल सका। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि तब खुदाई में लगे लोगों के स्वप्न में आकर भगवान शिव ने स्वयं कहा कि वे आदि उमानाथ हैं… उमानाथ

पंचमी की विधिवत शुरुआत वसंत पंचमी से मानी जाती है। यह ज्ञान और विद्या की देवी सरस्वती की आराधना का पर्व भी है। इस दिन मां सरस्वती की उपासना बहुत फलदायी होती है, इसी कारण विद्यालयों और विद्यार्थियों के बीच इस तिथि को लेकर बहुत उत्साह रहता है। इस दिन विविध मंत्रों से सरस्वती वंदना

यह मंदिर भारत के प्राचीन तीर्थ स्थानों में से एक है। यहां भगवान सुब्रमण्या को सभी नागों के स्वामी के रूप में पूजा जाता है… कुक्के सुब्रमण्या एक हिंदू मंदिर है। यह भारत के कर्नाटक राज्य के दक्षिण कन्नड़ जिले, मंगलूर के पास सुल्लिया तालुक के  एक छोटे से गांव में अवस्थित है। यह मंदिर

धर्माऽधर्मौ सुखं दुखं मानसानि न ते विभो। न कर्ताऽसि न भोक्ताऽसि मुक्त एवासि सर्वदा।। अष्टावक्र राजा जनक को विभो (सर्वव्यापी, सर्वात्मा) का संबोधन देते हुए कहते हैं कि हे विभो! धर्म-अधर्म, सुख-दुख तो मन के लिए हैं, तेरे लिए नहीं। क्योंंकि न तो तू कर्ता है और न ही भोक्ता। तू तो सदैव ही मुक्त

मां सरस्वती, वाक् शक्ति हैं। जीवन में वाक् की बहुत महत्ता है और इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि हम वाक् के शुद्ध रूप से परिचित हों।  वाक् शुद्धि के जरिए हम बेहतर मनुष्य कैसे बन सकते हैं,  इसके बारे में बता रहे हैं सद्गुरु जग्गी वासुदेव …. आप जो बोलते हैं, वह सबसे