स्वामी रामस्वरूप अतः वेद एवं ऋषियों के शास्त्र, उपनिषद, गीता आदि ग्रंथ जो आज के वेदज्ञ, वेद एवं अष्टांग योग विद्या को जानकर कठोर अभ्यास द्वारा असंप्रज्ञात समाधि प्राप्त ब्रह्मऋषि व्यास, गुरु वशिष्ठ के समान ब्रह्म पद को पा जाते हैं, उनके वचन भी सत्य हैं और उन्हीं से वेद एवं छह शास्त्र आदि ग्रंथ
ऊंचा उठना मनुष्य का स्वाभाविक धर्म भी है, पर यदि किसी से यह पूछा जाए कि क्या उसने इस गंभीर प्रश्न पर गहराई से विचार किया है? क्या कभी उसने यह भी सोचा है कि आकांक्षा की पूर्ति के लिए उसने क्या योजना बनाई है? तो अधिकांश व्यक्ति इस गूढ़ प्रश्न की गहराई का भेदन
* द्यदूसरों पर अपनी गलतियों का दोष देना ही सबसे बड़ी कमजोरी है, जो आगे बढ़ने से रोकती है। * द्यदुःख हर इनसान के जीवन में कभी न कभी जरूर आता है और दुःख में हिम्मत की असली परीक्षा होती है। * द्यखुद पर जिनको यकीन नहीं होता है, वे चाहकर भी कुछ नहीं कर
श्रीराम शर्मा अध्यात्म की तुलना अमृत, पारस और कल्पवृक्ष से की गई है। इस महान तत्त्वज्ञान के संपर्क में आकर मनुष्य अपने वास्तविक स्वरूप को, बल और महत्त्व को, पक्ष और प्रयोजन को ठीक तरह समझ लेता है। अध्यात्मवादी की आस्थाएं और विचारणाएं इतने ऊंचे स्तर की होती हैं कि उनके निवास स्थान अंतःकरण में
29 जनवरी रविवार, माघ, शुक्लपक्ष, द्वितीया, पंचक प्रारंभ 30 जनवरी सोमवार, माघ, शुक्लपक्ष, तृतीया, गौरी तृतीया व्रत 31 जनवरी मंगलवार, माघ, शुक्लपक्ष, चतुर्थी अंगारकी श्री गणेश तिल चतुर्थी 1 फरवरी बुधवार, माघ, शुक्लपक्ष पंचमी, वसंत पंचमी 2 फरवरी बृहस्पतिवार, माघ, शुक्लपक्ष, षष्ठी पंचक समाप्त 3 फरवरी शुक्रवार, माघ, शुक्लपक्ष सप्तमी 4 फरवरी शनिवार, माघ, शुक्लपक्ष
सारी बात मौन सीखने की है। मौन प्रामाणिक होगा। क्योंकि मौन में दूसरे की मौजूदगी नहीं है; झूठे होने की कोई जरूरत नहीं है। बोलने में झूठ बोला जाता है। मौन में झूठ का क्या सवाल है? मौन तो सच होगा ही। जब चुप हो, तो दूसरे से मुक्त हो; जब बोलते हो, दूसरे की
मौन का अर्थ यह नहीं कि होंठ बंद हो गए। मौन का अर्थ है, भीतर भाषा बंद हो गई, भाषा गिर गई। जैसे कोई भाषा ही पता नहीं है। और अगर आदमी स्वस्थ हो, तो जब अकेला हो, उसे भाषा पता नहीं होनी चाहिए। क्योंकि भाषा दूसरे के साथ कम्युनिकेट करने का साधन है, अकेले
भगवती की उपासना के लिए ‘सौंदर्य लहरी’ आद्यशंकराचार्य का साधकों को दिया गया अप्रतिम उपहार है। वाह्य रूप से देखें तो यह एक निष्पाप हृदय द्वारा भगवती की उपासना प्रतीत होती है। गहराई में विचार करने पर साधकों को यह तंत्र के गुह्य रहस्यों का संचय प्रतीत होती है। अपनी काव्यात्मकता के लिए सौंदर्य लहरी
जिला सिरमौर व शिमला की सीमा पर स्थित ऐतिहासिक व धार्मिक स्थल चूड़धार अपने आप में स्वर्ग की दूसरी सीढ़ी है। यहां पहुंचने पर श्रद्धालु अपने आपको जहां स्वर्ग लोक में महसूस करते हैं, वहीं चूड़धार में अमरनाथ यात्रा का भी अनुभव मिलता है। श्री शिरगुल महाराज के इस ऐतिहासिक मंदिर में वर्ष में छह