यह देखकर विष्णु भगवान ने अकेले ही दोनों हाथों से शेष के दोनों कोने पकड़ कर विलोना शुरू किया तुंरत ही समुद्र में से एक-एक करके सारे रत्न बाहर आने लगे। लक्ष्मी, पारजात नामक वृक्ष, कौस्तुभ मणि, मदिरा, धन्वंतरि वैद्य, चंद्रमा, कामधेनु गाय, ऐरावत हाथी, रंभा आदि अप्सरा सात मुख वाला घोड़ा… मंथन के कारण
आपका नेक पुत्र श्री राम, जोकि अत्यंत शक्तिवान हैं और जिसने राजगद्दी का त्याग कर वन की और प्रस्थान कर दिया है, ऐसा करके उसने अपने उच्च कुल के पिता को सच्चा साबित कर दिया है। वह नेकी के उस रास्ते पर चलने के लिए कटिबद्ध है,जिसे सुसंकृत लोगों नें हमेशा सही माना है और
जो भी व्यक्ति धर्म-मार्ग को छोड़कर विपरीत मार्ग पर चलता है,वेदज्ञ विद्वानों का कथन है कि उसका विनाश निश्चित हो जाता है। आपके नगर में हो रहे उत्पात इसी विनाश के सूचक लक्षण हैं। भगवान शंकर सभी देवों के श्रेष्ठ अंशों द्वारा निर्मित रथ पर आरुढ़ होकर आपके इस त्रिपुर के विध्वंस और दानवों के
स्वामी रामस्वरूप प्रथम तीन अवस्थाओं में योग की शिक्षा अथवा विद्या नहीं दी जा सकती क्योंकि चित्त की यही तीन अवस्थाएं मुख्यतः सांसारिक विषयों अर्थात माया में लिप्त रहती हैं। रजोगुण युक्त संसारी पदार्थों में भटकता चित्त क्षिप्त अवस्था में, तमोगुणी पुरुषार्थहीन मूढ़ अवस्था में तथा सांसारिक इच्छाएं पूर्ण न होने पर जो विक्षेप होता
खून में यूरिक एसिड की मात्रा का बढ़ना जोड़ों व किडनी पर भारी पड़ता है। अच्छी बात यह है कि शुरुआती स्तर पर खान-पान और जीवनशैली में सुधार करके ही इसे ठीक किया जा सकता है। यूरिक एसिड शरीर में बनने वाला एक रसायन है, जो पाचन प्रक्रिया के दौरान प्रोटीन के टूटने से बनता
गतांक से आगे… धर्म-प्रेरणा से मनुष्यों ने संसार में जो खून की नदियां बहाई हैं, मनुष्य के हृदय की और किसी प्रेरणा ने वैसा ही किया और धर्म-प्रेरणा से मनुष्यों ने जितने चिकित्सालय , धर्मशाला, अन्न-क्षेत्र आदि बनाए, उतने और किसी प्रेरणा से नहीं। मनुष्य हृदय की और कोई वृत्ति उसे सारी मानव जाति की
श्रीश्री रविशंकर अध्यात्म के मार्ग पर तीन कारक हैं। पहला बुद्ध, सद्गुरु या ब्रह्मज्ञानी का सान्निध्य, दूसरा संघ-संप्रदाय या समूह और तीसरा धर्म तुम्हारा सच्चा स्वभाव। जब इन तीनों का संतुलन होता है, तब जीवन स्वाभाविक रूप से खिल उठता है। बुद्ध या सद्गुरु एक प्रवेश द्वार की तरह हैं। मानो तुम बाहर रास्ते पर
ओशो जब तुम चिंता अनुभव करो, बहुत चिंताग्रस्त होओ, तब इस विधि का प्रयोग करो। इसके लिए क्या करना होगा? जब साधारणतः तुम्हें चिंता घेरती है तब तुम क्या करते हो? सामान्यतः क्या करते हो? तुम उसका हल ढूंढते हो, तुम उसके उपाय ढूंढते हो, लेकिन ऐसा करके तुम और भी चिंताग्रस्त हो जाते हो,
श्रीराम शर्मा संसार एक शीशा है। इस पर हमारे विचारों की जैसी छाया पड़ेगी, वैसा ही प्रतिबिंब दिखाई देगा। विचारों के आधार पर ही संसार सुखमय अथवा दुखमय अनुभव होता है। पुरोगामी उत्कृष्ट उत्तम विचार जीवन को ऊपर उठाते हैं। मनुष्य का जीवन उसके विचारों का प्रतिबिंब है। सफलता-असफलता, उन्नति, अवनति, तुच्छता, महानता, सुख-दुःख, शांति-अशांति